Haryana Rewari Rezangla war story 1962 war explainer Indo-China war | रेजांग-ला शहीदों का 63…

23 जुलाई 2025 को लद्धाख के अहीर धाम में जल चढ़ाया गया। – फाइल फोटो
1962 के भारत-चीन युद्ध में लेह-लद्दाख के पहाड़ी दर्रे रेजांग-ला में शहीद में हुए 114 शहीदों का 63 साल बाद तर्पण किया गया है। इसके लिए रेजांग-ला पराक्रम यात्रा निकाली गई, जो 6500 किलोमीटर का सफर तय करके रेजांग-ला के अहीर धाम में पहुंची और गंगाजल अर्पि
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रेजांग-ला शौर्य समिति के महासचिव राव नरेश चौहान ने दैनिक भास्कर से बातचीत में बताया कि यात्रा 17 जून को जोधपुर से शुरू हुई। हवाई और सड़क रास्ते से पूर्व सैनिक और समिति के सदस्य हरियाणा, राजस्थान, यूपी और पंजाब से होकर लद्दाख पहुंचे। इस यात्रा ने रेजांग-ला में शहीद हुए 110 सैनिकों के गांव और जिले को टच किया। 14 जुलाई यानी सावन के पहले सोमवार को हरिद्वार से गंगाजल लिया और 23 जुलाई को अहीर धाम में जल चढ़ाया गया।
राव नरेश बताते हैं कि शहादत के 63 साल बाद भी उन सैनिकों का तर्पण नहीं हुआ था। इसलिए, वहां गंगाजल चढ़ाकर वीर सैनिकों का तर्पण किया गया। यात्रा का उत्तराखंड में बाबा रामदेव और चंडीगढ़ में मुख्यमंत्री नायब सैनी ने स्वागत किया था। 2 अगस्त को दिल्ली के नेशनल वॉर मेमोरियल में खत्म हुई। हर साल 18 नवंबर को रेजांग-ला दिवस मनाया जाता है।
युद्ध में 124 अहीर सैनिकों ने चीन के 1300 सैनिकों को ढेर कर दिया था। 124 भारतीय जवानों में से 114 शहीद हुए। जिंदा बचे सभी 10 शूरवीर रेवाड़ी से हैं। हवलदार निहाल को कुत्ते ने राह दिखाई थी, तब वह क्वार्टर मास्टर तक पहुंचे थे। रेवाड़ी में रेजांग-ला शौर्य स्मारक भी बना है।
रेजांग-ला शौर्य समिति ने 14 जुलाई 2025 को हरिद्वार से गंगाजल भरा। – फाइल फोटो
जानिए चीनियों की गिरफ्त से बच निकले हवलदार निहाल सिंह की जुबानी पूरी कहानी…
- 13 कुमाऊं बटालियन को मिला लद्दाख बचाने का टास्क: चीन से युद्ध लड़े रिटायर्ड हवलदार निहाल सिंह ने बताया कि चीन ने भारतीय सीमा में प्रवेश किया तो 13 कुमाऊं बटालियन की चार्ली कंपनी 2 किलोमीटर की एक पहाड़ी पर कई प्लाटूनों में बंटी हुई थी, जो चुशूल के हवाई अड्डे की रक्षा कर रही थी। यह भारत के लिए लद्दाख पर कब्जा बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी था। 18 नवंबर की सुबह भारी तोपखाने के साथ लगभग 5-6 हजार चीनी सैनिकों ने उस पर हमला कर दिया। रेजांग-ला पोस्ट पर करीब 3 हजार चीनी पहुंच गए, जहां उनके सामने 124 भारतीय सैनिक थे।
- मेजर शैतान सिंह के बॉडीगार्ड थे निहाल सिंह: युद्ध में चीनी सेना से मुकाबला कर रही 13 कुमाऊं बटालियन की चार्ली कंपनी के मेजर शैतान सिंह (परमवीर चक्र विजेता) की टीम ने अदम्य साहस दिखाया। निहाल सिंह बताते हैं- मैं तब मेजर शैतान सिंह का बॉडीगार्ड भी था। मैं 18 नवंबर को भी रेजांग-ला पोस्ट पर मेजर शैतान सिंह के साथ था।
- प्लाटून 7 ने हमले की सूचना दी: निहाल सिंह ने बताया- 10 मिनट बाद, प्लाटून 7 ने मुझे उन पर हुए हमले की सूचना दी। मैंने सुरजा राम (वीर चक्र) से पूछा कि हालात कैसे हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी पोजिशन ले ली है और 400 लोग 14 हजार फीट से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर चढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।
- मेजर ने पीछे हटने को कहा था, हमने रेजांग-ला नहीं छोड़ा: रिटायर्ड हवलदार ने बताया- मेजर ने कहा कि अगर हमें पीछे हटना पड़े, तो हट जाएं। लेकिन, जवानों और जेसीओ ने कहा कि हम रेजांग-ला नहीं छोड़ेंगे। हमें भगवान कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त है। मेजर ने कहा कि मैं तुम्हारे साथ हूं और मैं भी यादव हूं, तो क्या हुआ अगर मेरा नाम भाटी है?
