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पाकिस्तान से पढ़ा लॉ और वहीं की आर्मी में हो गया शामिल, फिर कैसे ‘ब्लैक टाइगर’ ने बचाई हजारों…

किसी जासूस की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपनी पहचान को कब तक छिपाकर रख सकता है दुनिया में ऐसे बहुत ही कम जासूस हुए हैं, जो सालों तक पहचान छिपाकर रहे और दुश्मन देश की जानकारी अपने देश भेजते रहे. भारत की रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) ने देश की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए कई एजेंट्स को काम सौंपा. इसमें एक नाम है द ब्लैक टाइगर का. जब-जब इतिहास में सबसे जाबांज जासूसों का नाम लिया जाएगा तब-तब रवींद्र कौशिक को याद किया जाएगा. 

रवींद्र कौशिक का जन्म राजस्थान के श्रीगंगानगर में 11 अप्रैल 1952 को हुआ था. वे बचपन से ही एक्टिंग के शौकीन थे. कौशिका का यह शौक उन्हें जासूस बना देगा, यह किसे पता था. दरअसल 1972 में लखनऊ के एक यूथ फेस्टविल में रवींद्र ने नाटक में हिस्सा लिया. उन्होंने इस दौरान एक भारतीय जासूस की भूमिका निभाई. सेना के कुछ अधिकारी इस फेस्टिवल को देखने पहुंचे थे. यहीं से रवींद्र को भारत की मिलिट्री इटेंलिजेंस में शामिल होने का मौका मिला.

पाकिस्तान जाकर बन गए नबी अहमद शाकिर  

रवींद्र कौशिक को पाकिस्तान का मिशन सौंपा गया. वे वहां पहुंचने के बाद नबी अहमद शाकिर बन गए. उनकी पुरानी पहचान को भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ ने पूरी तरह से मिटा दिया. अहम बात यह है कि रवींद्र ने कराची में रहकर एलएलबी की पढ़ाई पूरी और इसके बाद पाकिस्तानी सेना में भर्ती हो गए. उन्हें सेना में प्रमोशन भी मिला और मेजर की रैंक तक पहुंच गए. 

पाकिस्तानी लड़की से शादी कर बसा लिया घर

किसी भी जासूसी की सबसे बड़ी काबिलियत उसके मुश्किल वक्त में ही पता चलती है, वह कब तक अपनी पहचान को छिपा सकता है, यह उसकी सबसे बड़ी खूबी होती है. रवींद्र ने पहचान छिपाने के लिए न केवल अपना नाम बदला, बल्कि पाकिस्तानी लड़की से शादी भी कर ली. उन्होंने अमानत नाम की लड़की को पत्नी बनाया और शादी के बाद पिता भी बने.

रवींद्र कैसे बन गए ‘द ब्लैक टाइगर’

रवींद्र कौशिक ने 1979 से लेकर 1983 तक पाकिस्तान से कई खुफिया जानकारियां भारतीय एजेंसियों को भेजीं. दावा किया जाता है कि उनकी भेजी गई जानकारियों से बॉर्डर पर होने वाली आतंकी घटनाओं को रोका गया और करीब 20,000 भारतीयों की जान बचाई. रवींद्र को कोड नेम ब्लैक टाइगर भारत की तत्कालीन गृह मंत्री एस.बी. चव्हाण ने दिया था. इसका जिक्र द ब्लैग टाइगर; स्टोरी ऑफ सुपर स्पाई रवींद्र कौशिक नाम की किताब में भी है. हालांकि कई जगहों पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम भी लिया जाता है.

कैसे उजागर हो गई पहचान

‘द ब्लैक टाइगर’ के लिए 1983 का साल बेहद खतरनाक साबित हुआ. द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक रॉ ने 1983 में इनायत मसीह नाम के एक एजेंट को रवींद्र कौशिक की मदद के लिए पाकिस्तान भेजा, लेकिन इनायत कुछ ही समय के बाद पकड़े गए. इनायत अपनी गलती की वजह से रवींद्र कौशिक की पहचान भी उजागर करवा बैठे. उन्हें पाकिस्तानी एजेंसियों ने गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ भी की. रवींद्र कौशिक को सियालकोट और मियांवाली जेल में रखकर काफी टॉर्चर किया गया था, इसके बाद 2001 में उनका निधन हो गया.

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