Case of Rajasthan Medical Education Society | राजस्थान मेडिकल एजुकेशन सोसायटी का मामला: नए…

प्रदेश में राजस्थान मेडिकल एजुकेशन सोसायटी (राज मेस) के अधीन 22 मेडिकल कॉलेजों में शिक्षक चिकित्सकों के 40% पद खाली हैं। कमी पूरी के लिए सरकार चिकित्सा शिक्षा में भर्ती का पूरा ढांचा बदलने जा रही है।
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सरकार नया सिस्टम लाना चाहती है। लेकिन यह ग्रुप वन यानी पुराने मेडिकल कालेजों के शिक्षक चिकित्सकों को रास नहीं आ रहा। वे विरोध में हैं। वजह ये है कि यदि ये लागू हुआ तो इसमें पुराने मेडिकल कॉलेज भी शामिल किए जाएंगे। ऐसे में बिना किसी प्रक्रिया के केवल अनुभव के आधार पर मेडिकल ऑफिसर को सीधे एसोसिएट प्रोफेसर बन जाएंगे।
बता दें, हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार जल्द से जल्द ये पद भरना चाहती है। प्रदेश में 30 सरकारी मेडिकल कॉलेज में हैं। इनमें 22 राजमेस के हैं। जबकि उदयपुर, जयपुर, जोधपुर, कोटा, बीकानेर और अजमेर के पुराने कॉलेज ग्रुप वन में शामिल हैं। दो केंद्र सरकार के अधीन हैं। चित्तौड़गढ़, बूंदी, श्रीगंगानगर, डूंगरपुर, अलवर, करौली, धौलपुर, भरतपुर, भीलवाड़ा, बाड़मेर, चूरू, दौसा, हनुमानगढ़, पाली, सीकर, झालावाड़, सिरोही के कालेज राज मेस के तहत हैं।
आरएमसीटीए के सचिव डॉ. तरुण रलोत का कहना है कि हम चाहते हैं कि इन मेडिकल ऑफिसर को लिया जाता है तो असिस्टेंट कॉलेज प्रोफेसर के पद पर लिया जाए। इसके 4 साल बाद उन्हें एसोसिएट बनाया जाए। नियम में संशोधन हुआ तो नए एसोसिएट ग्रुप वन वाले पुराने कॉलेजों में लगना चाहेंगे।
इसलिए विरोध…जिन्होंने न पढ़ाया, न शोध किए, उन्हें सीधे ही मौका भर्ती प्रक्रिया में संशोधन से वे लोग भी एसोसिएट प्रोफेसर बन जाएंगे, जिन्हें न पढ़ाने का अनुभव है और न उनके नाम पर कोई रिसर्च ही है। केवल जिला स्तर पर 10 वर्ष तक 220 बेड वाले अस्पताल में काम का अनुभव होने के आधार पर एसोसिएट प्रोफेसर बना दिए जाएंगे। उन्हें अगले दो साल में एनएमसी के बीसी बीएमआर और बीसीएमएटी दो कोर्स करने हैं। ग्रुप-1 के कॉलेजों में एसोसिएट प्रोफेसर बनने से पहले असिस्टेंट प्रोफेसर बनना होता है। इसके लिए आरपीएससी की ओर से तीन या दो वर्ष में होने वाली परीक्षा में पास होने व साक्षात्कार से गुजरना होता है।