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The celebration of the 26 statues that were unearthed from the underground will be held…

जैन नसियां टोंक में धर्मशभा को संबोधित करते आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज।

श्री आदिनाथ दिगंबर जैन नसिया हमीरगंज टोंक एवं श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में विराजमान 26 जिन प्रतिमाओं का प्रकट उत्सव शुक्रवार को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ जैन नसिया में आचार्य जी के सानिध्य में मनाया जाएगा।

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26 जिन प्रतिमाएं मिली थीं

समाज के प्रवक्ता पवन कंटान एवं विकास जागीरदार ने बताया कि आज से वर्ष पूर्व भाद्रपद शुक्ला त्रयोदशी गटका तेरस (21 सितंबर 1953 ईस्वी) को जैन नसियां के पीछे एक भूखंड पर भूगर्भ से एकसाथ भव्य, विशाल मनमोहक एवं अतिशयकारी 26 जिन प्रतिमाएं प्राप्त हुई थी। ये करीब लगभग 600 वर्ष प्राचीन प्रतिष्ठित है टोंक क्षेत्र में भूगर्भ से लगभग 65जिन प्रतिमाएं चार बार प्राप्त हो चुकी हैं। ये श्री दिगंबर जैन नसियां एवं शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर बड़ा तख्ता में विराजमान हैं साथ ही 13 प्रतिमाएं वर्तमान में सोनीजी की नसियां अजमेर में विराजमान हैं।

महापंचामृत अभिषेक होगा

समाज के मंत्री धर्मेद्र पासरोटियां एवं कमल सर्राफ ने बताया कि शुक्रवार को जैन नसिया के बड़े बाबा मूलनायक1008 श्री आदिनाथ भगवान के प्रकट उत्सव के दिन सुबह विश्व में शांति की कामना के लिए आचार्य श्री ससंघ के सानिध्य में अभिषेक,शांतिधारा के बाद महापंचामृत अभिषेक (दूध दही ,घी केसर, फल का रसों का सर्व औषधी आदि स्वर्ण एवं रजत झारियां से महापंचामृत अभिषेक किया जाएगा। बाद में आदिनाथ भगवान की विशेष पूजा अर्चना होगी

आज सुबह पर्यूषण पर्व के दिन आठवें दिन अभिषेक शांतिधारा के बाद इंद्रध्वज महामंडल विधान की पूजा अर्चना प्रतिष्ठाचार्य कीर्तीय जी शास्त्री पारसोला के साथ कर अर्घ्य समर्पित किए गए।

इस मौके पर उत्तम त्याग धर्म की पूजा की गई । इसी तरह बड़ा तख्ता जैन मंदिर में दशलक्षण महापर्व के तहत सुबह श्रद्धालुओं ने अभिषेक शांतिधारा के बाद सामूहिक पूजा अर्चना की ।

धर्मसभा में मौजूद जैन समाज की महिलाएं ।

6 माह तप ध्यान किया

वहीं आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान ने 6 माह तप ध्यान किया। उसके बाद अगले 6 माह तक उन्हें आहार नहीं मिला। तब राजा श्रेयांश को पूर्व जन्म में आहार देने का जाती स्मरण से भगवान आदिनाथ को सर्वप्रथम आहार दान देकर दान तीर्थ का प्रवर्तन किया।

इस 20वीं सदी में भी प्रथमाचार्य श्री शांति सागर जी महाराज को क्षुल्लक अवस्था में भी चार दिनों तक उचित विधि से पड़गाहन नहीं करने के कारण आहार नहीं हुआ था। आचार्य जी ने कहा कि औषधि दान से साधु के संयम,व्रत, ध्यान तप की रक्षा होती है। त्याग से राग, द्वेष, परिग्रह कम होता हैं। त्याग से यश बढ़ता है, सद गति मिलती है, त्याग से आनंद होता हैं।

पूजा अर्चना करते जैन समाज के महिला-पुरुष ।

श्रावक श्राविकाओं के 6 आवश्य

क कार्यों में पूजा और दान प्रमुख हैं। अंगदान शास्त्र अनुसार ठीक नहीं है आपके अंग का दुरुपयोग व्यसन या हिंसा में हो सकता हैं। आचार्य श्री ने एक महत्वपूर्ण सूत्र बताया कि आत्म स्वभाव,निज पद को परिग्रह त्याग कर प्राप्त कर सकते हैं । देश विश्व यदि इन दश धर्मों को अपनाता हैं तो सुख और शांति हो सकती है ।

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