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Hundred affected by floods for the second time in 15 days | हनुमानगढ़ में दूसरी बार बाढ़, टापू…

टापू में तब्दील गांव…तबाह हुए मकान, गलियों में 10-10 फीट तक भरा पानी, छतों पर चढ़कर जान बचाते लोग और भूख से बिलखते बच्चे…ये मंजर पंजाब में आई बाढ़ का नहीं, राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का है। कई गांवों में बाढ़ जैसे हालात हैं।

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भास्कर टीम मौके के हालात जानने पहुंची। जिला मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर दूर मक्कासर गांव सबसे ज्यादा प्रभावितों में से एक है। यहां मानसून में दूसरी बार बाढ़ जैसी आफत है। जुलाई में भारी बारिश के कारण कई लोगों के आशियाने उजड़ गए थे।

अब 31 अगस्त और फिर 1 सितंबर को आई बारिश से 100 से ज्यादा परिवार के 325 लोग राहत शिविरों में रिफ्यूजी कैंप जैसी जिंदगी बिताने को मजबूर हैं। वहां भी उन्हें खाना पैसों से खरीदकर खाना पड़ रहा है।

हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर मक्कासर गांव में बाढ़ के हालात हैं।

पूरा मानसून सीजन राहत शिविर में, दो बार बाढ़ के हालात बने मक्कासर गांव इसी मानसून सीजन में दूसरी बार बाढ़ की जद में है। यहां 9 जुलाई की रात इतनी तेज बारिश हुई कि लोगों के मकान आधे डूब गए। मवेशी मर गए। किसी तरीके से ग्रामीणों ने रेस्क्यू कर प्रभावित परिवारों को सुरक्षित जगह पहुंचाया। करीब 20-25 दिन 250 लोगों ने रहात कैंप में बिताए थे। जैसे ही घर लौटने की बारी आई। 31 अगस्त और 1 सितंबर को आई जोरदार बारिश ने फिर से कई आशियाने उजाड़ दिए।

हनुमानगढ़ के मक्कासर गांव में सचेत करने के लिए इस तरह के पोस्टर लगाए गए हैं।

घर में पानी भरा है, लेकिन खाली छोड़कर निकलने को तैयार नहीं भास्कर टीम कमर तक भरे पानी के बीच से होते हुए उन गलियों में पहुंची, जहां हालात सबसे खराब हैं। एक पॉइंट तक जाने के बाद लोगों ने आगे जाने से रोक दिया। बताया कि आगे 10 फीट तक पानी है। जमीन दलदल बन गई है। धंसने का खतरा है।

कॉर्नर पर एक मकान की छत पर चढ़े दो युवक नजर आए। उनसे पूछा तो बोले- मकान किसके भरोसे छोड़ें। अंदर कमर तक पानी था, इसलिए छत पर चढ़े हुए हैं। 31 अगस्त की रात से यहां लाइट बंद हैं, क्योंकि पानी की वजह से करंट का खतरा बना हुआ है।

हनुमानगढ़ के मक्कासर गांव में इस तरह की तस्वीर आम है। लोगों छतों पर रातें गुजार रहे हैं।

ग्रामीण मनफूल 1 सितंबर की रात का मंजर याद कर बताते हैं- हम तो सो रहे थे। 11-12 बजे तेज बारिश का दौर शुरू हुआ। 2 बजे पता चला कि घर में पानी भर गया है। कमरे के अंदर सोते समय जब पानी चारपाई को छूने लगा तब नींद खुली। बाहर निकलकर देखा तो हालात चौंकाने वाले थे।

पानी के बीच एक पत्थर पर बैठे हुए नानक राम मिले। उन्होंने बताया कि रात को 11 बजे करीब पानी भरना शुरू हो गया था। मेरा बेटा अंदर फंसा था। ग्रामीणों उसे बाहर नहीं निकालते तो शायद वो जिंदा नहीं होता। हमारा सामान यहीं रखा है, इसलिए दिनभर मकान की रखवाली करने आते हैं। खाना शिविर में जाकर खाते हैं।

घर के नजदीक ही पानी के बीच एक पत्थर पर बैठे नानकराम।

माया देवी कहती हैं- घर में रखा टीवी, फ्रीज सब खराब हो गए। पहले बाढ़ आई थी तो उसके बाद घर को ठीक करवाया था। एक बार फिर से हम सड़कों पर रात बिता रहे हैं। रुकमा देवी ने बताया कि बेटा विकास मजदूरी करता है। भारी बारिश के कारण काम-धंधा भी ठप पड़ा है। 30 दिन से वह भी काम पर नहीं जा पा रहा है।

घर की दीवारें गिरी, छत पर चढ़कर जान बचाई सरोज देवी बताती हैं- रात 10 बजे बारिश शुरू हुई। हम निकल नहीं पाए। कभी छत पर चढ़े, कभी नीचे उतरकर बच्चों को संभालते रहे। जैसे-तैसे रात गुजारी। सुबह गांव वालों ने बाहर निकालकर राहत शिविर में पहुंचाया।

