परम सुंदरी कौन है? शास्त्रों में छुपा वह रहस्य जो आज भी लोगों को हैरान करता है

सुंदरता की चर्चा हर युग में होती रही है. कभी इसे चेहरे की कांति माना गया, कभी शारीरिक आकर्षण. लेकिन भारतीय शास्त्रों ने यह सिखाया है कि असली सुंदरता केवल काया में नहीं, बल्कि गुण, शील और तेज में होती है.
परम सुंदरी का तात्पर्य उस स्त्री से है, जिसमें रूप के साथ-साथ धर्म, त्याग, पतिव्रता और दिव्यता भी समाहित हों. यही कारण है कि शास्त्रों में परमसुंदरी को किसी एक नाम तक सीमित नहीं किया गया, बल्कि इसे एक आदर्श स्थिति माना गया है.
देवी लक्ष्मी का रूप सर्वसुंदरी
विष्णु पुराण और पद्म पुराण में देवी लक्ष्मी को सर्वसुंदरी कहा गया है. वे केवल रूपवती ही नहीं, बल्कि धन, ऐश्वर्य और माधुर्य की अधिष्ठात्री भी हैं. एक श्लोक में कहा गया है-पद्मे पद्मालये देवि पद्मपत्रनिभेक्षणे. यत्र लक्ष्मीः तत्र श्रीः, सौंदर्यं तत्र सुंदरी. अर्थात जहां लक्ष्मी होंगी, वहां सौंदर्य और समृद्धि स्वयं प्रकट होगी.
देवी लक्ष्मी का सौंदर्य केवल आंखों को आकर्षित करने वाला नहीं है, बल्कि उनका आभामंडल, उनकी करुणा और उनका माधुर्य उन्हें परमसुंदरी बनाता है.
शिव की अर्धांगिनी और त्रैलोक्य सुंदरी का शास्त्रीय रहस्य
शिवपुराण और देवीभागवत में माता पार्वती को त्रैलोक्य सुंदरी कहा गया है. उनकी सुंदरता का रहस्य केवल चेहरे की कांति या अंगप्रत्यंग की छवि नहीं, बल्कि उनकी तपस्या और अडिग धैर्य है.
शिव को पाने के लिए पार्वती ने घोर तपस्या की, जिसने उन्हें तेजस्विनी बना दिया. शिवपुराण में उल्लेख है कि त्वं त्रैलोक्यसुंदरी, त्वं शिवा, त्वं जगज्जननी. यानी पार्वती तीनों लोकों की सुंदरी हैं, क्योंकि उनकी सुंदरता त्याग और तप से उपजी है.
रति का सौंदर्य
कामदेव की पत्नी रति को शास्त्रों में अनन्या रूपवती कहा गया है. कामशास्त्र और शिवपुराण में उनका वर्णन प्रेम और माधुर्य की देवी के रूप में मिलता है.
उनका सौंदर्य इतना अप्रतिम था कि देवगण भी मोहित हो जाते. लेकिन रति की सुंदरता केवल रूप तक सीमित नहीं रही, बल्कि वे प्रेम, कामना और भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक बनीं. यही उन्हें परमसुंदरी की श्रेणी में स्थापित करता है.
सीता हैं त्याग और पतिव्रता की भू-परमसुंदरी
रामायण की सीता को धरती पर जन्मी परमसुंदरी कहा गया. उनका सौंदर्य केवल रूप तक सीमित नहीं था. अयोध्या से लेकर लंका तक, हर जगह उनकी चर्चा उनके त्याग, पतिव्रता और धैर्य के कारण हुई. वनवास की कठिनाइयों में भी उन्होंने धर्म का पालन किया और यही उन्हें भू-परमसुंदरी बनाता है.
सावित्री
सावित्री ने पति सत्यवान के प्राण बचाने के लिए यमराज तक का सामना किया. उनकी सत्यनिष्ठा और दृढ़ निश्चय ने यह सिद्ध कर दिया कि सुंदरता का अर्थ साहस और धर्म पालन भी है. यमराज तक ने उनके चरित्र की प्रशंसा की.
परमसुंदरी कोई एक नहीं, बल्कि गुणों का संगम है
आम धारणा यही है कि परमसुंदरी कोई एक देवी या स्त्री होगी. लेकिन शास्त्रों में देखने पर चौंकाने वाला तथ्य सामने आता है. देवी लक्ष्मी सौंदर्य और समृद्धि का संगम हैं.
माता पार्वती सौंदर्य और तपस्या की प्रतीक हैं. रति सौंदर्य और प्रेम की अधिष्ठात्री हैं. सीता सौंदर्य और त्याग की मूर्ति हैं और सावित्री सौंदर्य और सत्य का जीवंत उदाहरण हैं.
इसलिए परमसुंदरी को केवल एक नाम या रूप में सीमित करना शास्त्रों की दृष्टि में संभव नहीं. यह वह आदर्श स्थिति है, जहां रूप और गुण का संपूर्ण संगम दिखाई देता है.
क्यों असली सुंदरता आज भी चरित्र में है
आज के दौर में सुंदरता को अक्सर सोशल मीडिया फिल्टर, मेकअप और फैशन से जोड़ा जाता है. लेकिन शास्त्र हमें याद दिलाते हैं कि सुंदरता की असली परिभाषा आज भी वही है जो सदियों पहले थी.
सुंदरता केवल चेहरे की नहीं, बल्कि व्यक्तित्व की है. आत्मविश्वास, त्याग और सच्चाई आज भी सुंदरता का सबसे बड़ा पैमाना है.आधुनिक नारी के लिए परमसुंदरी का अर्थ है…अपने भीतर के तेज, धर्म और आत्मविश्वास को पहचानना और दुनिया के सामने प्रकट करना.
परमसुंदरी वही है जो अपने तेज और गुणों से संपूर्ण सृष्टि को आलोकित कर दे. इसलिए परमसुंदरी कोई एक रूप या चेहरा नहीं है. वह तो एक दिव्य आदर्श है, जिसमें धर्म, गुण और तेज का अद्वितीय संगम हो.
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