इस्लामाबाद में 34 दिन से जारी है बलूचों का धरना, गायब परिजनों की तलाश, अहिंसक आजादी की मांग…

बीते 34 दिनों से पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में सैकड़ों बलूच परिवार जबरन गायब अपने परिजनों और बलूचिस्तान की आजादी के लिए काम करने वाले बलूच नेताओं की रिहाई के लिए धरने पर बैठे हैं. लेकिन इन 34 दिनों में ना ही पाकिस्तान की सरकार का कोई शीर्ष नेता इनसे मिलने आया और ना ही इनकी मांग मानने को पाकिस्तान की तैयार है.
असल में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत से पिछले तीन सालों में 1,713 बलूच युवा जबरन गायब हो चुके हैं और ह्यूमन राइट्स काउंसिल ऑफ बलूचिस्तान (HRCB) के डेटा के मुताबिक, अकेले इस साल बलूचिस्तान में 390 से ज्यादा युवाओं के जबरन गायब होने के (Forced Disappearance) मामले सामने आ चुके हैं. ऐसे में बलूच मानवाधिकार संगठन और इन युवाओं के परिवारों का मानना है कि ये जबरन गायब युवा असल में पाकिस्तानी सेना या फिर ISI की अवैध हिरासत में हैं, ऐसे में इस्लामाबाद में ये परिवार अपने परिजनों की घर वापसी के लिए बीते 34 दिनों से बैठे है.
BYC के कई नेता भी आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार
बलूच युवाओं के अलावा पाकिस्तान की सरकार ने बलूचिस्तान की आजादी की अहिंसक लड़ाई लड़ने वाली बलूच यकजेहती कमेटी (BYC) के नेताओं को भी आतंकवाद के समर्थन के आरोप में हिरासत में रखा हुआ है, जिसमें BYC की नेता डॉ. महरंग बलोच भी शामिल हैं, ऐसे में इस्लामाबाद में जबरन गायब युवाओं की रिहाई की मांग करने वालों के परिजनों के साथ-साथ BYC के नेताओं की भी रिहाई की मांग करने वाले नेता भी धरने में शामिल हैं. वैसे बलूचिस्तान में युवाओं को जबरन गायब करने के मामले साल 2000 से बलूचिस्तान में सशस्त्र विद्रोह शुरू होने के बाद से ही शुरू हो गए थे जहां पाकिस्तानी सेना और ISI आजादी के आंदोलनों में शामिल युवाओं को बिना वारंट अवैध तरीके से हिरासत में लेने के बाद या तो मार देती थी या फिर बलोच विद्रोही गुट के खिलाफ लड़ने के लिए बनाए गए गुटों में शामिल करवा देती थी, लेकिन साल 2022 से इन मामलो में भारी इजाफा हुआ है.
प्राकृतिक संपदाओं से भरा बलूचिस्तान गृहयुद्ध की चपेट में
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत की बात करें, तो यह पाकिस्तान का प्राकृतिक संपदा के आधार पर सबसे प्रगतिशील इलाका है जहां सोना, चांदी, यूरेनियम, रेयर अर्थ मिनरल्स और कीमती रातों का खजाना बिखरा हुआ है. लेकिन इतनी प्राकृतिक संपदा होने बाद भी आज बलूचिस्तान गृहयुद्ध की चपेट में है और उसकी प्राकृतिक संपदा का फायदा पाकिस्तान की सत्ता में बैठे नेता और पाकिस्तान के विदेशी साझेदार उठा रहे हैं. बलूचिस्तान के चागई जिले के रेको डिक में अकेले 25.6 अरब पाउंड तांबा और 414 मेट्रिक टन सोने का भंडार है. साथ ही पास में ही सैंदक प्रोजेक्ट भी है, जिसे चीनी कंपनी MCC चला रही है, लेकिन प्राकृतिक संपदा का गढ़ होने के बाद भी बलूचिस्तान को कुल कीमत की सिर्फ 2% रॉयल्टी विकास कार्य के लिए मिलती है.
