Made weeds and bushes useful, got two varieties patented; The farmer changed the traditional…

उन्नत किस्म में बदली झाड़ी के साथ रामेश्वर (बाएं)।
खेतों में विभिन्न वनस्पति ऐसी होती हैं जो अपने आप उगती हैं। किसान इन्हें खरपतवार, अनुपयोगी और नुकसानदेह मानते हैं लेकिन बीकानेर के हिम्मतासर निवासी किसान रामेश्वर लाल खींचड़ ने इस सोच को बदला है। उन्होंने न सिर्फ अपने खेत में उगी जंगली झाड़ियों को उपयो
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किसान रामेश्वर लाल ने बताया, 30 साल पहले इजरायल का एक डॉक्टर बीकानेर आया था। उसने अंग्रेजी में भाषण दिया। मैंने एक पढ़े-लिखे सज्जन से पूछा कि इन्होंने ऐसा क्या कह दिया। सज्जन ने बताया कि कोई भी वनस्पति बेकार नहीं होती, राजस्थान के किसान ग्राफ्टिंग विधि से पेड़-पौधों की किस्म बदलना सीख लें तो यहां की धरती सोना उगल सकती है। बस, वहीं से मैंने ठान लिया कि खरपतवार और जंगली अनुपयोगी झाड़ियों को उपयोगी बनाऊंगा। इसके बाद मैं श्रीगंगानगर में एक शिविर में गया, दो दिन रहकर ग्राफ्टिंग विधि सीखी।
फिर बाड़मेर-जैसलमेर जाकर बिना कांटों वाली खेजड़ी की टहनियां लाया। उन्हें अपने बंजर खेत में कांटों वाली अनुपयोगी कुछ झाड़ियों पर चढ़ाकर प्रयोग किया। उनमें 8-10 दिन में कोंपलें फूटने लगीं और कुछ दिन बाद बेर आने लगे। खेजड़ी पर प्रयोग कर कांटों वाली खेजड़ी काे कांटोंरहित बनाया। अब तक मैं खेजड़ी की 18 और बेर (हाइब्रिड, आकार में बड़े) की 8 किस्में विकसित कर चुका हूं। इनमें से खेजड़ी की 2 किस्मों थार हरित और धोरों की तरकारी का पेटेंट भी अपने नाम कराया है।
किसान खींचड़ ने बताया मैंने अब तक जिन झाड़ियों को कांटों से मुक्त किया, वे साग-सब्जी बनाने और पशुओं के पौष्टिक चारे के काम आ रही हैं। इससे पहले कांटे होने के कारण उनका उपयोग नहीं हो पा रहा था। इससे चारा फ्री में मिल रहा है जबकि पहले बाजार से सूख चारा 1500 से 2000 और 1000 से 1200 रुपए क्विंटल के भाव से लाना पड़ रहा था। मिट्टी और पानी की समस्या वाले इलाकों में ग्राफ्टिंग विधि से बिना पानी के फलदार पौधे सफलता पूर्वक उगाए जा सकते हैं। इस विधि को अब तक मैं हजारों लोगों को सिखा चुका हूं।