MP Teacher Day Story; Sheela Patel School | Shikshak Diwas | मजदूरों के बच्चों को अपनी…

11 मिनट पहलेलेखक: उत्कर्षा त्यागी
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1. एक चिड़िया आती है,
चुन-चुन गीत सुनाती है।
दो दिल्ली की बिल्ली हैं,
दोनों जाती दिल्ली हैं।
तीन गिलहरी रानी हैं,
तीनों पीती पानी हैं।
2. उगता सूरज जिधर सामने,
उधर खड़े हो मुंह करके तुम।
ठीक सामने पूरब होता,
और पीठ पीछे है पश्चिम।
बाईं ओर दिशा उत्तर की,
दाईं ओर तुम्हारे दक्षिण।
चार दिशाएं होती हैं ये,
पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण।
ये वो गीत हैं जिसके जरिए शीला पहली और दूसरी क्लास के बच्चों को गिनती सिखाती हैं। वो केवल कविता, कहानी और अभिनय से ही बच्चों को गिनती, जोड़ना-घटाना, महीनों के नाम, दिनों के नाम और दिशाओं के बारे में पढ़ाती हैं। उनकी लिखे गीत और कविताएं पूरे इलाके में मशहूर हैं, जिन्हें बच्चे घरों में भी गाया करते हैं।
एमपी के दमोह जिले के शासकीय प्राथमिक विद्यालय विकासखंड पथरिया में पढ़ाने वाली शीला पटेल का चयन नेशनल टीचर्स अवॉर्ड 2025 के लिए किया गया है। 5 सितंबर यानी टीचर्स डे के मौके पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उन्हें सम्मानित करेंगी। शीला को उनके पढ़ाने के अनोखे अंदाज और स्कूल में बच्चों का एडमिशन बढ़ाने के लिए यह सम्मान दिया जा रहा है।
बच्चों को अपनी स्कूटी से स्कूल लाती, ले जाती हैं शीला
शीला बताती हैं, “जब मैं शुरुआत में स्कूल आई तो यहां 6-8 बच्चे ही थे। जहां हमारा स्कूल है, वहां अधिकांश बच्चे मजदूर परिवारों से हैं। मुझे लगा कि सबसे पहले बच्चों को स्कूल तक लाना जरूरी है।
अगली सुबह ही मैंने उन बच्चों की जानकारी ली जो स्कूल नहीं आ रहे थे, और अपनी स्कूटी लेकर उनके घर पहुंच गई। पहले तो बच्चे और उनके पेरेंट्स हैरान हुए, फिर स्कूल जाने को राजी हो गए।
मगर बच्चों को रोज स्कूल लाना आसान नहीं था। मुझे कई दिन तक रोज उनके घर जाना पड़ा। कुछ समय बाद पेरेंट्स खुद बच्चों को रोज स्कूल भेजने लगे। वो बच्चों से कहते कि जल्दी स्कूल जाओ वरना मैडम को तुम्हे लेने आना पड़ेगा।”
जब कोई बच्चा स्कूल नहीं आता तो टीचर शीला पटेल उसे लेने उनके घर स्कूटी से पहुंच जाती हैं।
वो कहती हैं, ‘गरीब, मजदूर परिवार के घरों में जब कोई शिक्षक गाड़ी से जाता है तो उन्हें अच्छा लगता है। वो सोचते हैं कि कम से कम कोई हमारे बच्चे के बारे में सोच रहा है। किसी को हमारे बच्चे की चिंता है।’
गांव के लोगों को बनाया ‘मोहल्ला लीडर’
बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने की अपनी मुहिम में शीला ने गांव में कुछ ऐसी जगह देखीं, जहां पेरेंट्स बैठते और बच्चे खेलते थे। ऐसी जगहों पर बच्चों की लर्निंग के लिए कुछ दीवारों को पेंट करा दिया। कहीं हिंदी की वर्णमाला लिखवा दी, कहीं अंग्रेजी के अल्फाबेट्स लिखवा दिए। कहीं गिनती लिखवा दीं और कहीं टेबल्स लिखवा दिए।
एक मोहल्ला लीडर बनाया, जो स्कूल का पूर्व छात्र, समुदाय का कोई सदस्य या किसी बच्चे का पेरेंट भी हो सकता है। उसको एक चॉक का डिब्बा और एक डस्टर दे दिया। उनसे कहा कि आपको जब भी टाइम मिले, बच्चों को मोहल्ले में बने ब्लैकबोर्ड पर पढ़ा दो।
गांव के ही कुछ बड़े बच्चों और दूसरे लोगों को मोहल्ला लीडर बनाया गया है जो समय मिलने पर बच्चों को पढ़ाते हैं।
शीला कहती हैं, ‘ऐसा करने से स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का तो फायदा तो होता ही है, साथ ही गांव के उन बच्चों को भी फायदा मिलता है, जो स्कूल नहीं जाते।’
