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55-year-old father saved son’s life by donating kidney | 55-साल के पिता ने किडनी देकर बचाई बेटे…

शेल्बी हॉस्पिटल में यह हमारा पहला किडनी ट्रांसप्लांट है। 

किडनी फेल होने से डायलिसिस पर चल रहे 31 वर्षीय बटे की हालत बुजुर्ग पिता से देखी नहीं गई। 55 साल के पिता ने अपनी बेटे को किडनी देने का फैसला किया। हालांकि इससे पहले मां ने भी बेटे को किडनी देने की इच्छा जताई थी। लेकिन काउंसलिंग और सभी जांचों के बाद मा

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ट्रांसप्लांट होने के महज 2 घंटे के भीतर पिता की किडनी बेटे के शरीर में फंक्शनल यानी काम भी करने लग गई। यह अनूठा किडनी ट्रांसप्लांट जयपुर के शैल्बी हॉस्पिटल में 9 जुलाई को हुआ। फिलहाल दोनों मरीज (मां और बेटी) स्वस्थ्य है।

इस उपलब्धि पर हॉस्पिटल में वरिष्ठ चिकित्सकों ने ट्रांसप्लांट की सफलता और रीनल साइंस विभाग की सुविधाओं की जानकारी दी। वरिष्ठ यूरोलॉजिस्ट डॉ. संजय बिनवाल, डॉ. सुभाष कटारिया और नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. कविश शर्मा मौजूद रहे। चिकित्सकों ने बताया कि रोगी स्वस्थ है और रिकवरी कर रहा है।

पिता बोले- किडनी डोनेट तो इसकी मां करना चाहती थी, लेकिन वह शायद फिट नहीं बैठी

मरीज के पिता नवाब खान ने बताया- हम अलवर के गांव से रहते हैं। मैं 55 साल की उम्र में मेरे बेटे को किडनी डोनेट की है। हमने वह समय देखा था जब बेटा किस तरीके से उल्टी और अन्य कारण से परेशान होता था। अब बेटा ठीक है। मेरे दो लड़के हैं। वैसे किडनी डोनेट तो इसकी मां करना चाहती थी, लेकिन वह शायद फिट नहीं बैठी। इसके बाद मैंने बेटे को किडनी डोनेट करने का फैसला लिया। मैं खुश हूं कि मेरा बेटा अब ठीक है अब ना मुझे कोई तकलीफ है ना मेरे बेटे को होगी।

यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुभाष कटारिया बोले- डोनर पर लेप्रोस्कोपी कोड अपनाया

यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुभाष कटारिया ने बताया- डोनर का ऑपरेशन दूरबीन विधि (रिड्रोपेरिटोनियोस्कोपी) से किया गया। इस ऑपरेशन में डोनर को हॉस्पीटल से जल्दी डिस्चार्ज, कम दर्द, और आंतो से संबधित कॉम्पलिकेशन का खतरा कम रहता है। ऑपरेशन के दूसरे दिन डोनर को हॉस्पीटल से छुट्टी दे दी गई थी। वहीं मरीज को हॉस्पीटल से 8 वें दिन छुट्टी दी गई थी और उसका सिरम क्रिएटिनिन 0.80 mg/dl था|

उन्होंने बताया- डोनर को कमर पीछे तीन छेद करके लेप्रोस्कोपी विधि अपनाई गई। नेफ्रेक्टॉमी एक तो पेट के रास्ते से होती है जिसमें पेट के रास्ते से किडनी तक पहुंचते हैं और एक होती है कमर के पीछे से। जहां आंतों को छेड़ा नहीं जाता। इसका फायदा यह होता है कि दाता को जल्द डिस्चार्ज कर दिया जाता है। उसको आंतों से जुड़ी किसी तरह की समस्या नहीं होती। इस विधि में लेप्रोस्कोपी विधि से कमर पीछे तीन छेद किए जाते हैं। इसमें पेशेंट की रिकवरी जल्दी होती है, पेन काम होता है और रोगी को जल्द डिस्चार्ज किया जा सकता है।

डॉ. संजय बिनवाल ने बताया- किडनी ट्रांसप्लांट में खासियत रहा की हमने पेट पर चीरा लगाकर ऑपरेशन नहीं किया

वरिष्ठ यूरोलॉजिस्ट डॉ. संजय बिनवाल ने बताया- शेल्बी हॉस्पिटल में यह हमारा पहला किडनी ट्रांसप्लांट है। इस किडनी ट्रांसप्लांट में खासियत रहा की हमने पेट पर चीरा लगाकर ऑपरेशन नहीं किया ना ही पेट के रास्ते इसको ऑपरेट किया। इसको हमने रेट्रो पेट्रो कॉपी करके किया जिसका फायदा यह हुआ कि पेट के रास्ते में नहीं गुजरना पड़ा। इससे फायदा हुआ कि हमने डोनर को दूसरे दिन ही डिस्चार्ज कर दिया।

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