घर की दीवार और मकान दोनों गिर चुके हैं। नींव में पानी से पड़ोसी का घर भी बैठने लगा है। हमारा सामान बाहर खुले आसमान में पड़ा है। डर लग रहा है कि अब बाकी मकान भी न गिर जाए।

सरोज देवी और संजय ने बताया कि वो रात बेहद डरावनी थी। बड़ी मुश्किल से जान बचा पाए थे।

राहत शिविर में अभी 15 परिवार, स्थिति रिफ्यूजी कैंप जैसी हालात इतने खराब हो गए कि ग्राम पंचायत को स्कूल, पंचायत भवन और स्वास्थ्य केंद्रों को राहत शिविरों में तब्दील करना पड़ा। यहां हमारी मुलाकात गणपत लाल से हुई। उन्होंने बताया कि अभी यहां पर 6 परिवार मौजूद हैं। इनकी हालत रिफ्यूजी कैंप जैसी है। कृषि सेवा केंद्र में भी कैंप बना है, जहां 5 परिवारों को शरण दी हुई है। वहां केवल एक टॉयलेट और एक बाथरूम बना हुआ है। गांव की बहू-बेटियां यहां खुले में रहने को मजबूर हैं। गणपत लाल ने आरोप लगाते हुए कहा- 3 दिन से प्रशासन ने लोगों की सुध तक नहीं ली।

राहत शिविरों में मौजूद लोग अन्नपूर्णा रसोई से खाना खा रहे हैं।

शिविर में हमने देखा कि टॉयलेट के पास टीनशेड के नीचे दो परिवारों ने शरण ले रखी थी। यहां उनकी खाट, घरेलू सामान रखे हुए थे। एक तरफ टेंट लगाया हुआ था। वहीं परिसर में ही अन्नपूर्णा रसोई ऑफिस के बरामदे में भी दो परिवारों ने अपना आशियाना बनाया हुआ था। खुले में बक्से रखे थे, जिसमें टूटे-फूटे सामान भरे हुए थे। बचाकर लाए गए चूल्हे, गैस सिलेंडर, कुछ कपड़े रखे थे। रात को यही जगह इनके लिए सोने का सहारा बनती है।

हनुमानगढ़ के मक्कासर गांव में बाढ़ के हालात के बाद लोगों ने राहत शिविर में पनाह ली है।

राशन बह गया, सरकारी मदद दूर पंचायत भवन में ही लोगों के लिए अन्नपूर्णा रसोई संचालित है। यहां भी शिविर में रहने वाले परिवारों को पैसा देकर दो वक्त की रोटी खानी पड़ रही है। रश्मि नाम की महिला ने बताया कि हमारे घर डूबे हुए हैं। पैसों से लेकर घर का राशन पानी सब बह चुका है। रोटी के लाले हैं। दिहाड़ी मजदूरी से घर चलाते थे। महीनेभर से कोई रोजगार नहीं कर पाया है। बावजूद इसके अन्नपूर्णा रसोई में पैसे चुकाकर भोजन करना पड़ रहा है।

आरजू भूख से बिलख रहे बच्चे को चुप कराने की कोशिश कर रही थी। उन्होंने बताया- चूल्हे, सिलेंडर तो हैं, लेकिन राशन सामग्री नही है। ग्रामीण मदद के लिए राशन देकर जाते हैं, उसी से खाना बना लेते हैं। दिन में एक बार अन्नापूर्णा रसोई में खा लेते हैं। अन्नापूर्णा रसोई की डेटा ऑपरेटर अमनदीप कौर ने बताया कि यहां पर सौ लोगों की रोज की डाइट बनती है। एंट्री और पैसे जमा होने के बाद ये लोग यहां खाकर जाते हैं।

खाट समेत उठाकर पानी से निकाला, कॉपी किताबें पानी में बह गई राहत शिविर में बैठे नवरंग लाल ने बताया कि वह मजदूरी करते थे। तीन साल पहले एक्सीडेंट में पैर चला गया। उस रात बाढ़ में पूरा परिवार फंस गया था। मैं चल नहीं सकता। ऐसे में लोगों ने ही मुझे खाट पर डालकर बाहर निकाला। जान तो बच गई, लेकिन अब जिंदगी भारी पड़ने लगी है। मकान पानी में डूब गया है। मेरा डेढ़ लाख का नुकसान तो पहले आई बाढ़ में ही हो गया। अब फिर से बेघर हो गया हूं।

लिक्ष्मा देवी और 11वीं की स्टूडेंट एकता अभी राहत शिविर में हैं। एकता ने बताया कि बैग पानी में बह गया। अब वे स्कूल भी नहीं जा पा रहीं।

