भारत के बाद अब यूरोप ने भी ट्रंप को दिया झटका, इन दो देशों ने US के 5वीं पीढ़ी के फाइटर जेट…

भारत के बाद अब यूरोप से भी अमेरिका को बड़ा झटका लगा है. डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की उम्मीदों को उस समय धक्का लगा, जब स्पेन और स्विट्जरलैंड ने अमेरिका के 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान F-35 को खरीदने से साफ इनकार कर दिया. दोनों देशों ने इसके बजाय यूरोपीय विकल्पों पर भरोसा जताते हुए अपनी रक्षा रणनीति को नई दिशा दी है.
स्पेन और स्विट्जरलैंड के हालिया फैसलों ने अमेरिकी F-35 लड़ाकू विमान से दूरी बनाने की ओर यूरोप के रुख को और स्पष्ट कर दिया है. यह कदम सिर्फ कीमतों पर विवाद की वजह से नहीं है, बल्कि अमेरिका के “सस्टेनमेंट मोनोपोली” को लेकर चिंता भी है, जिसमें भविष्य के सभी अपग्रेड, सॉफ़्टवेयर और ऑपरेशनल डेटा पर अमेरिका का नियंत्रण होगा. यह स्थिति बदलते राजनीतिक हालात में रणनीतिक जोखिम पैदा करती है.
स्पेन का चौंकाने वाला फैसला
स्पेन ने अचानक अपने F-35 खरीदने की योजना को खत्म कर दिया. पहले यह माना जा रहा था कि मैड्रिड अपनी नौसेना के Juan Carlos I एयरक्राफ्ट कैरियर के लिए F-35B खरीदेगा, लेकिन अब उसने यह योजना रद्द कर दी है. इसके बजाय स्पेन ने 25 नए यूरोफाइटर टाइफून खरीदने और फ्यूचर कॉम्बैट एयर सिस्टम (FCAS) पर जोर देने का फैसला किया है.
यह निर्णय स्पेन की नौसैनिक ताकत को फिलहाल कमजोर करेगा क्योंकि अब अगले दस साल तक उसके पास असली पांचवीं पीढ़ी का विमान नहीं होगा. लेकिन इसका फायदा घरेलू उद्योग को होगा. यूरोपीय प्रोग्राम्स में अरबों यूरो निवेश करके स्पेन अपनी सप्लाई चेन, रोजगार और तकनीकी क्षमता को मजबूत करेगा और यह सब यूरोपीय स्वामित्व में रहेगा.
स्विट्जरलैंड में बढ़ता असंतोष
स्विट्जरलैंड ने 2022 में जनमत संग्रह कराकर 36 F-35A विमानों की खरीद को मंजूरी दी थी, जिसकी कीमत लगभग 6 अरब स्विस फ़्रैंक थी. लेकिन 2023 के अंत तक हालात बदलने लगे. अमेरिका ने स्विस अधिकारियों को गुप्त ब्रीफिंग में बताया कि कॉन्ट्रैक्ट पूरी तरह फिक्स्ड नहीं है और महंगाई व सामग्री लागत बढ़ने पर कीमतें 650 मिलियन फ़्रैंक या उससे ज्यादा बढ़ सकती हैं. इसके बाद वाशिंगटन ने स्विस निर्यात पर नए टैरिफ भी लगा दिए. इससे डील पर विश्वास और कम हो गया और अब बर्न में कई नेता सौदे को कम करने या पूरी तरह रद्द करने की मांग कर रहे हैं.
यूरोप की चुनौती और मौका
स्पेन के पास FCAS को आगे बढ़ाने की औद्योगिक क्षमता और राजनीतिक इच्छाशक्ति है. वहीं स्विट्जरलैंड के पास न तो ऐसा उद्योग है और न ही रक्षा महत्वाकांक्षा, इसलिए उसके सामने फैसला कठिन है – सस्ता विकल्प या सुरक्षित सप्लाई चेन. लेकिन दोनों देशों की चिंता एक जैसी है – F-35 की तकनीकी श्रेष्ठता के बावजूद यह विमान लागत, सुरक्षा और नियंत्रण के लिहाज से भारी जोखिम लाता है.
F-35 बनाम यूरोफाइटर और FCAS
F-35 पर लंबे समय से आरोप है कि लॉकहीड मार्टिन ने एक तरह का “मोनोपोली” बना लिया है. सॉफ़्टवेयर अपग्रेड और बदलाव केवल अमेरिकी अनुमति से होते हैं और लाइफसाइकिल कॉस्ट लगातार बढ़ती जा रही है.
इसके उलट, यूरोफाइटर टाइफून अभी भी एक सक्षम और अपग्रेडेबल मल्टी-रोल विमान है, जो यूरोपीय स्वामित्व में है. वहीं FCAS अभी रिसर्च एंड डेवलपमेंट चरण में है, लेकिन इसमें छठी पीढ़ी के फीचर्स होंगे – जैसे स्टेल्थ, मानव-मानवरहित टीमिंग, एडवांस इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर और क्लाउड-आधारित कमांड सिस्टम. यह पूरी तरह यूरोपीय नियंत्रण में रहेगा.
रणनीतिक संदेश
F-35 खरीदना मतलब अमेरिकी सिस्टम से पूरी तरह बंध जाना – जहां स्पेयर पार्ट्स, भविष्य के अपग्रेड और ऑपरेशनल डेटा तक पर अमेरिका का नियंत्रण होगा. यह तब तक स्वीकार्य हो सकता है जब तक अमेरिका और यूरोप के रिश्ते मजबूत हैं. लेकिन अगर राजनीतिक मतभेद या टैरिफ जैसी घटनाएं बढ़ीं तो यह यूरोप के लिए बड़ा खतरा बन सकता है.
स्पेन का फैसला सिर्फ कीमत या औद्योगिक हित पर आधारित नहीं है. यह एक तरह की “भविष्य की बीमा पॉलिसी” है – अभी कीमत चुकाना बेहतर है बजाय भविष्य में रणनीतिक आजादी खोने के. स्विट्जरलैंड के लिए स्थिति अलग है, लेकिन वह भी अब समझ रहा है कि उसका तथाकथित फिक्स्ड-प्राइस कॉन्ट्रैक्ट उतना पक्का नहीं था जितना माना गया था.
भारत ने भी दिया अमेरिका को झटका
भारत भी अब स्वदेशी लड़ाकू विमानों के लिए इंजन निर्माण में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में बड़ा कदम उठा रहा है. फ्रांस की कंपनी Safran के साथ मिलकर भारत 120 KN का शक्तिशाली इंजन डेवलप करेगा, जो पांचवीं पीढ़ी के स्टेल्थ फाइटर जेट्स को ताकत देगा. इस डील से भारत-फ्रांस की रणनीतिक साझेदारी और मजबूत होगी, जबकि अमेरिका को झटका लगा है क्योंकि ट्रंप प्रशासन उम्मीद कर रहा था कि भारत GE 414 इंजन खरीदेगा.