- दोनों हाथों में लगी गोली, शरीर सुन्न पड़ रहा था: निहाल सिंह ने कहा- मैं लाइट मशीन गन (एलएमजी) के साथ मेजर शैतान सिंह का निजी रक्षक था। हमारी तरफ चीनी हैवी फायरिंग कर रहे थे। हमारे मेजर गोली लगने से शहीद हुए। मेरे भी दोनों हाथों में गोली लग चुकी थी। मैंने एलएमजी को अलग किया और उसे फेंक दिया, ताकि दुश्मन उसका इस्तेमाल न कर सके। मुझे बहुत दर्द हो रहा था। मेरा शरीर सुन्न था।
- चीनी कैंप से रात के समय भागा: निहाल सिंह बताते हैं- 18 हजार फीट की ऊंचाई पर थे और वहां बर्फबारी हो रही थी। शाम 5 बजे के आसपास वे (चीनी) मुझे अपनी चौकी पर ले गए। मुझे खाई के दूसरी तरफ उनकी तोपें दिखाई दे रही थीं। मैंने भागने की सोची, लेकिन इंतजार किया। जिन सैनिकों ने मुझे हिरासत में लिया था, वे इधर-उधर घूम रहे थे और बातें कर रहे थे। तब तक अंधेरा हो गया था और मुझे लगा कि मुझे भाग जाना चाहिए। मैं धीरे-धीरे वहां से निकल गया। जब मैं लगभग 500 मीटर चला, तो उन्होंने हवा में 3 गोलियां चलाईं।
- जिस कुत्ते को रोज रोटी खिलाता था, उसी ने दिखाई राह: निहाल ने बताया- 18 नवंबर की रात को चीनियों के कैंप से भागा तो मुझे पगडंडी नहीं मिल रही थी। एक जगह मैं गिर गया तो मुझे डॉग टॉमी मिल गया, जिसे मैं हर रोज पोस्ट पर रोटी डालता था। टॉमी हर पोस्ट पर घूमता रहता था। टॉमी ने मेरे आगे चलकर मुझे पगडंडी दिखाई, जिससे मैं नीचे क्वार्टर मास्टर तक पहुंचा। वहां भी काेई नहीं था। मैंने समझ लिया कि सब कुछ खत्म हो गया है।
- नहीं पता था पासवर्ड, दिन निकलने का इंतजार किया: रिटायर्ड हवलदार बताते हैं- मैं रात को मुख्य सड़क के पास पहुंच तो गया, लेकिन मुझे पासवर्ड याद नहीं था। इसलिए, मैंने दिन निकलने का इंतजार किया। मुझे डर था कि कहीं रात के समय बिना पासवर्ड अपने ही सैनिक गोली न मार दें। 19 नवंबर को दोपहर करीब 1 बजे मैं मुख्यालय पहुंचा। 22 नवंबर को मुझे जम्मू के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां मेरा इलाज हुआ।
- अब भी हाथों पर गोलियों के निशान: हवलदार से नायब सूबेदार प्रमोट हुए निहाल सिंह ने कहा कि युद्ध के लिए मुझे सेना मेडल मिला। दोनों हाथ पर अब भी गोलियों के निशान हैं। गोली हाथों को चीरते हुए बाहर निकल गई थी।
- एक कंपनी को मिले 15 मेडल: चीनियों के सामने अदम्य साहस दिखाने वाली इस कंपनी को 1 परमवीर चक्र, 8 वीर चक्र मरणोपरांत दिए गए। वहीं 6 जीवित सैनिकों में से 5 को सेना मेडल और एक को मेडल इन डिस्पैच दिया गया, जो कि अब तक एक ही कंपनी को मिले मेडल में सर्वाधिक है।
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