Studied by working as a daily wage labourer, nurtured his dream by selling ice cream | आईसक्रीम…

‘मैंने पढ़ाई के लिए आइसक्रीम बेची…पटवारी में सेकेंड टॉपर बना…2 नौकरियां छोड़कर थानेदार की वर्दी थामी थी।’
.
ये कहानी भीलवाड़ा के लादूलाल की है। उनकी तरह ही सवाईमाधोपुर की सुगना का जब SI में सिलेक्शन हुआ तो एक साथ 4 खुशियां मिलीं। सुगना की 4-4 भर्तियों में सरकारी नौकरी लगी। सुगना ने 3 नौकरियों को दांव पर लगाकर सब इंस्पेक्टर बनना चुना था।
ऐसे कई अभ्यर्थी हैं, जिन्होंने सालों तक मेहनत की…जीवन में कड़े संघर्ष के बाद नौकरी पाई थी। अब एसआई भर्ती रद्द होने के बाद उनके ही नहीं परिवार के चेहरों पर ही मायूसी है। भास्कर ने उन सब इंस्पेक्टर्स से बात कर उनकी पीड़ा जानी….
लादूलाल : पढ़ाई के लिए बेची आईसक्रीम सब इंस्पेक्टर भर्ती में 36वीं रैंक हासिल करने वाली लादूलाल ने वर्दी पहनने के लिए अपनी 2-2 नौकरियां दांव पर लगाई थी। भीलवाड़ा जिले के एक छोटे से गांव पालरा में किसान परिवार में जन्मे लादूलाल के माता-पिता अनपढ़ हैं। बेटा अफसर बन सके, इसलिए दिन-रात खेतों में मजदूरी कर पढ़ाया।
लादूलाल बताते हैं- घर के हालात अच्छे नहीं थे…ग्रेजुएशन का खर्च निकालने के लिए गर्मी की छुट्टियों में अमृतसर (पंजाब) में जाकर आईसक्रीम का ठेला लगाता था। उसी कमाई से अपनी फीस भरता। साल 2019 में ग्रेजुएशन पूरी करने के साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगा। उसी मेहनत का परिणाम रहा कि पटवारी भर्ती-2021 में न सिर्फ चयन हुआ बल्कि पूरे राजस्थान में दूसरी रैंक भी प्राप्त की।
भीलवाड़ा जिले के पालरा गांव के लादूराम गर्मी की छुटि्टयों के दौरान अमृतसर (पंजाब) में जाकर आईसक्रीम का ठेला लगाते थे। इसकी कमाई से फीस भरते थे।
इसके बाद ग्राम विकास अधिकारी 2021 में भी चयन हुआ। फिर एसआई भर्ती परीक्षा में पूरे राजस्थान में 36वी रैंक के साथ चयन हासिल किया। मेरी तहसील में पहली बार कोई सीधी भर्ती से एसआई बना था। मेरे माता-पिता को तब बड़ा गर्व महसूस हुआ था। उसी साल फरवरी में शादी भी हुई। लेकिन आज पीछे मुड़कर देखता हूं तो खुद से सवाल करता हूं- क्या मैंने जो कुछ भी किया वो सब व्यर्थ था?
