Three Missing child escape plan jaipur Found At Bharatpur Bus Stand | घर से भागे बच्चे, साइकिल…

जयपुर से 14 अगस्त को लापता हुए तीन स्कूल स्टूडेंट 8 दिन बाद घर लौट आए हैं। बच्चों के खुलासे से पुलिस-परिवार हैरान है।
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भागने के बाद बच्चे अपने घरवालों की ही जासूसी कर रहे थे। दोस्त से चैटिंग के जरिए पूछ रहे थे- पता लगाओ मम्मी-पापा हमें कहां-कहां ढूंढ रहे हैं। बच्चों ने अपना मोबाइल भी एयरप्लेन मोड पर डाल दिया था।
मोहित सिंह, नितिन सिंह और अरमान घर से स्कूल जाने का कहकर निकले थे। तीनों फिल्मी स्टाइल में लेटर छोड़ा था। उसमें लिखा था- 5 साल बाद आएंगे।
फिर ड्रैस बदलकर गांधी नगर रेलवे स्टेशन से ट्रेन में बैठ गए थे। टिकट के पैसों के लिए अरमान ने अपनी साइकिल 400 रुपए में बेच दी थी। एक ऑनलाइन ऐप से लोन भी लिया।
बच्चों के लौटने के बाद भास्कर को परिवार ने बताई चौंकाने वाली कहानी..पढ़िए ये रिपोर्ट…
घरवालों को बताया- बागेश्वर धाम जाने के लिए निकले थे
सांगानेर सदर के रहने वाले मोहित सिंह (16) और नितिन सिंह (14) साल के दो सगे भाई हैं, जबकि अशोक नगर इलाके में रहने वाला अरमान (15) साल उनकी बुआ का बेटा है।
भास्कर टीम सांगानेर सदर इलाके में स्थित उनके घर पहुंची। यहां बच्चों की बुआ व बहन से हमारी मुलाकात हुई। बुआ शारदा कंवर ने बताया कि परिवार के सभी लोग बच्चों को लेने गए हैं।
लौटने के बाद सबसे पहले गांव जाएंगे और वहां पर पूजा करवाएंगे, क्योंकि वे सकुशल लौट आए हैं। जब उनसे पूछा गया कि बच्चों ने कुछ बताया या नहीं, तो उन्होंने कहा – ‘अभी वे ज्यादा कुछ नहीं बोल रहे। बस इतना बताया है कि बागेश्वर धाम जा रहे थे।’
घर पर भी रखे थे पैसे, लेकर नहीं गए
बच्चों मोहित सिंह और नितिन सिंह की बुआ शारदा कंवर ने बातचीत में बताया कि घर पर पैसे रखे थे, लेकिन एक भी बच्चे ने पैसा नहीं चुराया।
हमें शक है कि बच्चों को कोई गाइड कर रहा था, वरना इतने छोटे बच्चे इतनी प्लानिंग नहीं कर सकते। वो तो कभी अकेले ट्रेन में भी नहीं बैठे। उनमें से एक को तो लोकेशन तक चेक करना नहीं आता। लेकिन इस बात का सुकून है कि वो लौट आए हैं।
दोस्त से पूछा- पता लगाओ हमारे मां-पापा में कहां ढूंढ रहे हैं
भागने के बाद बच्चे लगातार परिवार की गतिविधियों पर नजर रख रहे थे। तीनों ने अपने मोहल्ले के ही एक अन्य नाबालिग दोस्त से इंस्टाग्राम पर चैट की।
नाबालिग उन्हीं के स्कूल में पढ़ता है और मोहित का करीबी दोस्त भी है। मोहित ने उससे चैट में पूछा- “तेरे मम्मी-पापा से पता कर कि हमारे घरवाले हमें कहां ढूंढ रहे हैं?”
