अन्तराष्ट्रीय

क्या है स्पेस फोर्स और स्पेसकॉम, जो बना अमेरिका की सुरक्षा की रीढ़, जानें कैसे करता है काम?

रूस ने 2022 में जब यूक्रेन के कम्युनिकेशन सिस्टम पर हमला किया, तब यूक्रेन की सेना ने एक कमर्शियल सैटेलाइट सिस्टम का सहारा लिया. इस सिस्टम के जरिए, उन्हें इंटरनेट मिला, जिसमें 7,000 से ज्यादा सैटेलाइट्स काम कर रहे थे. इससे युद्ध के दौरान संचार बनाए रखने, ड्रोन चलाने और रियल-टाइम इमेजरी से रूसी सेना की मूवमेंट पर नजर रखने में मदद मिली.

कमर्शियल स्पेस टेक्नोलॉजी से आया बड़ा बदलाव

युद्ध में कमर्शियल स्पेस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल एक बड़ा बदलाव साबित हुआ. इससे साफ हुआ कि जिन देशों के पास खुद का स्पेस इंफ्रास्ट्रक्चर कम है, वे भी युद्ध के समय अंतरिक्ष आधारित तकनीक का फायदा उठा सकते हैं. डिफेंस डॉट गव की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी स्पेस कमांड के जनरल स्टीफन व्हाइटिंग ने इस बारे में कहा, “अब अंतरिक्ष तेजी से कमर्शियल हो रहा है और चीन और रूस जैसे देशों से नई तरह की चुनौतियां सामने आ रही हैं. 

अमेरिका को सबसे बड़ा खतरा किससे?

जनरल व्हाइटिंग ने कहा, “पिछले 10 से 15 सालों में अमेरिकी कमर्शियल स्पेस इंडस्ट्री इनोवेशन की सबसे बड़ी ताकत बन गई है.” उन्होंने उदाहरण के तौर पर री-यूजेबल रॉकेट और बड़ी सैटेलाइट कॉन्स्टेलेशंस का जिक्र किया. उन्होंने बताया कि ये तकनीकी प्रगति दुनिया भर में सेवाएं और सैन्य ऑपरेशन मजबूत करती हैं, लेकिन इसके साथ नई चुनौतियां भी सामने आई हैं. उनके अनुसार, प्रतिद्वंद्वी देशों के पास ऐसे साइबर टूल्स, जैमर्स, लेजर, डायरेक्ट असेंट एंटी-सैटेलाइट हथियार और को-ऑर्बिटल सिस्टम मौजूद हैं, जो अमेरिका की अंतरिक्ष क्षमताओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

व्हाइटिंग ने हाल की उन खबरों पर कड़ी प्रतिक्रिया दी जिनमें दावा किया गया है कि रूस अंतरिक्ष में परमाणु हथियार विकसित करने की कोशिश कर रहा है. उन्होंने इसे बेहद गैर-जिम्मेदाराना बताया और कहा कि ऐसा कदम सैटेलाइट नेटवर्क को गंभीर रूप से बाधित कर सकता है, जो आम लोगों की जिंदगी और सैन्य तैयारियों दोनों के लिए बेहद अहम है.

जनरल व्हाइटिंग ने कहा, “हम अपने देश की रक्षा अंतरिक्ष क्षमताओं के बिना नहीं कर सकते.” उन्होंने बताया कि 1991 की खाड़ी युद्ध (Gulf War) से ही विरोधी देश अमेरिका की स्पेस पर निर्भरता का अध्ययन कर रहे हैं.

रूस-चीन के टेस्ट ने बढ़ाई चिंता

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि 2021 में रूस ने एंटी-सैटेलाइट टेस्ट किया था, जिससे 1,500 से ज्यादा मलबे के टुकड़े बने, वहीं चीन ने फ्रैक्शनल ऑर्बिटल बॉम्बार्डमेंट सिस्टम का परीक्षण किया. यह दिखाता है कि खतरे का दायरा लगातार बदल रहा है. उन्होंने चेताया कि आज की रोज़मर्रा की जरूरतें जैसे वित्तीय लेन-देन, इमरजेंसी सेवाएं और नेविगेशन ऐप्स, सब GPS पर निर्भर हैं, जिसे स्पेस कॉन्फ्लिक्ट में बाधित किया जा सकता है.

क्यों बनीं स्पेस फोर्स और स्पेसकॉम

उन्होंने बताया कि 2019 में स्पेस फोर्स और स्पेसकॉम की स्थापना इसी जोखिम को ध्यान में रखकर की गई थी. स्पेस फोर्स का काम है कर्मियों की भर्ती, ट्रेनिंग और उपकरण उपलब्ध कराना, जबकि स्पेसकॉम ऑपरेशन को अंजाम देता है. व्हाइटिंग ने कहा, “हम हर दिन इस लक्ष्य के साथ योजना बनाते हैं कि युद्ध को रोका जा सके.” इसी मकसद से स्पेसकॉम कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे सहयोगी देशों के साथ मिलकर ताकत दिखाता है. हाल ही में गोल्डन डोम मिसाइल डिफेंस इनिशिएटिव की शुरुआत भी इस बात का संकेत है कि राष्ट्रीय सुरक्षा में अंतरिक्ष की भूमिका कितनी अहम है.

उन्होंने आगे कहा कि कमर्शियल इनोवेशन की मदद से अब ऐसे स्पेस-बेस्ड सेंसर और इंटरसेप्टर तैयार किए जा रहे हैं जो हाइपरसोनिक और ऑर्बिटल खतरों को ट्रैक कर सकें. यूक्रेन द्वारा कमर्शियल स्पेस सिस्टम के इस्तेमाल से व्हाइटिंग ने तीन अहम सबक गिनाए.

यूक्रेन से मिले तीन सबक

1. छोटे देश भी अब एडवांस्ड स्पेस क्षमताएं हासिल कर सकते हैं.

2. सैटेलाइट्स पर साइबर हमले एक बड़ा जोखिम हैं.

3. GPS, कम्युनिकेशन और इंटेलिजेंस जैसे स्पेस टूल्स युद्ध के मैदान में सफलता के लिए बेहद जरूरी हैं.

इन्हीं सबक के आधार पर स्पेसकॉम आज अपनी रणनीतियां बना रहा है, खासकर चीन की निगरानी (surveillance) को काउंटर करने के लिए. आखिर में व्हाइटिंग ने कहा, “हम अंतरिक्ष में युद्ध नहीं चाहते, लेकिन अगर ऐसा होता है तो हमें जीतने के लिए तैयार रहना होगा.”

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