राज्य

The fossil found in Megha village is 200 million years old | 20 करोड़ साल पुराना है मेघा गांव…

जैसलमेर के मेघा गांव में मिले जीवाश्म की पहचान फाइटोसौर प्रजाति के जीव के जीवाश्म के रूप मे हुई है। ये लेट ट्राइऐसिक काल का सरीसृप है जिसकी लम्बाई करीब 2 मीटर है। ये बहुत कुछ मगरमच्छ जैसा मिलता है।जेएनवीयू जोधपुर के भूविज्ञान विभाग के पृथ्वी प्रणाली

.

डॉ परिहार ने बताया-डायनासोर की फाइटोसौर प्रजाति का लेट ट्राइऐसिक व अर्ली जुरासिक काल का है क्रोकोडाइल की आकृति के सरीसृप का फोसील है, जिसकी लम्बाई 2 मीटर के करीब है। यह भारत में जुरासिक चट्टानों से फाइटोसौर जीवाश्मों की पहली खोज है, जो इसे भारतीय जीवाश्म विज्ञान के इतिहास में एक मील का पत्थर बनाती है।

मौके पर तारबंदी कर कंकाल को किया संरक्षित।

करीब 20 करोड़ साल पुराना है कंकाल

जैसलमेर में के फतेहगढ़ उपखण्ड के मेघा गांव के ग्रामीणों द्वारा 21 अगस्त को ग्रामीणों ने इस कंकाल की जानकारी प्रशासन को दी थी। इस सूचना पर जिले के वरिष्ठ भू जल वैज्ञानिक डॉ एन डी इणखिया ने पहुंच कर इसके जुरासिक काल के फोसिल होने की जानकारी दी थी। बाद मे विशेषज्ञ के रूप मे डॉ परिहार ने इस संरचना का निरीक्षण कर फोसिल की पुष्टि की और इसे 201 मिलियन वर्ष पुराना एक घने जंगलों मे पाए जाने वाले वृक्ष छिपकली (फाइटोसौर) मगरमच्छ का जीवाश्म बताया। इस जीवाश्म की लंबाई 1.5-2 मीटर है, जो एक मध्यम आकार के जीव का संकेत देता है। प्राथमिक अवलोकनों से पता चलता है कि यह फाइटोसॉर (वृक्ष छिपकली) का था, जो एक प्राचीन सरीसृप था जो नदी पारिस्थितिकी तंत्र के पास स्थित वन आवास में रहता था।

डायनासोर से भी पुराना है जीव ट्राइएसिक काल मध्यजीवी महाकल्प का पहला और सबसे छोटा कल्प था, जो आज से लगभग 251.9 से 201.4 मिलियन वर्ष पहले तक चला था। यह काल पर्मियन-ट्राइएसिक विलुप्ति के बाद शुरू हुआ, जिसमें धरती पर जीवन की भारी क्षति हुई थी, और यह डायनासोर, कछुओं, छिपकलियों और स्तनधारियों सहित विभिन्न जीवों के उद्भव और प्रसार के लिए जाना जाता है। इस काल में पेंजिया नामक एक ही विशाल महाद्वीप था, और विभिन्न प्रकार के जीव, विशेष रूप से सरीसृप पनपे।

20 करोड़ साल पुराना है कंकाल।

चारों तरफ तारबंदी कर संरक्षण किया

मेघा गांव के तालाब के पास मिले इस कंकाल के चारों तरफ तारबंदी कर इसको सुरक्षित किया गया है। डॉ नारायण दास इणखिया ने बताया- अब इस जगह को संरक्षित करके इस कंकाल की पूरी खोज जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया द्वारा की जाएगी। ये अपने आप में बहुत बड़ी खोज है जब एक कंकाल पूरा हमें मिला है। अब खुदाई होगी और फिर कंकाल पर शोध होगा। हो सकता है इसके साथ हमें कुछ और भी जीव मिले।

फाइटोसौर जीवाश्मों के बारे में मुख्य पॉइंट

  • काल: फाइटोसौर जीवाश्म लेट ट्राइसिक काल (लगभग 200 से 229 मिलियन वर्ष पहले) के हैं।
  • शारीरिक विशेषताएं: ये लंबे थूथन और भारी कवच वाले थे, जो आकार और जीवन शैली में आधुनिक मगरमच्छों से मिलते-जुलते थे।
  • आहार और व्यवहार: हालांकि उनका नाम ‘पौधा छिपकली’ है, उनके नुकीले दांत बताते हैं कि वे शिकारी थे, न कि पौधे खाने वाले।
  • संबंध: फाइटोसौर डायनासोर नहीं थे, बल्कि मगरमच्छों और टेरोसॉर के साथ-साथ आर्कोसॉर नामक बड़े सरीसृप समूह का हिस्सा थे।
  • वितरण: फाइटोसौर के जीवाश्म उत्तरी अमेरिका, यूरोप, भारत, मोरक्को, थाईलैंड, ब्राजील और मेडागास्कर में पाए गए हैं।
  • नाम की उत्पत्ति: पहले जीवाश्मों में टूथ सॉकेट के टुकड़े पाए गए थे, जिन्हें दांत समझा गया और उनके कुंद, गोल आकार के कारण उन्हें शाकाहारी माना गया।
  • विकासवादी महत्व: फाइटोसौर जीवाश्म डायनासोर के युग से पहले के सरीसृपों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button