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Jagadguru Swami Rambhadracharya Interview: Kalki Avatar in Sambhal & Hinduism in Kaliyuga |…

‘बगैर पढ़े लिखे सब आज महर्षि वाल्मीकि और वेदव्यास बनना चाहते हैं। वे मेरी बात समझना नहीं चाहते। मेरी उपलब्धियों से उनको ईर्ष्या होती है तो मेरा दुष्प्रचार करते हैं। मैंने कभी किसी संत की निंदा नहीं की। हां, मैं विरोध करता हूं, जब कोई गलत करता है। जो क

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यह कहना है पद्म विभूषण जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य का। संत प्रेमानंदजी के संस्कृत ज्ञान पर सवाल उठाने वाले जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य की लोगों ने काफी आलोचना की। इस पर ‘दैनिक भास्कर’ ने रामभद्राचार्य जी से उनके चित्रकूट आश्रम में खास बातचीत की। उन्होंने संस्कृत से लेकर अहंकारी होने जैसे सवालों के बेबाकी से जवाब दिए। उनसे हुई बातचीत को हूबहू पढ़िए…

राममंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा में साधु-संतों के साथ जगद्गुरु रामभद्राचार्य भी शामिल हुए थे।

सवाल: सरकार कह रही है कि कलियुग में भगवान कल्कि संभल में जन्म लेंगे? क्या यह सही है? जवाब: हां, संभल में ही भगवान का अवतार होगा। संभल की स्थिति अभी बहुत दयनीय है। हिंदुओं का पलायन हो रहा है। सरकार पहले सरकार पलायन रोके। सभी हिंदू जागृत हो जाएं। मुझे लगता है कि यह हिंदुओं की शताब्दी है। इस बार बहुत अच्छा होगा। समस्या यह है कि हमारे ही बीच के कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो उल्टा-सीधा प्रचार करते हैं। क्योंकि पढ़ते-लिखते तो है नहीं…।

सवाल: भगवान कल्कि का अ‌वतार कब होने वाला है? जवाब: कलियुग तो अभी बहुत लंबा है। 5 हजार 252 साल ही हुए हैं। 4 लाख 32 हजार साल का कलियुग है। अभी तो बहुत देर है।

सवाल: आपने खूब पढ़ाई की, अवॉर्ड जीते, इसका कई बार जिक्र भी किया। कई लोग इसे विद्वान होने का अहं कह रहे हैं।

जवाब: कहहु स्वभाव न कछु अभिमानू…वो कहते हैं कि खिसियाई बिल्ली खंबा नोंचे। स्वयं तो अवॉर्ड मिला नहीं, और न कभी मिलेगा। तो मुझको जब मिला तो मैंने कौनसा अहंकार कर दिया, स्वभाव ही तो बताया।

जैसे गोस्वामी जी कहते हैं- नाना पुराण निगमागम सम्मतं यद्….तो क्या यह अहंकार है।

स्वभाव बताना अहंकार नहीं होता। मैंने जीवन में कभी अहंकार किया ही नहीं।

कुछ कहते हैं- मैं निंदा करता हूं। वह निंदा का अर्थ ही नहीं जानते। पहले मैं निंदा का अर्थ बताता हूं। वाचप पत्रे ग्रंथ में लिखा है- दोष न रहने पर जो दोष कहा जाए, वह निंदा है। दोष नहीं है और दोष देखा जा रहा है तो इसे निंदा कहेंगे। जैसे रामचरित मानस के युद्ध कांड में अंगद-रावण संवाद हो रहा है। तो रावण ने राम जी की निंदा की। क्या निंदा की? उसने कहा, अगुन अमान जानि तेहि दीन्ह पिता बनबास… रामजी को गुणरहित और मानरहित जानकर पिता ने वनवास दिया, जबकि ऐसी बात थी नहीं, वह तो कैकयी के कहने से राम जी का वनवास हुआ।

तो मैंने कभी किसी संत की निंदा नहीं की। हां, मैं विरोध करता हूं, जब कोई गलत करता है। लेकिन वह निंदा नहीं हुई।

सवाल: आम आदमी कैसे जान सकता है कि कौन सा संत योग्य है, और किसकी कथा सुनना चाहिए? जवाब: ऐसा है जो शास्त्रीय, जो श्रीराम कृष्ण की मर्यादा की रक्षा करके, भारतीय संस्कृति की मर्यादा करके जो कथा करते हैं, उन्हें सुनना चाहिए। जो कथा तो कर रहे हैं राम जी की और मौला अली- मौला अली कीर्तन करा रहे हैं, उनकी कथा कभी नहीं सुनना चाहिए। कथा सुनना है तो वाल्मीकि की कथा सुनो, शुक्राचार्य की कथा सुनो, लेकिन कालनेमि की कथा नहीं सुनना चाहिए। कालनेमि कथा सुना रहे थे, हनुमान जी ने बंद करवा दिया।