दो दिन से सड़क पर खाट पर बीत रहा दिन, पड़ोसी खिला रहे खाना गांव में चारों तरफ जहां भी नजर जाती है, मकान पानी में डूबे हुए नजर आते हैं। इसी में से एक मकान रामपाल का था, जो बाढ़ में तबाह हो गया। रामपाल का पैर काम नहीं करता। यहां उसकी मां संतरो देवी उसके पैरों में दवा लगा रही थीं। उन्होंने बताया कि मकान तो ढह गया…अब पड़ोसी के घर के बाहर चारपाई पर ही रात बीत रही है। पड़ोसी ही खाना खिला देते हैं।

घर में घुटनों से ऊपर तक भरा पानी और उसके बीच में से अंदर जाकर देखभाल करती महिला।

सर्वे करवाकर मुआवजे के लिए भेजेंगे एसडीएम मांगीलाल 2 सितंबर को मौके पर पहुंचे और लोगों से मुलाकात की। उन्होंने बताया कि जुलाई में भी यहां पानी भर गया था। उस समय अस्सी मकान इसकी चपेट में आए थे। तब सर्वे कर सहायता राशि के लिए भेज दी थी।

इस बार पहले से ज्यादा मकान चपेट में आए हैं। पानी उतरने के बाद सर्वे करवाकर जो भी उचित मदद होगी उसके लिए कोशिश करेंगे।

भोजन की व्यवस्था अन्नपूर्णा रसोई से है। अब कोशिश कर रहे हैं कि राशन सामग्री या खाने के पैकेट मुहैया करवाए जाएं। उन्होंने बताया कि यहां पानी भरने का कारण है कि यहां मकान ऊंचाई पर नहीं है, इसके अलावा दूसरी तरफ से खेतों का पानी यहां भर जाता है। इसका भी जल्द समाधान करेंगे।

गांव की गली नंबर-6 में सबसे ज्यादा हालात खराब हैं। यहां कई जगहों पर 10-10 फीट तक पानी है।

जिलेभर के कई अन्य इलाकों में भी हालात बिगड़े हनुमानगढ़ जिले में 31 अगस्त और एक सितंबर को हुई मूसलाधार बारिश के बाद हालात बिगड़ गए हैं। मक्कासर, हनुमानगढ़ जंक्शन के 10 एमओडी, नोहर के फेफाना, हनुमानगढ़ टाउन की पारीक कॉलोनी, आईटीआई बस्ती और 2 केएनजे ग्राम पंचायत के ग्रामीणों की पीड़ा इसी तरह जुबान पर आ रही है। मक्कासर में हुई तेज बारिश के बाद हालात ऐसे बने कि 80 से ज्यादा परिवारों के करीब 325 लोगों को अपने ही घरों से बेघर होना पड़ा है।

किसी का मकान गिर गया, किसी के आंगन में पानी भर गया, तो किसी का राशन पानी में बह गया। ऐसा ही मंजर 10 एमओडी का भी है, जहां पर 10 से अधिक घर तबाह हो गए हैं। नोहर के फेफाना, टाउन के पारीक कॉलोनी, आईटीआई बस्ती और 2 केएनजे ग्राम पंचायत में अभी भी बारिश का पानी जमा है।

मक्कासर गांव के हालातों का ड्रोन व्यू।

घग्गर नदी से पानी की आवक से खतरा हनुमानगढ़ में बाढ़ के हालात के दो कारण हैं। पहला दो दिन तक लगातार हुई बारिश और दूसरा घग्गर नदी में पानी की आवक। घग्गर नदी में पानी की आवक इतनी नहीं है कि इससे अभी बाढ़ का खतरा हो, लेकिन अलर्ट किया गया है क्योंकि घग्गर में पानी आने पर टिब्बी और हनुमान गढ़ जंक्शन ज्यादा प्रभावित होते हैं। मक्कासर में बाढ़ के हालात पानी का रिसाव निचले इलाके में जाने से हुआ।

घग्गर नदी में पानी की आवक से गुल्ला चिका में पानी का बहाव सर्वाधिक 37 हजार 893 क्यूसेक दर्ज किया गया है।

बारिश बिगाड़ रही हालात मंगलवार को हनुमानगढ़ में 177 एमएम बारिश हुई। जारी आंकड़ों के हिसाब से हनुमानगढ़ में 8 एमएम, टिब्बी के 17 एमएम, तलवाड़ा झील में 6 एमएम, पल्लू में 7, नोहर में 52 एमएम, रामगढ़ में 12, फेफाना में 34, भादरा में 19 और डगराना में 10 एमएम बारिश रिकॉर्ड हुई। एक जून से अब तक 8188 एमएम बारिश हुई है। इसमें सबसे ज्यादा पीलीबंगा के गोलूवाला में 721 एमएम बारिश रिकॉर्ड हुई है।

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