स्कूल में बनाया अनोखा ‘वेलकम रूटीन’
स्कूल में रोज मजेदार तरीके से बच्चों का स्वागत किया जाता है। इसके लिए एक फ्लैक्स बनाया गया है। उसमें कई तरह के आईकन्स लगे हैं, जैसे- नमस्ते, शेक-हैंड, गले लगना, पंच। बच्चे जिस आईकन को छूते हैं, टीचर्स उसी तरीके से बच्चे का स्वागत करते हैं। जैसे बच्चे ने अगर नमस्ते के आईकन को छुआ तो क्लास टीचर बच्चे को नमस्ते करके क्लास में उसका स्वागत करेगी। इससे बच्चे खुश होते हैं।
प्राइवेट से नाम कटाकर सरकारी स्कूल आ रहे बच्चे
5 छोटी चिड़िया,
चला रही थी कार।
एक उड़ी फुर्र से,
बाकी रह गई 4।
4 छोटी चिड़िया,
बजा रही थी बीन।
एक उड़ी फुर्र से,
बाकी बची 3।
ऐसी ही शीला की कई कविताएं अब पूरे गांव में चर्चा का विषय हैं। इसी का असर है कि स्कूल में हर साल बच्चों का इनरोलमेंट बढ़ रहा है। वो बताती हैं, “अब स्कूल की स्थिति इतनी अच्छी हो चुकी है कि आसपास के प्राइवेट स्कूलों से निकलकर बच्चे यहां एडमिशन करा रहे हैं।”
दरअसल, गांव के पास दमोह में 10-12 प्राइवेट स्कूल हैं। पहले ज्यादातर लोग अपने बच्चों का एडमिशन प्राइवेट स्कूल में कराते थे। सरकारी स्कूल में एडमिशन बहुत कम हुआ करते थे। अब आंकड़े बताते हैं कि 2022 से लगातार प्राइवेट स्कूलों में बच्चे घट रहे हैं और शासकीय प्राथमिक विद्यालय में बढ़ रहे हैं।
2025-26 सेशन में ही प्राइवेट स्कूल से 4 बच्चे उनके स्कूल आए हैं। दो एडमिशन दूसरी क्लास में, जबकि एक-एक एडमिशन तीसरी और चौथी क्लास में हुआ है। वहीं, 2024 में 6 बच्चे प्राइवेट स्कूल से यहां आए थे।
टीचर शीला पटेल पहली से पांचवी तक के सभी बच्चों को ऑडियो-विजुअल माध्यम से पढ़ाती हैं। इस वजह से पढ़ाई में बच्चों की रुचि बढ़ गई है। अब प्राइवेट स्कूलों से नाम कटाकर बच्चे उनके सरकारी स्कूल में एडमिशन करा रहे हैं।
स्कूल में मनाया जाता है बैगलेस डे
शीला कहती हैं, ‘मैं ये मानती हूं कि सरकारी स्कूल भी प्राइवेट स्कूलों की तरह रंगीन और सुंदर होने चाहिए। इसलिए हमने स्कूल के क्लासरूम बच्चों की पसंद और रुचियों के हिसाब से पेंट कराए हैं। कहीं खिड़की-दरवाजों पर फलों के नाम तो कहीं कविताएं लिखवा दीं। हमने प्राइवेट स्कूलों जैसी व्यवस्थाएं अपने स्कूल में ही कीं।
स्कूल में बच्चों का जन्मदिन भी मनाते हैं। हर महीने जितने भी बच्चों का जन्मदिन आता है, बाल-सभा के दिन एक-साथ मनाया जाता है। स्कूल में टीचर्स केक कटवाते हैं और बच्चों के लिए तोहफे भी लाते हैं। स्कूल में बैगलेस डे मनाया जाता है। इन सब चीजों को देखकर लोग स्कूल की ओर आकर्षित होते हैं। जब लोगों की रुचि बढ़ी तो स्कूल का नामांकन भी बढ़ गया।
एमपी के 165 शिक्षकों में से हुआ शीला का चयन
इस साल राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए मध्य प्रदेश से 165 लोगों ने आवेदन किया था। दमोह जिले से ही 7 आवेदन किए गए थे। कुल 165 लोगों में से 6 लोगों का चयन हुआ, फिर उनका स्क्रीनिंग टेस्ट किया गया। इन टीचर्स ने 21 सवालों वाला एक मॉडल पेपर हल किया। इनमें से 2 शिक्षकों का चयन राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए किया गया है, जिनमें से शीला पटेल एक हैं।
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छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले का हनोदा मिडिल स्कूल।
यहां कभी इक्का-दुक्का बच्चे ही पढ़ने आते थे, अब हर दिन ही क्लास फुल रहती है। बच्चे मैथ्स पार्क में कुर्सी दौड़ करते हैं और क्लासरूम में बने लूडो, सांप-सीढ़ी में खुद उछल-उछल कर खेलते हैं। ये सब होता है प्रज्ञा मैम की मैथ्स क्लास में। ऐसी ही और खबरें पढ़ें…