इस पर मोहित के दोस्त ने स्कूल में ही पढ़ने वाले उसके एक रिश्तेदार स्टूडेंट से इसके बारे पूछा। लेकिन मोहित के दोस्त के परिवार तक ये बात पहुंची तो उन्होंने तुरंत बच्चों के घरवालों को बता दिया। यहीं से तलाश का बड़ा सुराग मिला।
मोहित सिंह और नितिन सिंह की बड़ी बहन गौरी राजावत ने बताया कि हमें पता चल गया था उन्होंने अपने दोस्त को इंस्टाग्राम पर मैसेज किया है।
इसके बाद हमने उनसे संपर्क करने की कोशिश की। लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं आया। हमने तो सोचा ही नहीं था कि ऐसा भी कुछ कर सकते है। जैसे रोज रहते थे बिल्कुल वैसे ही रहते थे।
बच्चों ने घर पर ये लेटर छोड़ा था।
लोकेशन हरियाणा से राजस्थान तक शिफ्ट होती रही
पुलिस और परिवार जब बच्चों को ढूंढने निकले तो उनकी लोकेशन लगातार बदलती रही। कभी हरियाणा के रेवाड़ी तो कभी राजस्थान की अलग-अलग जगहों पर उनके फोन ऑन होने की जानकारी मिली।
दरअसल, बच्चे फोन केवल जरूरी वक्त में ऑन करते और तुरंत स्विच ऑफ कर देते। यही वजह रही कि 8 दिन तक किसी को उनकी सटीक जानकारी नहीं मिल पाई।
बच्चे इंस्टाग्राम अकाउंट कैसे बनता है? कैसे ब्लॉक होता है? इसके तरीके अपने गूगल में सर्च कर रहे थे।
400 रुपए से शुरू हुआ भागने का मिशन
नौवीं क्लास का छात्र अरमान, जो तीन बहनों का इकलौता भाई है, इतना लाडला कि घरवालों ने कभी उसकी किसी ख्वाहिश को अधूरा नहीं छोड़ा। लेकिन इसी अरमान ने भागने की जिद में ऐसा कदम उठा लिया, जिससे परिवार अब तक सदमे में है।
अरमान की एक साइकिल थी, जिससे वह रोज स्कूल जाता था। ट्रेन टिकट का किराया जमा करने के लिए उसने साइकिल को ₹400 में बेच दिया।
जब परिवार बाद में बच्चों के डिजिटल वॉलेट और ट्रांजैक्शन हिस्ट्री चेक कर रहा था, तब पता चला कि ₹400 किसी अनजान अकाउंट से जमा हुए हैं। जांच की तो राज खुला अरमान ने खुद अपनी साइकिल बेच दी थी।
एक पुरानी तस्वीर में मोहित सिंह। परिवार का दावा है उन्हें अब तक कारण नहीं मिल पाया है कि तीनों घर से क्यों भागे थे।
ऐप से उधार लिए पैसे
तीनों को अच्छी तरह मालूम था कि ATM से पैसा निकालेंगे तो लोकेशन ट्रेस हो सकती है। हालांकि परिवार के मुताबिक तीनों में से किसी के पास बैंक अकाउंट नहीं था।
इसलिए उन्होंने Fampay Wallet नाम का ऐप डाउनलोड किया। ये एक डिजिटल पेमेंट ऐप है, जिसे खासतौर पर 10 से 19 साल के बच्चों और टीन एजर्स के लिए बनाया गया है।
यह बिना बैंक अकाउंट के ही ऑनलाइन पेमेंट की सुविधा देता है। इसमें UPI आईडी भी मिलती है, जिससे पैसों का लेन-देन आसान हो जाता है।
एयरप्लेन मोड पर डालकर वाईफाई से जोड़कर भी उपयोग में लिया जा सकता है। इसलिए बच्चों ने फोन को एयरप्लेन मोड पर ही रखा और इस ऐप के जरिए पेमेंट करते रहे। यही वजह रही कि घरवाले और पुलिस दोनों को लोकेशन का सुराग तुरंत नहीं मिला।
डीग में खुद कर दिया सरेंडर जैसा कॉल
आखिरकार 8 दिन बाद बच्चों ने खुद ही एक परिचित से संपर्क किया। बच्चे उस समय भरतपुर के डीग पहुंच चुके थे और यहां पहुंचकर उन्होंने फोन कर कहा- हम यहां हैं।
इसके बाद उनके परिवार के ही एक परिचित रोडवेज में कंडक्टर ने उन्हें बस स्टॉप पर देखा। फिर परिवार को वीडियो कॉल करके बच्चे दिखाए।
इसके बाद राजगढ़ से उनके रिश्तेदार डीग पहुंचे और बच्चों को अपने साथ लेकर पहले भरतपुर और फिर महवा पहुंचे। इतनी ही देर में जयपुर से माता-पिता भी वहां पहुंचे। इसके बाद बच्चों को सुरक्षित दौसा के पास स्थित गांवों में वापस लाया गया।
नितिन सिंह, अरमान और मोहित सिंह। तीनों रक्षाबंधन के दिन मिले थे।
दावा-गलत ट्रेन में बैठे
पुलिस पूछताछ में सामने आया कि नाबालिग तीनों भाइयों ने राखी के पारिवारिक प्रोग्राम के दौरान भागने की प्लानिंग की थी। उनका इरादा मध्य प्रदेश के बागेश्वर धाम आश्रम जाने का था, लेकिन गलती से हरियाणा के रेवाड़ी जाने वाली ट्रेन में बैठ गए।
एक धर्मशाला में 5 दिन तक रुके। कर्मचारी के शक होने पर उसे गलत जबाव देकर टरका दिया। पुलिस ने नाबालिग बच्चों को घर से भागने से होने वाले खतरे और नुकसान के बारे में बताया। उनके माता-पिता को भी सवाल-जबाव नहीं करने की सलाह दी गई है।
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