राज्य

Ruins of daughters’ dreams in Jhunjhunu | झुंझुनूं में बेटियों के सपनों का खंडहर: 12 साल बाद भी…

झुंझुनूं में बेटियों के सपनों का खंडहर

झुंझुनूं जिले के सेठ नेतराम टीबड़ेवाल राजकीय महिला कॉलेज में 12 साल से एक छात्रावास अधूरा पड़ा है। 2012 में 200 छात्राओं के लिए मंजूर हुआ यह प्रोजेक्ट, यूजीसी से सिर्फ पहली किस्त मिलने के बाद अटक गया। आधी-अधूरी बनी इमारत अब खंडहर में तब्दील हो चुकी ह

.

2012 में मिली मंजूरी, बीच में अटक गया काम

यूजीसी ने साल 2012 में महिला कॉलेज परिसर में 200 छात्राओं की क्षमता वाला छात्रावास बनाने के लिए 80 लाख रुपए मंजूर किए थे। योजना के मुताबिक यह राशि दो किस्तों में जारी होनी थी। पहली किस्त के तौर पर 40 लाख रुपए जारी होने पर 23 जनवरी 2013 को पीडब्ल्यूडी ने निर्माण कार्य शुरू किया। छह कमरे, डायनिंग हॉल, वॉशरूम और किचन तक का काम पूरा हो गया, लेकिन दूसरी किस्त कभी आई ही नहीं। इसके बाद पीडब्ल्यूडी ने काम बीच में रोक दिया और इमारत अधूरी छोड़ दी।

12 साल में खंडहर बन गया भवन

जिस इमारत में छात्राओं की चहल-पहल होनी थी, वहां अब सन्नाटा और सड़ांध फैली हुई है। चारदीवारी नहीं होने के कारण जगह-जगह कंटीली झाड़ियां उग आई हैं। अंदर बने कमरे गंदगी से पटे पड़े हैं। दरवाजे और खिड़कियों के पल्ले गायब हैं। वॉशरूम और किचन में लगे नल व फिटिंग्स तक लोग उखाड़ ले गए। स्थानीय लोग बताते हैं कि अधूरा हॉस्टल अब असामाजिक तत्वों का अड्डा बन चुका है।

हर साल लिखे खत, लेकिन कोई सुनवाई नहीं

कॉलेज प्रशासन पिछले 12 साल से यूजीसी को बार-बार पत्र लिखकर दूसरी किस्त जारी करने की गुहार लगाता रहा है। प्राचार्य रामकुमार सिंह का कहना है कि अब तक करीब एक दर्जन पत्र भेजे जा चुके हैं। छात्र संगठनों ने भी ज्ञापन सौंपे, लेकिन नतीजा शून्य रहा। यहां तक कि 9 अक्टूबर 2014 को यूजीसी की टीम ने आकर निरीक्षण भी किया और भौतिक सत्यापन रिपोर्ट सौंपी थी, लेकिन उसके बाद भी फंड रिलीज नहीं हुआ।

बेटियों के लिए किराए के कमरे ही सहारा

इस अधूरे प्रोजेक्ट की वजह से गांवों से पढ़ने आने वाली बेटियों को किराए पर कमरे लेकर रहना पड़ता है। कॉलेज के छात्र-छात्रा संगठन का कहना है कि हॉस्टल होता तो न केवल छात्राओं की पढ़ाई आसान होती बल्कि उनकी सुरक्षा भी सुनिश्चित रहती। कई छात्राएं लंबी दूरी से रोजाना बस में सफर कर पढ़ने आती हैं। घर से शहर तक का रोज का सफर उनके लिए थकान भरा और समय की बर्बादी है।

क्या बनना था हॉस्टल में

योजना के अनुसार इस छात्रावास में 10 कॉमन रूम, एक किचन, वॉशरूम, एक डायनिंग रूम, एक अतिथि कक्ष, एक परिचर्चा कक्ष, एक रीडिंग रूम, वार्डन व सह-वार्डन रूम और चारदीवारी बननी थी। इसके अलावा वाटर क्लोसेट की व्यवस्था भी की जानी थी। आज स्थिति यह है कि आधा-अधूरा बना ढांचा खड़ा है, लेकिन न छात्राएं यहां रह सकती हैं और न ही कॉलेज इसका कोई उपयोग कर पा रहा है।

सेठ नेतराम मघराज टीबड़ेवाल कॉलेज की अहमियत

झुंझुनूं जिले में बेटियों की उच्च शिक्षा के लिए यह कॉलेज एक प्रमुख केंद्र है। यहां आसपास के ग्रामीण इलाकों से बड़ी संख्या में छात्राएं पढ़ने आती हैं। लेकिन अधूरा छात्रावास उनके लिए सबसे बड़ी परेशानी बना हुआ है। कॉलेज प्रशासन का कहना है कि हॉस्टल पूरा हो जाता तो कई छात्राएं, जो रोजाना आना-जाना नहीं कर पातीं, आराम से पढ़ाई जारी रख सकती थीं।

प्रशासन और सरकार की लापरवाही का उदाहरण

यह मामला केवल एक अधूरे हॉस्टल का नहीं है, बल्कि सरकारी सिस्टम की लापरवाही का आईना है। एक बार फंडिंग रुकने के बाद किसी ने भी इसकी सुध नहीं ली। कॉलेज प्रशासन ने पत्र भेजे, लेकिन बजट नहीं मिला। विभागीय प्रक्रियाएं इतनी जटिल रहीं कि बेटियों के लिए बना यह आशियाना आज खंडहर में बदल चुका है।

बेटियों के सपनों का सवाल

12 साल पहले 80 लाख की लागत से शुरू हुआ यह छात्रावास बेटियों की सुरक्षा और शिक्षा का आधार बनने वाला था। लेकिन आज यह सवाल बन गया है कि आखिर उन छात्राओं का क्या कसूर था, जिनके लिए यह सुविधा बनाई जा रही थी? हर साल नए सत्र में कॉलेज प्रशासन छात्राओं और अभिभावकों को यह कहकर निराश करता है कि हॉस्टल अभी अधूरा है।

उम्मीद की किरण

कॉलेज प्रशासन का कहना है कि वह अब भी प्रयासरत है कि राज्य सरकार या यूजीसी से फंड जारी कर छात्रावास का काम पूरा करवाया जाए। छात्र संगठन भी इस मुद्दे को बार-बार उठाते रहे हैं। सवाल यह है कि क्या 12 साल से धूल फांक रहा यह ढांचा कभी छात्राओं के सपनों का आशियाना बन पाएगा या हमेशा खंडहर ही रहेगा

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button