Independence Day 2025: राहुल गांधी और खरगे स्वतंत्रता दिवस पर नहीं पहुंचे लाल किला, BJP बोली-…

79वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले पर आयोजित राष्ट्रीय समारोह में कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी तथा पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे शामिल नहीं हुए. उनकी अनुपस्थिति ने राजनीतिक हलकों में अटकलों को हवा दी. विपक्षी दल की ओर से कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं आया, लेकिन सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी पिछले साल बैठने की व्यवस्था को लेकर नाराज थे, जिसके चलते उन्होंने इस बार कार्यक्रम में भाग नहीं लिया.
दोनों नेताओं ने हालांकि सोशल मीडिया पर स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि दी और नागरिकों को शुभकामनाएं दीं. राहुल गांधी ने अपने संदेश में न्याय, सत्य और समानता पर आधारित भारत निर्माण का संकल्प दोहराया, जबकि खरगे ने इस दिन को लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति पुनः समर्पण का अवसर बताया.
बीजेपी का हमला और आरोप-प्रत्यारोप
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने राहुल गांधी की अनुपस्थिति पर निशाना साधते हुए X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा कि मोदी विरोध में राहुल गांधी देश और सेना का भी अनादर कर रहे हैं. उन्होंने इसे शर्मनाक व्यवहार बताते हुए सवाल उठाया कि क्या यही संविधान और सेना का सम्मान है.
पिछले साल का बैठने की व्यवस्था विवाद
पिछले वर्ष स्वतंत्रता दिवस समारोह में राहुल गांधी, जिन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है को लाल किले में परंपरा और प्रोटोकॉल के विपरीत दूसरी आखिरी पंक्ति में बैठाया गया था. इस दौरान भारतीय ओलंपिक पदक विजेताओं को सम्मान देने के लिए बैठने की व्यवस्था में बदलाव किया गया था. राहुल गांधी को पांचवीं पंक्ति में ओलंपियनों के पीछे बैठाया गया, जबकि उस समय के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, केंद्रीय मंत्री अमित शाह, निर्मला सीतारमण और एस जयशंकर जैसी हस्तियां आगे की पंक्ति में थीं.
रक्षा मंत्रालय ने तब स्पष्ट किया था कि सीट आवंटन वरीयता और प्रोटोकॉल के आधार पर होता है और इस बार ओलंपिक पदक विजेताओं को सम्मानित करने का निर्णय लिया गया था. हालांकि कांग्रेस ने इस तर्क को खारिज कर दिया और सवाल उठाया कि जब कुछ कैबिनेट मंत्री आगे बैठ सकते हैं तो विपक्ष के नेता को क्यों पीछे बैठाया गया.
राजनीतिक संदेश और रणनीति
राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे की इस साल की अनुपस्थिति को कांग्रेस समर्थक एक मौन विरोध के रूप में देख रहे हैं, जबकि भाजपा इसे राष्ट्र उत्सव से दूरी और प्रोटोकॉल का अनादर बताकर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रही है. यह घटना एक बार फिर यह दिखाती है कि राष्ट्रीय आयोजनों में भी राजनीतिक मतभेद और प्रोटोकॉल से जुड़े विवाद किस तरह सुर्खियों में आ सकते हैं.
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