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मैसूर11 मिनट पहलेलेखक: प्रभाकर मणि तिवारी
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श्रीकांतेश्वर मंदिर को नंजुदेश्वर मंदिर भी कहा जाता है।
कर्नाटक में मैसूर के नंजनगूड में 11वीं शताब्दी में बना श्रीकांतेश्वर मंदिर मौजूद है। भगवान शिव के इस मंदिर के परकोटे के ऊपर भगवान श्रीगणेश की 32 स्वरूपों वाली प्रतिमाएं बनी हुई हैं। जो इस मंदिर की विशेषता है।
इस तरह की खासियत वाला ये पूरे विश्व का इकलौता मंदिर है। मंदिर का प्रवेश द्वार 120 फीट ऊंचा है, जो इसके आंगन में खुलता है। मंदिर के काफी अंदर जाकर भगवान श्रीकांतेश्वर यानी महादेव की प्रतिमा के दर्शन होते हैं।
भगवान गणेश के जो 32 स्वरूप वाली प्रतिमाएं यहां मौजूद हैं, उनमें गणेश को नृत्य करता दिखाया गया है। वे बाल (बच्चे) रूप में भी और तरुण (टीनेज) रूप में भी हैं। ये प्रतिमाएं गेहुएं रंग के पत्थर से बनी हैं।
नंजनगूड मंदिर संघ के अध्यक्ष श्रीकांत ने बताया कि इन स्वरूपों का उल्लेख मुद्गल और गणेश पुराण में मिलता है। श्रीकांतेश्वर मंदिर को नंजुदेश्वर मंदिर भी कहा जाता है।
मंदिर से जुड़ी 6 तस्वीरें…
मंदिर के परकोटे पर बनी गेंहुए रंग के पत्थर से बनी भगवान शिव की प्रतिमा।
मंदिर का मुख्य द्वार 7 मंदिर का है। जो 120 फीट ऊंचा है,यहां भगवान शिव के श्रीकांतेश्वर स्वरूप की प्रतिमा है।
मंदिर के परकोटे पर कई तरह की प्रतिमाएं बनी हुई हैं।
मंदिर में मौजद श्रीकांतेश्वर महादेव की प्रतिमा, जो कले पत्थर की है।
श्रीकांतेश्वर मंदिर को नंजुदेश्वर मंदिर भी कहा जाता है।
मंदिर करीब 50 हजार वर्ग फीट में बना हुआ है। यहां 147 स्तंभ (पत्थर के खंभे) हैं।
मैसूर से 27 किमी दूर है नंजनगूड
मैसूर शहर से करीब 27 किमी दूर कपिला या काबिनी नदी के किनारे बना यह मंदिर द्रविड़ स्थापत्य शैली में बना है।
मंदिर के कार्यकारी अधिकारी एम.जगदीश कुमार ने बताया- करीब 50 हजार वर्ग फीट में मंदिर में 147 स्तंभ हैं। शिव पुराण में नंजनगूड का जिक्र श्री गरलपुरी के रूप में किया गया है। नंजनगूड यानी भगवान नंजुदेश्वर का घर। कन्नड में नंजु का मतबल जहर देना होता है। यानी जहर पीने वाले भगवान शिव का घर।
इस मंदिर को दक्षिण का काशी भी कहा जाता है। मंदिर परिसर में हर साल मार्च-अप्रैल के दौरान डोड्डा जत्रा उत्सव होता है, जिसमें शिव और गणेश के साथ देवी-देवताओं की रथ यात्रा निकलती है। चोल राजाओं ने 11वीं सदी में मंदिर के गर्भगृह का निर्माण कराया था।
सात मंजिला है मुख्यद्वार
इस मंदिर में गणेशजी, शिवजी और पार्वतीजी के अलग-अलग गर्भगृह हैं। बड़े अहाते में एक किनारे पर 108 शिवलिंग हैं। इस बहुत बड़े मंदिर में एक जगह ऐसी भी है, जहां ऊंची छत से सुबह सूर्य की पहली किरण आती है।
मंदिर का मुख्यद्वार को महाद्वार के नाम से जाना जाता है।
इन 32 स्वरूपों में विराजमान हैं भगवान गणेश
बाल गणपति, तरुण, भक्त, वीर, शक्ति, द्विज, सिद्धि, उच्छिष्ट, विघ्न, क्षिप्र, हेरम्ब, लक्ष्मी, महागणपति, विजय, नृत्य, उर्ध्व, एकाक्षर, वरद, त्र्यक्षर, क्षिप्र प्रसाद, हरिद्रा, एकदंत, सृष्टि, उदण्ड, ऋणमोचन, धुद्धि, द्विमुख, त्रिमुख, सिंह, योग, दुर्गा गणपति और संकट हरण गणपति।
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