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Supreme Court Stops Trial Court From Taking Cognisance of SIT Charge Sheet Against Ashoka…

ऑपरेशन सिंदूर पर प्रोफेसर अली के बयान के विवादित एक मामले में राहत मिली है और दूसरे पर कोर्ट ने रोक लगा दी है

सुप्रीम कोर्ट ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदबाद को बड़ी राहत देते हुए उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर पर कार्रवाई रोक दी है। यह मामला उनके सोशल मीडिया पोस्ट से जुड़ा है, जो ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संबंध में किया गया था।

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सुनवाई के दौरान हरियाणा पुलिस ने कोर्ट को बताया कि एक एफआईआर में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी गई है, जबकि दूसरी में चार्जशीट दायर की गई है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने क्लोजर रिपोर्ट वाली एफआईआर को रद्द कर दिया और दूसरी एफआईआर पर जिला मजिस्ट्रेट को संज्ञान लेने से रोक दिया। इस फैसले से प्रोफेसर महमूदबाद को फिलहाल राहत मिल गई है।

अली खान को एक मामले में राहत मिली है

भारतीय न्याय संहिता का दुरुपयोग ​प्रोफेसर महमूदबाद की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पुलिस ने सोशल मीडिया की टिप्पणी पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 लगाई है, जो राष्ट्र की संप्रभुता पर हमला करने वाले अपराधों से संबंधित है। उन्होंने कहा कि पुलिस ने इस धारा का दुरुपयोग किया है।

​SIT को सुप्रीम कोर्ट की फटकार ​इससे पहले, जुलाई में हुई सुनवाई के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) को फटकार लगाई थी। कोर्ट ने SIT को यह कहते हुए लताड़ लगाई थी कि वह जांच का दायरा बढ़ा रही है और खुद को गुमराह कर रही है। शीर्ष अदालत ने SIT को चार हफ्तों के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दिया था।

गिरफ्तारी से अब तक का घटनाक्रम अली खान महमूदाबाद को 18 मई को हरियाणा पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उनके खिलाफ दो एफआईआर दर्ज हुई थी।पहली महिला आयोग की चेयरपर्सन रेनू भाटिया की शिकायत पर और दूसरी एक गांव की जठेडी के सरपंच की शिकायत पर हुई। ये एफआईआर सोनीपत के राई थाने में दर्ज की गई थीं।

किन धाराओं में मामला दर्ज प्रोफेसर पर बीएनएस की धारा 152 (सार्वभौमिकता व अखंडता को खतरे में डालना), धारा 353 (लोक द्रोहात्मक बयान), धारा 79 (महिला की मर्यादा भंग करने वाले कृत्य) और धारा 196 (1) (धर्म के आधार पर समूहों के बीच दुश्मनी फैलाना) के तहत केस दर्ज किया गया था।

प्रोफेसर की गिरफ्तारी और चार्जशीट को लेकर कई राजनीतिक दलों और शिक्षाविदों ने विरोध दर्ज कराया था। उनका कहना है कि यह अकादमिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला है।

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