सवाल: हनुमान चालीसा में आपने कुछ करेक्शन बताए थे? लेकिन देखने में आया है कि वह हुआ नहीं है? जवाब: करेक्शन हुए हैं। समस्या यही तो है, लोग पढ़ना-लिखना नहीं चाहते हैं। जैसे लोग बगैर काम किए करोड़पति बनना चाहते हैं, उसी तरह बगैर पढ़े लिखे लोग वाल्मीकि और वेदव्यास बनना चाहते हैं।

हनुमान चालीसा में करेक्शन मैंने नहीं किया था, पुरानी प्रतियों में छह बातें कही गई हैं, जो इन्होंने नहीं छापी। वह आज भी हनुमानगढ़ी में और संकटमोचन में छपी हुई है। जैसे आजकल कहा जाता है- शंकर सुवन केसरीनंदन.. तो हनुमान जी शंकर जी के पुत्र तो नहीं हैं। बल्कि शंकरजी स्वयं हनुमानजी बन गए। पुरानी प्रतियों में यही छपा है- शंकर स्वयं केसरीनंदन।

इसी प्रकार 27वीं लाइन में आज चल रहा है- सब पर राम तपस्वी राजा… तपस्वी होगा वह राजा होगा क्या, पुरानी प्रति का पाठ है- सब पर राम राय सिरताजा…। 32वें छंद में- आज चल रहा है सदा रहो रघुपति के दासा, इसका कोई अर्थ नहीं है। पुराना पाठ है- सादर हौ रघुपति के दासा

इसी प्रकार है 38वीं पंक्ति में जो सत बार पाठ कर कोई.. ऐसा नहीं है, यह सत बार पाठ कर जोई… यह लिखा है।

तो मैंने कोई करेक्शन नहीं किया है। पुरानी प्रतियों के आधार पर ही पाठ रखा है। जैसे- कांधे मूंज जनेऊ साजे।

जनेऊ साजै थोड़ी जाएगा, कांधे मुंझ जनेऊ छांजे…। छांजना मने सुंदर लगना।

सवाल: देश में हिंदू-मुस्लिमों के बीच राजनैतिक तौर पर कटुता बढ़ती दिख रही है? आप कैसे देखते हैं? जवाब: हिंदू-मुस्लिम के बीच वैमनस्य नहीं होगा। वैमनस्य तो वे (मुस्लिम) लोग करते हैं। हिंदुओं की भूमिका का अधिग्रहण किसने किया? हिंदुओं को काटा किसने? इतिहास साक्षी है कि राम जन्मभूमि का प्रकरण जब आया था और मीर बांकी ने जब राम जन्मभूमि को तोड़कर मस्जिद बनाई, उसमें 1 लाख 75 हजार हिंदुओं की हत्या की थी। यह वैमनस्य दूर हो जाएगा, जब हमारे जीवन में संस्कार आ जाएंगे।

सवाल: अमेरिका से दूरी के बाद भारत चीन के नजदीक जा रहा है? क्या भारत के लिए यह ठीक है? जवाब: यह अच्छा है। अमेरिका गलती कर रहा है। भारत पर अमेरिका ने टैक्स बढ़ा दिया। कब तक उसकी दादागीरी सहते रहेंगे? और चीन से संबंध बनाना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि चीन ने हमारी 800 वर्ग मील जमीन हथिया रखी है। अब धीरे-धीरे मोदी चाहते हैं कि इसको पटाकर वह जमीन हमें मिल जाए।

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से मिलते रामभद्राचार्य। सीएम जब भी चित्रकूट जाते हैं, वो तुलसी पीठ जरूर जाते हैं।

सवाल: सरकार कहती है- हम दो हमारे दो, मोहन भागवत कहते हैं- 3 बच्चे होने चाहिए। आप क्या कहेंगे? जवाब: हां, एक तो नहीं ही होना चाहिए। 2 या 3 तो कम से कम होना ही चाहिए। और हिंदुओं की संख्या तब बढ़ेगी, जब हिंदुओं की घर वापसी कराई जाए। जो हिंदू हमसे बंट गए हैं, उन्हें वापस लाया जाए। सत्य तो यह है कि पहले की धारणा छोड़कर ऊंच-नीच हिंदू नहीं होना चाहिए। जो राम-कृष्ण को मानता है, वही श्रेष्ठ है। यदि ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर राम-कृष्ण को नहीं मान रहा और मांस-मछली खाता है तो वह श्रेष्ठ नहीं है।

लोग पढ़ते नहीं है, इसलिए शुद्र को बुरा कहते है। शुद्र शब्द का अर्थ होता है शु माने भगवान, ऊ माने निश्चय, द्र माने द्रवित होना। जिस पर भगवान निश्चित द्रवित हो जाए, उसे शुद्र कहते हैं।

