12 रबीउल अव्वल: ईमान से जश्न या बस दिखावे का तमाशा! असली सुन्नत क्या है?

12 Rabi-ul-Awwal Celebration: इस्लाम में दो ईदें सबसे ज्यादा अहम मानी जाती हैं, लेकिन इनके अलावा मुसलमान एक और ईद बड़े धूमधाम से मनाते हैं, जिसे ईद-ए मिलाद उन नबी कहा जाता है. इसे 12 वफात या मौलिद भी कहा जाता है.
हर साल इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-अल-अव्वल के 12 वें दिन को पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की याद में मनाया जाता है. इस दिन मुसलमान पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की याद में इकट्ठा होते हैं, उनकी जिंदगी और नेक कामों को याद कर दुआओं और खुशियों के साथ यह खास मौका मनाते हैं.
ईद-ए मिलाद उन नबी की अहमियत
लेकिन सवाल ये है कि ये जश्न सच में ईमान और सुन्नत के हिसाब से होता है या बस दिखावे और सोशल मीडिया पर दिखाने का मौका बन गया है. कई जगह बड़े-बड़े कार्यक्रम, महंगी सजावट और शोर-शराबा देखने को मिलता है, जबकि असली सुन्नत में सादगी, दुआ, दान और नेक कामों पर जोर होता है.
आइए जानते हैं कि क्या लोग इस दिन की अहमियत समझते हैं या सिर्फ रौनक दिखाते हैं?
12 रबी-अल-अव्वल क्यों मनाते है?
मुसलमान 12 रबी-अल-अव्वल या ईद-ए मिलाद उन नबी इसलिए मनाते हैं क्योंकि यह दिन पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की जिंदगी से जुड़ा हुआ खास दिन है. रबी-अल-अव्वल के महीने की 12 तारीख को उनका यौम-ए-पैदाइश मक्का में हुआ था और वफात (मौत) मदीना में हुई थी, इसलिए इसे दोनों शहरों से जोड़ा जाता है.
इसे ” बारह वफात” भी कहा जाता है, इसलिए कुछ लोग इस दिन उन्हें उनकी मौत की याद में याद करते हैं. इस दिन मुसलमान पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जिंदगी, उनके नेक काम और उनके बताए रास्तों को याद करते हैं.
कुछ लोग इसे उनके पैदाइश के जश्न के तौर पर मनाते हैं, जबकि कुछ इसे उनकी याद में इबादत और दुआ के साथ मनाते हैं. यही वजह है कि 12 रबी-अल-अव्वल मुसलमानों के लिए खास दिन माना जाता है, जबकि शिया मुसलमान 17 रबी-उल-अव्वल को ईद-ए मिलाद उन नबी मनाते हैं.
12 वफात कैसे मानते है?
ईद-ए मिलाद उन नबी के दिन मुसलमान पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तालीमात और आदर्शों को याद करते हैं. इस दिन मस्जिदों में खास नमाज अदा की जाती है, कुरान कीरत की जाती है, और पैगंबर पर सल्लू अल्लाहू अलैहि वसल्लम भेजा जाता है.
ज्यादातर लोग इसे बड़े उत्साह के साथ जश्न की तरह मनाते हैं, तो कुछ लोग इसे खामोशी और इबादत में गुजारते हैं. इसके अलावा, इस दिन को बड़े पैमाने पर जुलूस निकालते हैं, घर-दरवाजे सजाते हैं और शहर रोशनी से जगमगाते हैं. जिसमें पैगंबर की जिंदगी और उनके पैगाम को याद कर के इकबाल और मोहब्बत का संदेश दिया जाता है.
ईद-ए मिलाद उन नबी 2025 कब है?
इस साल ईद-ए मिलाद उन नबी 5 सितंबर को मनाई जाएगी. इसी दिन 12 रबी-उल-अव्वल भी है. इसे खुशियों और यादों का त्योहार माना जाता है, क्योंकि इसी दिन पैगंबर मुहम्मद साहब का पैदाइश हुआ था और इसी दिन उन्होंने दुनिया से रुखसत ली थी.
इस्लामिक नजरिए से
इस्लाम में 12 रबी-अल-अव्वल का जश्न मनाना जरूरी नहीं माना गया है. असल बात यह है कि इसे पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत के मुताबिक मनाना चाहिए. इसका मतलब है कि दिखावे या बड़े कार्यक्रमों से ज्यादा, सादगी, दुआ, जकात और नेक कामों पर ध्यान दिया जाए.
असली मकसद उनकी जिंदगी और बताई हुई बातों को याद करना और ईमान को मजबूत करना है, न कि सिर्फ जश्न या शोर-शराबा करना.
सोशल मीडिया और दिखावा
अक्सर लोग इस दिन का जश्न सिर्फ फोटो और वीडियो के लिए मनाते हैं. लोग अपने सोशल मीडिया पर इसे दिखाने में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं, न कि असली ईमानदारी और भावना में. बड़े-बड़े आयोजनों और शोर-शराबे के बीच असली मकसद, यानी पैगंबर की तालीम और नेक काम करना, वहीं पीछे रह जाता है.
असली सुन्नत क्या कहती है?
पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तालीम में हमेशा सादगी और ईमानदारी पर जोर दिया गया. उनका तरीका यह सिखाता है कि दिखावे से ज्यादा, दुआ, जकात और नेक काम ही असली जश्न की असली पहचान हैं.
असली मकसद सिर्फ खुशियां मनाना नहीं, बल्कि दूसरों की मदद करना, अपने ईमान को मजबूत रखना और पैगंबर की सीखों पर अमल करना है. यही असली सुन्नत है.
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