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Shukra Pradosh Vrat 2025: 5 सितंबर को शुक्र प्रदोष व्रत, जानें कथा, पूजा विधि और प्रदोष काल समय

Shukra Pradosh Vrat 2025: शुक्रवार यानी सुख, समृद्धि, धन, सौभाग्य से भरा दिन, क्योंकि ये दिन मां लक्ष्मी को समर्पित है. ऐसे में शुक्रवार के दिन जब त्रयोदशी का संयोग बनता है तो इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहते हैं. 5 सितंबर को शुक्र प्रदोष व्रत है.

मां लक्ष्मी के अलावा इस दिन संतान, पैसा, खुशहाली की प्राप्ति के लिए प्रदोष काल में भोलेनाथ की आराधना करना उपयोगी माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन शाम को महादेव बहुत प्रसन्न रहते हैं और विधि विधान से उनकी आराधना करने वालों की शीघ्र पुकार सुनते हैं. आइए जानते हैं शुक्र प्रदोष व्रत की पूजा विधि, नियम.

5 सितंबर को शुक्र प्रदोष व्रत

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 5 सितंबर को सुबह 4 बजकर 8 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 6 सितंबर को सुबह 3 बजकर 12 मिनट पर इसका समापन होगा.

इस दिन प्रदोष काल में पूजा का मुहूर्त शाम 6.38 से रात 8.55 तक रहेगा.

शुक्र प्रदोष व्रत विधि

  • शुक्र प्रदोष व्रत के दिन पानी में इलायची डालकर स्नान करें. इससे शुक्र मजबूत होता है.
  • साफ वस्त्र पहनकर व्रत का संकल्प लें, दिनभर फलाहार रहें.
  • संध्या के समय घर या मंदिर में मिट्‌टी के छोटे से शिवलिंग बनाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करें. पंचामृत से स्नान कराएं. अगर ये संभव न हो धातु के जो घर में शिवलिंग हैं उनकी आराधना करें.
  • भोलेनाथ को बेलपत्र, धतूरा, अक्षत और पुष्प चढ़ाएं.
  • व्रत कथा का श्रवण करें, आरती कर ब्राह्मण को दान दें.
  • इस दिन मां लक्ष्मी को सुंगधित फूल अर्पित कर श्रीसूक्त या ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः मंत्र का जप करना चाहिए.

शुक्र प्रदोष व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक गांव में तीन मित्र राजकुमार, ब्राह्मण कुमार और तीसरा धनिक पुत्र रहते थे. राजकुमार और ब्राह्मण कुमार विवाहित थे. धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था, लेकि गौना शेष था. एक दिन ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा- ‘नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है’

धनिक पुत्र ने यह सुना तो फौरन ही अपनी पत्‍नी को लाने का निश्‍चय कर लिया. तब धनिक पुत्र के माता-पिता ने समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैं. ऐसे में बहू-बेटियों को उनके घर से विदा करवा लाना शुभ नहीं माना जाता लेकिन धनिक पुत्र ने एक नहीं सुनी और ससुराल पहुंच गया.

ससुराल में भी उसे मनाने की कोशिश की गई लेकिन वो ज़िद पर अड़ा रहा और कन्या के माता पिता को उनकी विदाई करनी पड़ी. विदाई के बाद पति-पत्‍नी के शहर से निकले ही थे कि बैलगाड़ी का पहिया निकल गया और बैल की टांग टूट गई. दोनों को चोट लगी लेकिन फिर भी वो चलते रहे. कुछ दूर जाने पर उनका पाला डाकूओं से पड़ा. जो उनका धन लूटकर ले गए.

दोनों घर पहूंचे. वहां धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया. उसके पिता ने वैद्य को बुलाया तो वैद्य ने बताया कि वो तीन दिन में मर जाएगा. जब ब्राह्मण कुमार को यह खबर मिली तो वो धनिक पुत्र के घर पहुंचा और उसके माता पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और कहा कि इसे पत्‍नी सहित वापस ससुराल भेज दें. उसके पिता ने ऐसा ही किया. ससुराल में उसकी हालत ठीक होती गई. शुक्र प्रदोष व्रत के प्रताप से धनिक पुत्र जल्द स्वस्थ हो गया और उसका सारा धन वापिस उसे प्राप्त हो गया.

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