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हिमाचल में सड़कें बंद होने से गोदाम, मंडियों और ट्रकों में लोड हजारों पेटी सेब।

हिमाचल में प्राकृतिक आपदा से करोड़ों रुपए के सेब के कारोबार पर संकट खड़ा हो गया है। प्रदेश में 3 नेशनल हाईवे समेत 1100 से अधिक सड़कें लैंडस्लाइड से जगह-जगह बंद पड़ी है। इससे सेब मंडियों तक पहुंचाना मुश्किल हो गया है। बागवानों का हजारों पेटी सेब या तो गोद

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यह सेब प्रदेश से बाहर की मंडियों में तभी जा पाएगा, जब सड़कें बहाल होगी। ग्रामीण क्षेत्रों की सभी सड़कों की बहाली में 10 से 15 दिन लग सकते हैं, क्योंकि बार-बार हो रही बारिश इसमें बाधा उत्पन्न कर रही है। हालात ऐसे ही रहे तो ढाई हजार से तीन हजार करोड़ रुपए का सेब को मंडियों तक पहुंचाना मुश्किल हो जाएगा।

कारोबारी बताते है कि अकेले किन्नौर की टापरी मंडी में ही 15 हजार पेटी सेब टॉपरी मंडी के ऑक्शन यार्ड और मंडी में खड़ी गाड़ियों में भरा हुआ है। मंडी, कुल्लू और चंबा के अलग अलग क्षेत्रों में भी 55 हजार पेटी से ज्यादा सेब गोदाम व ट्रकों में भरा पड़ा है। कुल 3.50 लाख पेटी सेब मंडियों और ट्रकों में फंसा हुा है।

इसके अलावा सबसे ज्यादा दिक्कत उन बागवानों के लिए है, जिनका लाखों पेटी सेब पक कर तैयार है, लेकिन निरंतर बारिश की वजह से तुड़ान नहीं कर पा रहे। अकेले शिमला जिले में 20 से 25 लाख पेटी तैयार है। इसके लिए मौसम साफ होने जरूरी है। ऐसे में बागवान और कारोबारी असमंज में फंसे कि करे तो करें क्या।

हालात बता रहे है कि सेब का जो सीजन 25 अगस्त तक खत्म हो जाता था, उसकी सितंबर के पहले सप्ताह में भी तुड़ान नहीं हो पाई है। सेब की अराइवल कम होने से 200 रुपए प्रति पेटी रेट बढ़े हैं। यही स्थिति रही तो मार्केट में सेब के रेट बढ़ने तय है। हिमाचल के कितना होता है सेब का कारोबार, कहां-कहां जाता है और वर्तमान हालात से कैसे जूझ रहे कारोबारी और बागवान और आगे क्या होगा? ऐसे ही सवालों के जाने के लिए पढ़े दैनिक भास्कर डिजिटल एप की पूरी रिपोर्ट…

शिमला जिला के ठियोग के कंदरू में सेब तुड़ान करते हुए महिला बागवान।

सालाना 5-6 हजार करोड़ का कारोबार, 5 लाख परिवार जुड़े…

हिमाचल में ढाई लाख से ज्यादा परिवार सेब की खेती करते हैं। इनकी रोजी-रोटी प्रत्यक्ष तौर पर सेब पर निर्भर रहती है। इसी तरह दो से तीन लाख से अधिक लेबर, ट्रांसपोर्टर, सेब व्यापारी और आढ़तियों की सालभर की रोटी का भी सेब प्रबंध करता है। प्रदेश में सेब कारोबार हर साल 5 हजार करोड़ रुपए से 6 हजार करोड़ के बीच होता है। यहां का सेब चंडीगढ़ दिल्ली कोलकाता महाराष्ट्र तमिलनाडु मुंबई चेन्नई मद्रास इत्यादि मंडियों में जाता है। इससे प्रदेश की समृद्धि के पीछे सेब का बड़ा योगदान रहता है। बागवानों की माने तो इस बार सेब बागवानों पर प्रकृति की मार पड़ी है।

  • कोटखाई के बागवान अंकुश चौहान ने बताया कि भारी बारिश के कारण सेब ड्रॉप हो रहा है। स्टोर में रखा सेब सड़ने लगा है। क्षेत्र में सभी सड़कें बंद पड़ी है। उन्होंने सरकार से बंद सड़कों की जल्द बहाली के लिए ज्यादा से ज्यादा जेसीबी लगाने का आग्रह किया है।
  • ठियोग के बागवान महेंद्र वर्मा ने बताया कि अत्यधिक बारिश से सेब बगीचों में बीमारियां लगी है। बागवान भी तुड़ान नहीं कर पा रहे। धूप नहीं लगने से फ्रूट क्वालिटी नहीं बन पाई। इससे मंडियों में बेहतर दाम नहीं मिल रहे। सड़कें बंद होने से सेब मंडियों तक पहुंचाना मुश्किल हो गया है।
  • कोटखाई के बागवान प्रताप चौहान ने बताया कि उन्होंने सेब की पैकिंग कर रखी है। मगर उनके घर को जोड़ने वाली सड़क 5 दिन से दोनों तरफ से बंद है। इससे सेब पेटियों में भरे-भरे खराब होने का डर सता रहा है।
  • प्रोग्रेसिव ग्रोवर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष लोकेंद्र बिष्ट ने बताया कि सेब बहुल क्षेत्रों में 90 प्रतिशत सड़कें बंद है। इससे सेब मंडियों तक पहुंचाना चुनौतीपूर्ण हो गया है। भारी बारिश से सेब बगीचों में भी कई बीमारियां लगी है। उन्होंने बताया, इस बार सेब की 10 से 15 प्रतिशत फसल ड्रॉपिंग के कारण नष्ट हो चुकी है।