लादूलाल का कहना है कि इस फैसले से निर्दोष और दोषियों को एक ही तराजू से तौल दिया गया है। इतने संघर्ष के बाद सक्सेस पाने के बावजूद फर्जी होने का टैग लगा दिया है। हमारे आत्मविश्वास को चोट पहुंची है। भविष्य को लेकर असमंजस में हैं।
सुभाष कुमावत : 60 रुपए में दिहाड़ी कर चलाया पढ़ाई का खर्च
हनुमानगढ़ जिले के गांव किशनपुरा के रहने वाले सुभाष कुमावत के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे। पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए छठी क्लास से ही मजदूरी शुरू कर दी थी। मां नरेगा में मजदूरी कर पेट पालती।
सुभाष कुमावत ने बताया गर्मी की छुट्टियों में मेरी क्लास के सभी बच्चे अपनी नानी के घर जाते थे। लेकिन भीषण गर्मी में मैं 60 रुपए प्रतिदिन की दिहाड़ी करने जाता था। साल 2012 से पिता गुमशुदा हैं। घर की पूरी जिम्मेदारी मां पर थी। मां ने कभी मनरेगा में तो कभी दूसरों के खेतों में काम करके हमें पढ़ाया लिखाया।
सुभाष बताते हैं- घर के हालात सुधारने के लिए साल 2016 से ही मैंने सरकारी नौकरी की तैयारी शुरू कर दी थी। सूरतगढ़ में एक कोचिंग आश्रम में जाकर खूब मेहनत की। दो बार आरएस मैन्स का एग्जाम दिया। लेकिन फाइनल सिलेक्शन नहीं हुआ। एसआई भर्ती-2018 में 208वी रैंक आई थी। लेकिन होरिजोंटल आरक्षण के चलते उसमें भी सिलेक्शन नहीं हो पाया था। इस बार 292वीं रैंक में सिलेक्शन हुआ तो खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। ऐसा लग रहा था कि मेहनत का फल मिल गया। लेकिन आज देखता हूं तो हाथ में कुछ नहीं है। भविष्य का कुछ समझ नहीं आ रहा। इतनी अनिश्चितता तो किसी भी नौकरी में नहीं होगी।
गीता निनामा : कॉन्स्टेबल से SI में सिलेक्शन, अब दोनों ही नौकरियां छूटी
दक्षिण राजस्थान के आदिवासी इलाके छोटी सरवन की रहने वाली गीता निनामा की कहानी भी संघर्षों से भरी हुई है। कई बार ऐसी परिस्थितियां बनीं जब गीता ने सोचा कि पढ़ाई छोड़कर परिवार के सभी सदस्यों की तरह मजदूरी करने लग जाए। लेकिन मन से आवाज आती थी- नहीं, जहां तक हो सके पढ़ाई करूं, बाद में तो ये सब करना ही है।
कच्चे घर में टपकती केलू की छत में गीता का संघर्ष जारी रहा। गांव की ही सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। उसका भी खर्चा निकालने के लिए गर्मियों की छुट्टियों में मजदूरी की। पिता का स्वास्थ्य बचपन से ही ठीक नहीं था, इसलिए परिवार की आर्थिक स्थिति ज्यादा खराब हो गई थी। सितंबर 2017 में बीमारी की वजह से पिता का निधन हो गया। गरीबी में पूरा परिवार दबा हुआ था। लेकिन संघर्षों की बदौलत सफलता मिलती रही।
सब इंस्पेक्टर की वर्दी में अपनी मां के साथ गीता।
गीता बताती हैं- साल 2021 बैच राजस्थान पुलिस कॉन्स्टेबल बांसवाड़ा में जनरल महिला वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त किया। जो मेरे परिवार के लिए और व्यक्तिगत बहुत बड़ी उपलब्धि थी। हमारे परिवार में पहली बार कोई सरकारी नौकरी लगा था। मैंने कॉन्स्टेबल जॉइन किया और पढाई भी जारी रखी। उसी का नतीजा रहा कि मेरा चयन पटवारी के लिए हो गया। हालांकि मैंने ज्वाइन नहीं किया। इसके बाद सब इंस्पेक्टर पद के लिए तैयारी शुरू कर दी। फाइनली सिलेक्ट हुई। लेकिन आज जब ये भर्ती ही रद्द हो गई तो जीवन में मायूसी आ गई है। रोने के अलावा कुछ नहीं बचा है। समझ नहीं आ रहा है क्या करुं और क्या ना करुं।
