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Pithori Amavasya 2025: पिठोरी अमावस्या पर क्यों की जाती है 64 योगिनियों की पूजा

भाद्रपद महीने की अमावस्या को कई नामों से जाना जाता है. इसे पिठोरी अमावस्या, कुशाग्रहणी अमावस्या या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहते हैं. वहीं दक्षिण भारत में इसे पोलाला अमावस्या भी कहा जाता है. हिंदू धर्म में यह तिथि महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस माताएं संतान की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं, श्राद्ध आदि के कार्य किए जाते हैं और 64 योगिनियों की पूजा भी की जाती है. बता दें कि इस साल 22 अगस्त 2025 को पिठोरी अमावस्या है.

पंचांग के अनुसार, भाद्रपद महीने की अमावस्या तिथि 22 अगस्त सुबह 11:55 पर शरू होगी और 23 अगस्त सुबह 11:35 बजे समाप्त हो जाएगी. पिठोरी व्रत प्रदोष मुहूर्त 22 अगस्त को शाम 07:01 से रात 09:17 तक रहेगा. इसलिए 22 अगस्त को ही पिठोरी अमावस्या की पूजा होगी.

पिठोरी अमावस्या पर 64 योगिनियों की पूजा का महत्व

धार्मिक कथाओं के मुताबित, भाद्रपद महीने की अमावस्या तिथि पर ही माता पार्वती ने 64 योगिनियों के साथ मिलकर गणेश जी की पूजा की थी. इसलिए हर साल माताएं पिठोरी अमावस्या पर आटे से 64 योगिनियों (छोटे-छोटे आटे के पिंड) की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा करती हैं. इन 64 योगिनियों को देवी शक्ति की सहचर और ब्रह्मांड की रक्षक शक्तियां माना जाता है.

पिठोरी अमावस्या पर 64 योगिनियों की पूजा इसलिए भी की जाती है, क्योंकि ये मातृत्व, संतान रक्षण और परिवार की रक्षा की अधिष्ठात्री देवियां मानी जाती हैं. आटे से निर्मित ये 64 योगिनियां देवी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं. इनकी पूजा से सुख, समृद्धि, सौभाग्य और संतान के दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है.

पिठोरी अमावस्या का महत्व

पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान इंद्र की पत्नी को पिठोरी अमावस्या की कथा सुनाई थी. माना जाता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से बलशाली और बुद्धिमान संतान की प्राप्ति होती है. परिवार में सुख-समृद्धि और सौभाग्य का वास होता है.

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