Vamana Jayanti 2025: वामन जयंती पर जानें श्रीहरि की माया और तीन पग की ये धार्मिक कहानी

पंचांग के अनुसार गुरुवार, 4 सितंबर 2025 को वामन जयंती मनाई जाएगी. हर साल यह पर्व भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है. इसलिए इसे वामन द्वादशी भी कहते हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी शुभ दिन पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने अपना पांचवा अवतार लिया था, जिसे वामन अवतार कहा जाता है. इस अवतार में प्रभु बौने ब्राह्मण के रूप में नजर आए थे.
वामन अवतार से मिलने वाली सीख
भगवान विष्णु के वेद, धर्म, सृष्टि आदि की रक्षा के लिए समय-समय पर कई अवतार लिए. इन्हीं में एक है वामन अवातर. यह अवतार उन्होंने असुर बलि के अभिमान को तोड़ने के लिए लिया. विष्णुजी के इस अवतार का विस्तृत वर्णन श्रीमद् भागवत पुराण और विष्णु पुराण में भी मिलता है. भगवान का यह अवतार धर्म और अधर्म के बीच संतुलन का विस्तृत उदाहरण है. विष्णु जी का यह अवतार इस बात की शिक्षा भी देता है कि, अहंकार का अंत निश्चित है. साथ ही भगवान का यह अवतार और उनकी माया न्याय, धर्म और संविदा के संरक्षण को भी दर्शाती है.
श्रीहरि की माया और तीन पग कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, चिरकाल में असुर राजा बलि था, जोकि एक श्रेष्ठ योद्धा, दानवीर और भगवान विष्णु का भक्त भी था. उसके महानता और वीरता की चर्चा तीनों लोक में थी. एक बार बलि ने देवताओं के साथ युद्ध किया और स्वर्ग नरेश इंद्र को हराकर स्वर्ग पर अधिपत्य जमा लिया, जिसके बाद स्वर्ग नरेश इंद्र सहित सभी देवताओं की स्थिति दयनीय हो गई. स्वर्ग छिन जाने के बाद सभी देवता लोक-प्रलोक भटकने लगे.
इंद्र और सभी देवता भगवान श्रीहरि के पास पहुंचे. भगवान ने उन्हें आश्वासन दिया कि, वे जल्द ही सब ठीक कर देंगे. भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मां अदीति के गर्भ से वामन देव का अवतरण हुआ.
स्वर्ग का स्थायी नरेश बनने पर राजा बलि ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया. यज्ञ में तीनों लोकों को आमंत्रित किया गया, जिसमें वामन रूप में भगवान विष्णु भी पहुंचे. बलि बहुत दानवीर था. यज्ञ के बाद उसने सभी ब्राह्मणों को दान-पुण्य भी किया. उसी पंक्ति में वामन अवतार में भगवान विष्णु भी थे. वामन देव ने राजा बलि से तीन पग भूमि की मांग की, जिसे राजा बलि ने स्वेच्छा से स्वीकार कर लिया.
वामन देव ने अपने एक पग से पृथ्वी और दूसरे पग में स्वर्ग नाप लिया. तीसरे पग के लिए भूमि ही नहीं बची, तब दानवीर राजा बलि ने अपना सिर आगे कर दिया. इसके बाद वामन देव ने अपना पग राजा बलि के सिर पर रख दिया. पग रखते ही राजा बलि पाताल पहुंच गया और इंद्र देव को पुनः स्वर्ग का सिंहासन प्राप्त हुआ.
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