राष्ट्रीय

‘दिल्ली के मुख्यमंत्री जेल से चला रहे थे सरकार’, अमित शाह का अरविंद केजरीवाल पर तीखा वार

केंद्रीय गृह मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता अमित शाह ने शुक्रवार (22 अगस्त, 2025) को कांग्रेस नीत गठबंधन के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी पर नक्सलवाद का ‘समर्थन’ करने का आरोप लगाया और कहा कि अगर उन्होंने सलवा जुडूम पर फैसला नहीं सुनाया होता तो देश में माओवाद 2020 से पहले ही समाप्त हो गया होता.

मलयाला मनोरमा समूह की ओर से आयोजित मनोरमा न्यूज कॉन्क्लेव का उद्घाटन करते हुए शाह ने कहा कि कांग्रेस की तरफ से उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार चुने जाने से केरल में पार्टी की जीत की संभावना और कम हो गई है.

‘सलवा जुडूम पर फैसला देने वाली विचारधारा से प्रेरित जस्टिस रेड्डी’

शाह ने कॉन्क्लेव के तहत प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान सलवा जुडूम पर 2011 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा, ‘सुदर्शन रेड्डी वही व्यक्ति हैं, जिन्होंने नक्सलवाद की मदद की. उन्होंने सलवा जुडूम पर फैसला सुनाया. अगर सलवा जुडूम पर फैसला नहीं सुनाया गया होता तो नक्सली आतंकवाद 2020 तक खत्म हो गया होता. वह वही व्यक्ति हैं, जो सलवा जुडूम पर फैसला देने वाली विचारधारा से प्रेरित थे.’

दिसंबर 2011 में, सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति रेड्डी ने फैसला सुनाया था कि माओवादी विद्रोहियों के खिलाफ लड़ाई में आदिवासी युवाओं को विशेष पुलिस अधिकारियों के रूप में इस्तेमाल करना, चाहे उन्हें ‘कोया कमांडो’ कहा जाए, सलवा जुडूम कहा जाए या किसी अन्य नाम से पुकारा जाए, गैरकानूनी और असंवैधानिक है. उन्होंने यह आदेश भी दिया था कि इनसे तुरंत हथियार लिए जाएं.

वामपंथी दलों के दबाव में कांग्रेस का फैसला

शाह ने कहा कि केरल ने नक्सलवाद का दंश झेला है. केरल के लोग निश्चित रूप से देखेंगे कि कांग्रेस पार्टी, वामपंथी दलों के दबाव में, एक ऐसे उम्मीदवार को मैदान में उतार रही है, जिसने नक्सलवाद का समर्थन किया और सुप्रीम कोर्ट जैसे पवित्र मंच का इस्तेमाल किया. सत्तारूढ़ राजग ने महाराष्ट्र के राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुना है, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की पृष्ठभूमि वाले तमिलनाडु के एक वरिष्ठ भाजपा नेता हैं.

गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तारी के बाद 30 दिन तक हिरासत में रहने पर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को हटाने के प्रस्ताव वाले विधेयक लोकसभा में पेश किए जाने के बारे में पूछे जाने पर शाह ने कहा, ‘इस मामले पर और कुछ कहने की जरूरत नहीं है.

दिल्ली के पूर्व सीएम केजरीवाल पर कसा तंज

गृहमंत्री ने कहा कि मैंने संसद में देश की जनता से पूछा है, क्या वे चाहते हैं कि प्रधानमंत्री जेल से सरकार चलाएं? यह कैसी बहस है? यह नैतिकता का सवाल है. अब वे पूछ रहे हैं कि इसे पहले संविधान में क्यों नहीं शामिल किया गया. जब संविधान का मसौदा तैयार किया गया था, तब यह अनुमान नहीं लगाया गया था कि जेल जा चुके लोग निर्वाचित पदों पर बने रहेंगे.

गृह मंत्री ने दिल्ली के मुख्यमंत्री रहते हुए भ्रष्टाचार के आरोपों में अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और जेल जाने के बाद उनके इस्तीफा देने से इनकार करने का जिक्र किया. शाह ने कहा, ‘एक ऐसी घटना हुई थी जहां एक मुख्यमंत्री जेल से सरकार चला रहे थे तो क्या संविधान में संशोधन होना चाहिए या नहीं? उस समय भी भाजपा की सरकार थी, लेकिन हमें ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा.’

राहुल गांधी और कांग्रेस पर साधा निशाना

उन्होंने यह भी संकेत दिया कि अगर केजरीवाल ने अपनी गिरफ्तारी के बाद इस्तीफा दे दिया होता तो यह नया विधेयक पेश नहीं किया जाता. उन्होंने राहुल गांधी पर भी निशाना साधा और दावा किया कि कांग्रेस नेता ने 2013 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार की ओर से पेश किए गए एक अध्यादेश को फाड़ दिया था, जिसका उद्देश्य अयोग्य ठहराए गए या किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए सांसदों और विधायकों को राहत प्रदान करना था.

शाह ने कहा, ‘उस समय, मनमोहन सिंह की ओर से लालू प्रसाद की मदद के लिए यह अध्यादेश लाया गया था. राहुल गांधी ने नैतिकता के नाम पर कैबिनेट की ओर से अनुमोदित अध्यादेश की प्रति सार्वजनिक रूप से फाड़ दी थी. वही राहुल गांधी अब गांधी मैदान में लालू जी को गले लगाते हुए दिखाई दे रहे हैं.’

बिहार एसआईआर विवाद को लेकर बोले अमित शाह

‘वोट चोरी’ के आरोपों को लेकर गृह मंत्री ने कहा कि राहुल के कांग्रेस नेतृत्व में शामिल होने के बाद, वे संवैधानिक मामलों को संदेह की दृष्टि से देखते हैं. बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के संदर्भ में शाह ने कांग्रेस पर इस प्रक्रिया को लेकर अनावश्यक विवाद पैदा करने का आरोप लगाया.

उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस के पास निर्वाचन क्षेत्र, जिला और राज्य स्तर पर आपत्तियां उठाने का अवसर था, लेकिन उसने अब तक एसआईआर पर कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई है. अन्य राज्यों में एसआईआर के कार्यान्वयन के बारे में उन्होंने कहा कि यह निर्वाचन आयोग को तय करना है.

मृत्यु के बाद भी मतदाता सूची में 22 लाख लोगों के नाम

उन्होंने कहा, ‘निर्वाचन आयोग ने पूरे देश में एसआईआर कराने का फैसला किया है. बिहार की मतदाता सूची में ऐसे 22 लाख लोगों के नाम थे, जिनकी मृत्यु हो चुकी है. फर्जी वोट डाले जाने की संभावना है तो क्या उनके नाम हटाए जाने चाहिए या नहीं? यह सामान्य ज्ञान की बात है.’

ये भी पढ़ें:- कांग्रेस ने बिहार SIR पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का किया स्वागत, कहा- क्रूर हमले से बच गया लोकतंत्र 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button