सुई गैस फील्ड से पूरे पाकिस्तान में जलते हैं चूल्हे, बलूचिस्तान के घरों में नहीं जलती आग
इसके अलावा, जहां बलूचिस्तान की सुई गैस फ़ील्ड पूरे पाकिस्तान को खाना पकाने के लिए नेचुरल गैस देती है तो अंतरराष्ट्रीय संगठनों के डेटा के मुताबिक आज भी 95 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी के घरों में गैस का कनेक्शन नहीं है, यही कारण है कि आज बलूचिस्तान में गृहयुद्ध इस कदर हावी है कि इसी साल बलूच लड़ाकों और पाकिस्तानी सेना के बीच संघर्ष में 50 से ज़्यादा बलूच लड़ाकों की मौत हो चुकी है और 200 से ज़्यादा पाकिस्तानी सैनिक बलूच लड़ाकों के हमले में मारे जा चुके हैं. यही कारण है कि आज बलूचिस्तान में अस्पताल और बड़े स्कूलों से ज्यादा सैन्य चौकिया हैं और टूटी सड़कें बलूचिस्तान की पहचान बन चुकी हैं. वैसे बलूचिस्तान में विद्रोह और गृहयुद्ध का इतिहास बेहद पुराना है और इस समय बलूचिस्तान में विद्रोह का पांचवा चरण चल रहा है जो साल 2000 में शुरू हुआ था.
बलूचिस्तान में कई बार हो चुका है हथियारबंद विद्रोह
असल में बलूचिस्तान में पहला हथियारबंद विद्रोह साल 1947 में ही बलूचिस्तान को पाकिस्तान में शामिल करने पर ही शुरू हो गया था, फिर दूसरा विद्रोह बलूचिस्तान के कलात इलाके की स्वत्ता छीने जाने पर हुआ, तीसरा साल 1962 में बलूचिस्तान में सेना की छावनी बनने पर हुआ, चौथा विद्रोह 1973 से 1977 तक चला जब पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने बलूचिस्तान की नेशनल अवामी पार्टी की सरकार को बर्खास्त कर दिया था और पांचवां विद्रोह साल 2000 में शुरू हुआ जब परवेज मुशर्रफ ने पहले बिना बलूच जानता की सहमति के ग्वादर पोर्ट का काम शुरू किया और फिर 2006 में नवाब बुगती की हत्या के बाद इसने हथियारबंद विद्रोह का रूप ले लिया जिसके बाद बलूच लिबरेशन आर्मी, बलूच लिबरेशन फ्रंट और बलूच रिपब्लिकन आर्मी जैसे शास्त्र संगठन बने जिन्हें पाकिस्तान और अमेरिका ने आतंकी संगठन तक घोषित किया है.
ग्वादर पोर्ट के निर्माण शुरू होने पर बलूच जानता और नेताओं ने इस आशंका के साथ विरोध शुरू किया था कि इसके बनने से मछुआरों की आमदनी पर संकट आ जाएगा और आज 25 साल बाद उनकी आशंका सही साबित हो रही है क्यूंकि ग्वादर पोर्ट की वजह से आज छोटे मछुआरे उन 60 से 70 फीसदी इलाकों में मछली नहीं पकड़ सकते हैं, जहां आज से 25 साल पहले पकड़ते थे क्योंकि ग्वादर पोर्ट आज चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का हिस्सा है और इसका 20 से 25 किलोमीटर हिस्सा रिस्ट्रिक्टेड जोन है, ऐसे में यह पोर्ट बलोच जानता के लिए सिर्फ राजनैतिक और रणनीतिक मोहरा है.
बलूचिस्तान की 56 फीसदी से ज्यादा आबादी अशिक्षित
बलूचिस्तान आज दक्षिण एशिया की सबसे ज्यादा अनपढ़ आबादी वाली प्रांत भी है और यहां कि 56 फ़ीसदी से ज़्यादा जनता अशिक्षित है. साथ ही अशिक्षा और रोजगार ना होने की वजह से बलूचिस्तान की 5 से 6 फीसदी जानता हर साल बलूचिस्तान छोड़कर पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों में नौकरी की तलाश में जाती है. इसके अलावा बलूचिस्तान में सशस्त्र विद्रोही संगठनों के साथ लड़ाई के लिए पाकिस्तानी सेना और ISI ने ISIS से लेकर लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के कैंप बलूचिस्तान में स्थापित कर दिए हैं जहां माष्टुंग शहर से ISIS ऑपरेट कर रहा है, क्वेटा की मरकज़ तकवा में लश्कर ए तैयबा का ट्रेनिंग कैम्प भी स्थित है.
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