सवाल: देश में मोदी के बाद कौन? जवाब: पहले तो मोदी को एक बार और आना चाहिए। फिर भगवान किसी न किसी को बनाएंगे, जो भी राष्ट्र को प्रेम करे। मोदी ने अच्छा काम किया है, अच्छा करते भी रहेंगे। देखिए भारत तो वीर भोग्या वसुंधरा है…। कोई न कोई तो ऐसा होगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27 अक्टूबर, 2023 को धर्मनगरी चित्रकूट के दौरे पर थे। इस दौरान उन्होंने तुलसी पीठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य का आशीर्वाद लिया।

सवाल: समाज में मासूम बच्चियों से कुकर्म हो रहे हैं, पत्नी पति की और पति पत्नी की हत्या कर रहा है। क्या यह कलियुग का असर है? जवाब: ये पहले भी होता था। तब मीडिया सक्रिय नहीं था, अब मीडिया सक्रिय हो गया। इसका एक ही उपाय है। जब तक संस्कार हमारे मन में नहीं आएंगे, तब तक सात्विक भावना नहीं आएगी। और संस्कार तब आएगा, जब सब सम संस्कृतज्ञ हो जाएंगे।

भारत की दो प्रतिष्ठाएं हैं- संस्कृत और संस्कृति। भारतीय संस्कृति में संस्कार का आना बहुत जरूरी है। संस्कार तब आएगा, जब संस्कृति पढ़ी जाए। भारतीय संस्कृति में संस्कार का आना बहुत जरूरी है। संस्कार तब आएंगे, जब संस्कृत पढ़ी जाए। सबको संस्कृत पढ़नी चाहिए।

सवाल: समाज में ऐसा कब तक चलेगा? जवाब: चलेगा, सबका अंत होता है, इसका भी अंत होगा। हम सब सम संस्कृतज्ञ हो। सदग्रंथों को पढ़ें। रामायण, गीता रटे नहीं, इनको पढ़ें। लोग आपेक्ष कर रहे हैं कि तुलसीलदास जी ने हिंदी में लिखा तो क्या वह विद्वान नहीं थे। मैं फिर कहता हूं वह सम संस्कृतज्ञ थे। यही प्रमाण है कि उन्होंने रामचरितमानस के प्रत्येक कांड में संस्कृत में मंगलाचरण लिखे।

वह तो हिंदी में इसलिए लिखा, क्योंकि शंकर ने आज्ञा दी थी कि हिंदी में लिखो ताकि लोग समझ सकें।

सवाल: तो क्या संस्कृत हर व्यक्ति को पढ़ना अनिवार्य है? जवाब: संस्कृत पढ़ना अनिवार्य है। जब तक संस्कार नहीं आएंगे, तब तक मानस बदलेगा नहीं और जब तक जन मानस नहीं बदलेगा, तब तक ये कुकर्म होते रहेंगे। इसलिए पहले हमें समसंस्कृतज्ञ होना चाहिए। और संस्कृत के संस्कारों को अपने जीवन में उतारना चाहिए।

वेदी पाठकों के साथ रामभद्राचार्य।

सवाल: कुछ संत भक्ति मार्ग तो कुछ ज्ञान मार्ग के हैं। आपका क्या मानना है- भक्ति से ज्ञान श्रेष्ठ है? जवाब: भक्ति, ज्ञान ही नहीं कछु भेदा। भक्ति और ज्ञान में कोई अंतर नहीं है। ज्ञान की पराकाष्ठा को भक्ति और भक्ति की पराकाष्ठा को ज्ञान कहते है। गीता जी के 13वें अध्याय में भगवान कहते हैं- ज्ञानी उसे कहते हैं, जो अनन्य भाव से मेरा भक्त होता है।

सवाल: आपके विश्वविद्यालय की आगे की क्या योजना है? जवाब: हमारा विश्वविद्यालय चल ही रहा है। जो समाज के लिए कुछ करता है, उसके पैर खींचना चाहते हैं। वे समाज के लिए कुछ कर नहीं रहे हैं, अपने मठ-मंदिर ही बनाने के चक्कर में रहते हैं। मैं इस पक्ष में नहीं हूं। मानवता ही मेरा मंदिर, मैं हूं उसका एक पुजारी। दिव्यांग महेश्वर मेरे, मैं उसका कृपा भिखारी। चित्रकूट में आंख के अतिरिक्त चिकित्सा की कोई सुविधा नहीं है। अभी किसी को अटैक आए तो सतना जाए या प्रयागराज जाना पड़ता है। हम चाह रहे हैं कि चित्रकूट में एक मेडिकल कॉलेज नहीं, मेडिकल यूनिवर्सिटी बने। और हम इसे बनाकर रहेंगे। इसमें चिकित्सा की चारों पद्धतियों को हम शुरू करेंगे।

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