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‘NIA कोर्ट जल्दी बनाईए वरना दुर्दांत अपराधी सिस्टम को हाईजैक….’, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से…

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (4 सितंबर, 2025) को एनआईए अदालतों स्थापित करने में हो रही देरी पर नाराजगी जताई. कोर्ट ने कहा कि विशेष अदलातें बनाने में उसकी विफलता की वदह से कठोर अपराधी मुकदमें में देरी करके सिस्टम को हाईजैक करने की कोशिश करते हैं. कोर्ट ने कहा कि दुर्दांत अपराधी न्याय प्रणाली का दुरुपयोग करने का प्रयास करते हैं और अदालतों को जमानत देने के लिए मजबूर करते हैं.

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच एक माओवादी समर्थक की याचिका पर पर सुनवाई कर रही थी. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भाटी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केंद्र समर्पित एनआईए कोर्ट्स स्थापित करने के लिए राज्यों के साथ सलाह कर रही है, जिस पर कोर्ट ने अदालतें स्थापित करने में हो रही देरी पर नाराजगी जताई.

एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट के बताया कि इस संबंध में जल्द ही निर्णय लिया जाएगा. कोर्ट ने केंद्र से कहा कि जघन्य अपराधों में मुकदमों का ट्रायल समयबद्ध तरीके से पूरा किए जाने से समाज में एक अच्छा संदेश जाएगा क्योंकि दुर्दांत अपराधियों को ऐसा लगता है कि वे सिस्टम को हाईजैक कर सकते हैं.

बेंच ने कहा, ‘यह आपके लिए प्रोत्साहन का एक अवसर है… कभी-कभी ये दुर्दांत अपराधी पूरी न्याय व्यवस्था पर कब्जा जमा लेते हैं और मुकदमे को पूरा नहीं होने देते, जिसके परिणामस्वरूप अदालतें देरी के आधार पर उन्हें जमानत देने के लिए मजबूर हो जाती हैं.’

एएसजी ऐशवर्या भाटी ने कहा कि राज्यों को इस बात पर सहमत होना होगा कि ऐसी अदालतें स्थापित करने का अधिकार उनके पास है. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि केंद्र को सिर्फ आवश्यक बजट आवंटन करने और हाईकोर्ट्स की सहमति की आवश्यकता है, जबकि राज्य सरकारों की भूमिका पर बाद में विचार किया जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 14 अक्टूबर के लिए स्थगित कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई को विशेष कानूनों से संबंधित मामलों के लिए अदालतें स्थापित नहीं करने को लेकर केंद्र और महाराष्ट्र सरकार की खिंचाई की थी, क्योंकि अदालतें अभियुक्तों को जमानत देने के लिए मजबूर होंगी.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर प्राधिकारी एनआईए अधिनियम और अन्य विशेष कानूनों के तहत त्वरित सुनवाई के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे वाली अदालतें स्थापित करने में विफल रहते हैं, तो अदालत को अनिवार्य रूप से अभियुक्तों को जमानत पर रिहा करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, क्योंकि समयबद्ध तरीके से मुकदमे को पूरा करने के लिए कोई प्रभावी तंत्र नहीं है.

बेंच ने महाराष्ट्र सरकार से कहा कि मौजूदा अदालतों को विशेष अदालतों के रूप में नामित करना उच्च न्यायालय को उनका नाम बदलने के लिए मजबूर करने के समान है. सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के नक्सल समर्थक कैलाश रामचंदानी की जमानत याचिका पर यह आदेश पारित किया. साल 2019 में एक आईईडी विस्फोट में राज्य पुलिस की त्वरित प्रतिक्रिया टीम के 15 पुलिसकर्मियों के मारे जाने के बाद रामचंदानी पर मामला दर्ज किया गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने 17 मार्च के अपने पिछले आदेश को वापस ले लिया, जिसमें मुकदमे की सुनवाई में अत्यधिक देरी के आधार पर उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी. कोर्ट ने कहा कि अगर केंद्र और राज्य सरकारें एनआईए मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालत स्थापित करने में विफल रहती हैं, तो उनकी राहत याचिका पर विचार किया जाएगा.

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