हिंदू परंपराओं से प्रभावित मुगल बादशाह अकबर ने मांस खाने पर लगाई रोक, सूर्य नमस्कार करने पर…

साल 1574 में अकबर ने फतेहपुर सीकरी में मकतबखाना नामक विभाग की स्थापना की. इस विभाग का मसकद था संस्कृत ग्रंथों का फारसी में अनुवाद करना. इसके लिए हिंदू विद्वानों और मुस्लिम अनुवादकों की संयुक्त टीम बनाई गई. गौर करने वाली बात ये है कि मुल्लाह अब्दुल कादिर बदायूंनी, जो कट्टर विचारों के लिए प्रसिद्ध थे. उन्हें भी इस काम में शामिल किया गया. बदायूंनी जैसे कट्टरपंथियों ने इसे ऊपर का काम मानकर न केवल अकबर बल्कि खुद को भी धिक्कारा. हालांकि, इसी प्रक्रिया ने अकबर को रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों से परिचित कराया, जिससे उसकी धार्मिक सोच में व्यापक परिवर्तन आने लगा. अब्राहम इराली ने अपनी किताब ‘एम्परर्स ऑफ द पिकॉक थ्रोन: द सागा ऑफ द ग्रेट मुगल्स’ में अकबर के समकालीन इतिहासकार मुल्ला अब्द-उल-कादिर बदायूंनी (1540 – 1615) का हवाला देते हुए लिखा कि अकबर हिंदू परंपराओं से प्रभावित हो गए.
हिंदू उपदेशकों जैसे पुरुषोत्तम और देवी के सानिध्य से अकबर का मन अहिंसा और जीव हत्या से दूरी बनाने की ओर झुका. उसने आदेश दिया कि साल के कुछ खास दिनों और त्योहारों पर मांस न खाया जाए. रविवार को पूरे राज्य में मांस खाने पर रोक लगाई गई. सावन मास और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होने वाले 18 दिनों तक जीव हत्या वर्जित रही. धीरे-धीरे अकबर ने इतने उपवास दिवस घोषित किए कि साल का आधा समय प्रजा बिना मांस के बिताने लगी. बदायूंनी लिखते हैं कि अकबर चाहता था कि उसकी प्रजा में यह भावना गहरी बैठ जाए कि मांस खाना आवश्यक नहीं है.
सूर्य पूजा और हिंदू परंपराओं का प्रभाव
हिजरी 991 (1583 ई.) में अकबर ने सूर्य पूजा को दरबार का हिस्सा बना लिया. उसने आदेश दिया कि दिन में चार बार – सुबह, मध्यान्ह, संध्या और मध्य रात्रि – सूर्य की उपासना की जाए. अकबर ने सूर्य के 1000 नाम प्रतिदिन जाप करने लगा. वह हिंदुओं की तरह ललाट पर तिलक लगाने लगा. मस्जिदों और इबादतगाहों को उसने भंडार और हिंदू शैली के उपासना स्थलों में परिवर्तित कर दिया. यह परिवर्तन दरबारियों और मुल्लाओं को अखरने लगा. बदायूंनी ने तंज कसते हुए लिखा कि अकबर मज़हब को अपनी मर्ज़ी से चलाना चाहता है.
हिंदू-मुस्लिम दोनों के लिए भंडारे और सेवा
अकबर ने सामाजिक सद्भावना बढ़ाने के लिए फतेहपुर सीकरी के पास तीन स्थान बनवाए, जो इस प्रकार है:
- धर्मपुरा – जहां हिंदुओं को भोजन कराया जाता.
- खैरपुरा – जहां गरीब मुसलमानों के लिए व्यवस्था थी.
- जोगीपुरा – जहां जोगियों के लिए भोजन और योगाभ्यास की व्यवस्था की गई.
जोगियों ने अकबर को योग, रसायन शास्त्र और सोना बनाने की विधि सिखाई. अकबर इनसे इतना प्रभावित हुआ कि उसने हरम में बिताया समय घटा दिया, खान-पान साधारण कर लिया और मांस से दूरी बना ली.
बदायूंनी की आलोचना और अकबर की मान्यताएं
बदायूंनी ने अकबर की धार्मिक नीतियों पर तीखे व्यंग्य किए. उसने लिखा कि अकबर सूर्य पूजा, तिलक और हिंदू परंपराओं का पालन करके इस्लाम से दूर होता जा रहा है, लेकिन अकबर का नजरिया अलग था. वह सभी धर्मों के सार को मिलाकर एक नई धार्मिक व्यवस्था (दीन-ए-इलाही) गढ़ रहा था. उसे विश्वास हो गया था कि मानव आत्मा पुनर्जन्म ले सकती है और योग व साधना से दीर्घायु संभव है.
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