जिस घोड़े की गर्दन काटी वो हो गया जिंदा, देवी की शक्ति देखकर चौंक गया अकबर! फिर भेंट लेकर…

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले का नगरकोट एक प्राचीन पहाड़ी नगर है. यहां स्थित वज्रेश्वरी सिद्धपीठ को देवी दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. मान्यता है कि पांडवों ने इस मंदिर की स्थापना की थी. समय-समय पर मंदिर कई बार नष्ट हुआ और कई बार पुनर्निर्मित भी किया गया. यहां सदियों से देशभर से श्रद्धालु देवी के दर्शन के लिए आते हैं और मान्यता है कि माता उनकी प्रार्थनाओं को स्वीकार करती हैं.
मंदिर के सभामंडप के सामने एक विशेष पत्थर का पैनल और दाहिने हिस्से में ध्यानु भगत की प्रतिमा लगी है, जिसमें वे अपना सिर हाथों में लिए हुए दिखते हैं. यह प्रतिमा उस अद्भुत कथा से जुड़ी है, जिसमें उनकी भक्ति और अकबर के सामने देवी का चमत्कार प्रकट हुआ था. इस बात का जिक्र इतिहासकार डॉ मोहनलाल गुप्ता ने किया है. मोहनलाल गुप्ता इतिहास से जुड़ी कई पुस्तकें लिख चुके हैं.
ध्यानु भगत और अकबर का सामना
कहानी के अनुसार मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में ब्रज प्रदेश के मैदानी गांव निवासी ध्यानु भगत हजार यात्रियों के साथ ज्वाला देवी के दर्शन के लिए निकले. इतनी बड़ी संख्या देखकर अकबर के सैनिकों ने उन्हें रोककर बादशाह के दरबार में पेश किया. अकबर ने जब पूछा तो ध्यानु भगत ने बताया कि वे माता ज्वाला के दर्शन के लिए जा रहे हैं, जो संसार की पालनकर्ता हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं. उन्होंने यह भी कहा कि उनके मंदिर में बिना तेल और बत्ती के अखंड ज्योति जलती रहती है. अकबर ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने का फैसला किया. उसने ध्यानु के घोड़े की गर्दन कटवा दी और कहा कि अगर उनकी माता सचमुच शक्तिशाली हैं तो घोड़े को जीवित करें. ध्यानु ने वादा किया कि वे देवी से प्रार्थना करेंगे और अगर घोड़ा जीवित न हुआ तो वे खुद अपना सिर अर्पित कर देंगे.
देवी का चमत्कार और भक्ति की शक्ति
ध्यानु भगत ज्वाला देवी मंदिर पहुंचे और उन्होंने माता से प्रार्थना की. जब देवी ने तुरंत उत्तर नहीं दिया तो उन्होंने तलवार से अपना सिर काटकर अर्पित कर दिया. कहानी है कि उसी पल माता प्रकट हुईं और ध्यानु का सिर दोबारा धड़ से जोड़ दिया. घोड़ा भी जीवित हो गया. देवी ने ध्यानु से कहा कि वे कोई वर मांगें. ध्यानु ने निवेदन किया कि माता अपने भक्तों की कठिन परीक्षा न लें और केवल नारियल की भेंट और सच्ची प्रार्थना से ही मनोकामनाएं पूरी करें. तब से यह परंपरा चली आ रही है.
अकबर की परीक्षा और छत्र की कथा
उधर अकबर को जब घोड़े के जीवित होने का समाचार मिला तो भी उसे विश्वास नहीं हुआ. उसने मंदिर की ज्योति पर तवे रखवाए और नहर से पानी डलवाया, परंतु ज्योति नहीं बुझी. तब अकबर ने देवी को सोने का एक छत्र (छत्रछाया) अर्पित किया. किंतु मंदिर में पहुंचकर छत्र उसके हाथ से गिरा और वह किसी अज्ञात धातु में परिवर्तित हो गया. अकबर समझ गया कि देवी ने उसकी भेंट अस्वीकार कर दी है. यह खंडित छत्र आज भी ज्वाला देवी मंदिर में सुरक्षित रखा हुआ है और हजारों भक्त इसे श्रद्धा से देखते हैं.
ध्यानु भगत की परंपरा आज भी जीवित
ध्यानु भगत की प्रतिमाएं नगरकोट मंदिर में आज भी विद्यमान हैं. उनके वंशज पिछले 500 वर्षों से अपने शरीर पर लोहे की जंजीरें बांधकर और मोर पंख धारण कर माता के मंदिर की परिक्रमा करते हैं.यह परंपरा इस विश्वास का प्रतीक है कि उनके पूर्वज को कभी लोहे की जंजीरों में बांधकर मंदिर तक लाया गया था.
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