1971 की जंग का वो जांबाज, जो पाकिस्तान की जेल से भी भाग निकला… जानें कौन हैं IAF के विंग…

14 अगस्त, 2025 को भारत अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा. पूरे देश में आजादी के इस पर्व को लोग जोश-ओ-खरोश के साथ मनाएंगे. आइए इस मौके पर हम बात करते हैं भारतीय वायु सेना (IAF) के उस जांबाज विंग कमांडर की, जिसने 1965 और 1971 की जंग में पाकिस्तान के दांत खट्टे कर दिए थे और 1971 में 8 महीने तक युद्धबंदी बनाए जाने के बाद चकमा देकर पाकिस्तान की रावलपिंडी जेल से अपने दो अन्य साथियों के साथ सफल रूप से फरार हो गए थे.
हम बात कर रहे हैं भारतीय वायु सेना के जांबाज विंग कमांडर दिलीप कमलाकर पारुलकर की, जो एक बार नहीं बल्कि दो-दो बार पाकिस्तान के अंदर दाखिल हुए और वहां से निकलकर अपने देश भी वापस लौटे.
1965 में बहादुरी के लिए मिला था वायुसेना मेडल
1963 में भारतीय वायुसेना में कमीशन्ड होने के करीब दो साल के भीतर साल 1965 में पारुलकर ने पाकिस्तान के अंदर घुसकर हमला किया था, तब पारुलकर एयर फोर्स में फ्लाइंग ऑफिसर के पद पर थे. वे पंजाब के लुधियाना में हलवारा हवाई बेस पर उनकी तैनाती थी. सितंबर, 1965 में पारुलकर ने अपने तीन साथियों के साथ पाकिस्तान के अंदर जाकर सरगोधा हवाई बेस तक हमला किया था.
हालांकि, वापसी के दौरान पारुलकर एक पाकिस्तानी गोली का शिकार हो गए थे. पाकिस्तानी सेना की टैंकों पर लगी एंटी-एयरक्राफ्ट गन्स की एक गोली पारुल के विमान को चीरती हुए उनके बाएं कंधे में जा लगी और फिर कॉकपिट से बाहर निकल गई थी. लेकिन बिना अपना हौंसला गंवाए पारुलकर ने एक हाथ से ही अपने विमान को संभाला और भारत में जानलेवा हो सकने वाली लैंडिंग भी की. इस बहादुरी के लिए उन्हें अगले साल वायुसेना मेडल से भी सम्मानित किया गया था.
1971 की जंग में बन गए थे युद्धबंदी
वहीं, 1971 में भी विंग कमांडर पारुलकर ने एक बार फिर से अपनी बहादूर दिखाई. पारुलकर 10 दिसंबर, 1971 को सुखोई-सैबर फाइटर जेट से पूर्वी पाकिस्तान में दाखिल हुए और दुश्मन पाकिस्तानी सेना के टैंकों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं, लेकिन जवाबी हमले में पारुलकर के विमान को नुकसान पहुंचा और वह जेट से इजेक्ट करके पूर्वी पाकिस्तान में युद्धबंदी बना लिए गए. हालांकि, पाकिस्तानी सेना के सरेंडर के बाद 25 दिसंबर, 1971 को भारत के सभी युद्धबंदियों को एक-दूसरे से मिलने दिया गया. इस दौरान पारुलकर की मुलाकात IAF के फ्लाइट लेफ्टिनेंट एम.एस. ग्रेवाल और फ्लाइट लेफ्टिनेंट हरीश सिंहजी से हुई. पारुलकर ने IAF के दोनों अधिकारियों के साथ मिलकर रावलपिंडी जेल से भागने का प्लान बनाया.
आठ महीने के बाद पाकिस्तान की जेल से फरार हो गए IAF के तीनों जांबाज
विंग कमांडर डीके पारुलकर ने युद्धबंदी बनाए जाने के आठ महीने के बाद अपने साथियों के साथ 12 अगस्त, 1972 को अपने प्लान को अंजाम दिया और रावलपिंडी जेल से एक सुरंग के जरिए भाग निकले. तीनों ने मिलकर जेल से बाहर तक एक सुरंग तैयार की थी, जिससे होते वह जेल से सफल रूप से बाहर आ गए थे. जेल से फरार होने के बाद तीनों अफगानिस्तान की सीमा की ओर बढ़े, लेकिन अफगानिस्तान सीमा से चार मील की दूरी पर तीनों का पाला एक तहसीलदार से पड़ गया और तहसीलदार की पूछताछ के दौरान उनकी एक गलती के कारण उन्हें दोबारा जेल जाना पड़ गया.
इस बार उन्होंने रावलपिंडी जेल की जगह फैसलाबाद के लयालपुर जेल में कैद किया गया, जहां 600 से ज्यादा भारतीय युद्धबंदी कैद थे. 24 नवंबर, 1972 को पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम जुल्फीकार अली भुट्टो ने सभी युद्धबंदियों को रिहा करने का ऐलान किया. भुट्टो के ऐलान के एक हफ्ते बाद अटारी-बाघा बॉर्डर के जरिए विंग कमांडर डीके पारुलकर के साथ अन्य सभी भारतीय युद्धबंदियों को रिहा कर वापस भेज दिया गया था.
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