हिमाचल में इस बार नॉर्मल से लगभग दोगुना ज्यादा बारिश हुई। इसके कारण पहले सेब की पत्तियां झड़ी, फिर फ्रूट ड्रॉप हो रहा।

बागवानी विशेषज्ञ ने बताया, बारिश का कैसे पड़ रहा असर…

  • 20 दिन में खराब होने का डर : बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एसपी भारद्वाज ने बताया कि 6000 फीट से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों का सेब जल्दी खराब नहीं होता और बिना सीए स्टोर के भी कम से कम एक महीना लाइफ रहती है। यदि सेब ट्रकों में भरा हुआ है और ऊपर तिरपाल लगा है तो इससे 15-20 दिन में खराब होने का डर रहता है। उन्होंने बागवानों को सलाह दी कि जब तक सड़कें बहाल नहीं होती तब तक सेब को स्टोर में ओपन रहने दें, ताकि हवा लग सके।
  • इन क्षेत्रों के बागवानों पर अधिक असर : मंडी जिला के सराज, नाचन, करसोग में बीते 24 जून की भारी बारिश से सेब की आधी फसल तबाह हो गई थी। जो सेब बगीचों में बच गया था, उसे मंडियों तक पहुंचाना मुश्किल हो गया है। इसी तरह कुल्लू के रघुपुर, जलोड़ी, बुछैर, च्वाई, जाबण, निरमंड व आनी और चंबा के पांगी, भरमौर, चुराह इत्यादि क्षेत्रों का सेब मंडियों तक नहीं पहुंच रहा। हिमाचल का 75 फीसदी सेब शिमला में होता है और जिला में 216 सड़कें बंद पड़ी है।

किन्नौर की टॉपरी मंडी में सेब से लदे ट्रक सड़कें बहाल होने के इंतजार में।

कारोबारी बोले- हालात नहीं सुधरे तो बड़ा नुकसान होगा…

  • प्रीमियम क्वालिटी का सेब ₹2200 प्रति पेटी तक बिक रहा : हिमाचल आढ़त एसोसिएशन के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एनएस चौधरी ने कहा, सड़कों की स्थिति दयनीय होने से सेब की अराइवल आधी रह गई है। नेशनल हाईवे के किनारे रह रहे बागवानों का सेब ही मंडियों में पहुंच पा रहा है। उन्होंने बताया कि ऐसे हालात की वजह से बागवानों के साथ साथ आढ़तियों और सेब व्यापारियों को भी नुकसान हो रहा है। यह भी बताया बताया कि एक पेटी 20 से 25 किलो की होती है। प्रीमियम क्वालिटी का सेब ₹2200 प्रति पेटी तक बिक रहा है। निम्न क्वालिटी का सेब 400 500 से शुरू हो जाता है।
  • सड़कों की दयनीय स्थिति से अराइवल घटी : चौधरी ने आगे बताया कि भारी बारिश से तुड़ान रुकने और सड़कें बंद होने से मंडियों में सेब की अराइवल आधी रह गई है। 23 अगस्त को जब मौसम साथ था तो उस दिन शिमला जिला की मंडियों में 1 लाख 45 हजार 897 पेटी सेब आया था। 24 अगस्त से भारी बारिश शुरू हुई। इसके बाद अराइवल कम होती गई। 3 सितंबर को आधे से भी कम यानी 61 हजार 683 पेटी रह गई, 25 अगस्त के बाद सेब सीजन ज्यादा रफ्तार पकड़ता है और डेढ़ लाख से दो लाख पेटी सेब रोजाना शिमला जिला की मंडियों में पहुंचता है। सड़कें बंद होने से किन्नौर की टापरी मंडी में बीते तीन दिन में एक भी पेटी सेब नहीं पहुंचा।

हिमाचल प्रदेश की टॉपरी मंडी में चार-पांच दिन से सेब की पेटियों के ढेर लगे हुए और सड़क बहाली का इंतजार हो रहा है।

विभाग सड़कों की बहाली में जुटा: विक्रमादित्य PWD मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने कहा, सभी जिलों में इंजीनियरों को सड़कों की बहाली के लिए निर्देश दिए जा रहे हैं। विभाग की मशीनरी सड़कों की बहाली में लगी हुई है। मगर, बार बार सड़कें बंद हो रही है। 1380 मशीनें सड़कों की बहाली में जुटी हुई है। कोशिश है कि जल्द से जल्द सड़कों को बहाल किया जाए।

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