सुगना : एसआई के लिए 3 नौकरी छोड़ी, अब फिर हुई बेरोजगार
बौंली निवासी सुगना का जन्म मजदूर परिवार में हुआ। घर में कुल सात बहन-भाई हैं। पेशे से राज मिस्त्री पिता दूर-दराज शहरों में मजदूरी करके लाते। उसी से सबकी पढ़ाई हुई। सभी भाई-बहन मेहनत व लगन से पढ़कर M.A., Bed तक पहुंचे।
सुगना बताती हैं- मेरी बड़ी बहन का चयन का शिक्षक पद पर हुआ। हम उसे देखकर प्रेरित हुए। मैंने 2021 रीट भर्ती परीक्षा में 121 अंक प्राप्त किए, लेकिन दुर्भाग्यवश वह भर्ती निरस्त हो गई। लेकिन हिम्मत नहीं हारी। सब-इंस्पेक्टर भर्ती-2021 में चयन हुआ। इसी दौरान द्वितीय श्रेणी अध्यापक भर्ती परीक्षा-2022 (सामान्य शिक्षा विभाग) व वरिष्ठ अध्यापक भर्ती परीक्षा-2022 (संस्कृत शिक्षा विभाग) में भी फाइनल सिलेक्शन हुआ। किस्मत ऐसी बुलंद हुई कि चौथी खुशखबरी स्कूल व्याख्याता भर्ती परीक्षा 2022 (संस्कृत साहित्य विषय) में मिली। इस एग्जाम में आरक्षित सूची में चयन हुआ था।
सुगना बताती हैं- 4-4 भर्ती में सिलेक्शन होने के बावजूद में एसआई पद के लिए सबकुछ दांव पर लगा दिया। करीब 15 महीने कठिन ट्रेनिंग के बाद पोस्टिंग मिली थी। अब कोर्ट के इस निर्णय ने मुझे बुरी तरह से झकझोर कर रख दिया है। फिर से बेरोजगारों की लाइन में लाकर खड़ा कर दिया है। फैसला आने के बाद उन्हें गहरा सदमा लगा है और कुछ समझ नहीं आ रहा है।
राजेश गुर्जर : एसआई भर्ती ने दिए गहरे जख्म, पिता का इलाज तक छूटा
28 अगस्त दोपहर मैं अस्पताल में अपने पिता को डॉक्टर्स को दिखा रहा था, इसी दौरान एस आई भर्ती 2021 रद्द होने की खबर मिली तो पैरों तले जमीन खिसक गई। यही ख्याल आया कि ये भर्ती और कितने जख्म देगी?
राजेश गुर्जर बताते हैं- मैंने 2017 से जेएनआईटी से इलेक्ट्रिकल ब्रांच से बीटेक की। इसके बाद RAS- प्री 3 बार क्लियर किया। हालांकि मेंस में सफलता नहीं मिली। इस बीच एसआई भर्ती में भाग्य आजमाया तो पहली ही बार में सिलेक्शन हो गया। दिसंबर 2024 तक 15 महीने आरपीए में ट्रेनिंग की। जिसके बाद जनवरी 2025 में पुलिस लाइन कोटा में पोस्टिंग मिली।
राजेश बताते हैं- महज दो बीघा जमीन में खेती-मजदूरी कर पिता ने पढ़ाया लिखाया था। लोकसभा चुनाव के दौरान मार्च 2024 में एसआई भर्ती रद्द होने के लिए आंदोलन शुरू हो गया। इस दौरान पिता को गहरा धक्का लगा और उन्हें ब्रेन स्ट्रोक आया, जिससे उन्हें पैरालाइसिस हो गया। उन्हें 24 घंटे बाद अस्पताल में होश आया। उनका जैसे तैसे इलाज करवा रहा था। फिलहाल आरजीएचएस से छह से सात हजार रुपए की दवा आ रही थी। अब नौकरी जाने के बाद उनका इलाज कैसे करवा पाऊंगा। इसे सोचकर कुछ समझ नहीं आ रहा है।
यह भी पढ़ेंः
7 बहनें, मां मजदूर, कॉन्स्टेबल छोड़ SI बनी:किसी ने दांव पर लगाई 2-2 नौकरियां, बोले- दोबारा सिलेक्ट हुए तो भी ‘फर्जी’ का कलंक कौन मिटाएगा
‘मैं स्कूल की टॉपर और बीएससी में गोल्ड मेडलिस्ट…7 बहनों में सबसे बड़ी। मेरी मां मजदूरी कर बहनों का पेट पालती….मैं दिनभर कॉन्स्टेबल की नौकरी कर रात में तैयारी करती। त्यागपत्र देकर SI में भर्ती हुई थी। आज दोनों हाथ खाली हैं…(CLICK कर पढ़ें)