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पुतिन-जिनपिंग के साथ दिखे PM मोदी तो ढीले पड़े ट्रंप के तेवर! SCO समिट खत्म होते ही भारत-US के…

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाने के बाद से दोनों देशों के बीच रिश्तों में दूरियां बढ़ गई है. इस सब के बीच अमेरिका की फ्लोसर्व कॉरपोरेशन और भारत की कोर एनर्जी सिस्टम्स लिमिटेड ने एक महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत प्राइमरी कूलेंट पंप तकनीक भारत लाई जाएगी. इस समझौते से भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को नई गति मिलने की उम्मीद है.

परमाणु ऊर्जा को लेकर भारत-यूएस के बीच हुई डील

यह समझौता वाशिंगटन डीसी में अमेरिकी ऊर्जा विभाग और भारतीय दूतावास के अधिकारियों की उपस्थिति में संपन्न हुआ. इसे अमेरिकी ऊर्जा विभाग और भारतीय परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) दोनों की मंजूरी प्राप्त है. कोर एनर्जी सिस्टम्स लिमिटेड के अध्यक्ष और मैनेजिंग डायरेक्टर नागेश बसरकर ने कहा, ‘‘हमने 2047 तक 100 गीगावाट की परमाणु क्षमता हासिल करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है, जबकि अभी हम लगभग 8.2 गीगावाट के आसपास हैं.’’

नागेश बसरकर ने कहा कि परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण बात सप्लाई चैन होती है, जिसमें सबसे आवश्यक उपकरण रिएक्टर होता है और उसके बाद प्राइमरी कूलेंट पंप. उन्होंने कहा कि भारत में इस तकनीक को बनाने वाले विक्रेताओं की संख्या बेहद सीमित है. उन्होंने कहा, ‘‘देश में केवल एक ही विक्रेता है जो यह पंप बनाता है. ऐसे में इस क्षेत्र में विश्व की अग्रणी कंपनी फ्लोसर्व के साथ यह समझौता करना बेहद महत्वपूर्ण उपलब्धि है.’’

पिछले साल इस डील को लेकर हुई थी बात

उन्होंने बताया कि इस तकनीक को भारत में लाने में कई जियोपॉलिटिक्स और कानूनी अड़चनें थीं. यह पहली बार है जब भारत-अमेरिका सहयोग के तहत इतनी अहम तकनीक का हस्तांतरण संभव हो पाया है. भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग ने नवंबर 2024 में कोर एनर्जी को फ्लोसर्व के साथ साझेदारी की अनुमति दी थी और अमेरिका को आश्वस्त किया था कि यह तकनीक केवल शांतिपूर्ण नागरिक परमाणु उद्देश्यों के लिए ही इस्तेमाल की जाएगी.

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