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Art of Desire: काम कला के रहस्य…क्यों शास्त्रों ने इसे स्वर्ग और नरक का द्वार कहा

Art of Love: भारतीय संस्कृति में ‘काम’ केवल वासना या शारीरिक इच्छा नहीं है. इसे चार पुरुषार्थों…धर्म, अर्थ, ‘काम’ और मोक्ष में शामिल किया गया है.  इसका अर्थ है कि ‘काम’ जीवन का संतुलन जो आनंद और सृष्टि की निरंतरता के लिए आवश्यक है.

शास्त्रों में इसे कभी कला, कभी पाप और कभी आत्मिक साधना का माध्यम बताया गया. ज्योतिष इसे ग्रहों का खेल कहता है और आधुनिक विज्ञान इसे मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य और सृजनशीलता की ऊर्जा मानता है.

कामसूत्र: जीवन की 64 कलाओं में से एक

वात्स्यायन का ‘कामसूत्र’ अक्सर केवल शारीरिक मुद्राओं की पुस्तक समझा जाता है, जबकि सत्य यह है कि यह जीवन की 64 कलाओं में से एक ‘काम’ कला का विवरण है. 

इसमें बताया गया है कि ‘काम’ केवल शरीर का सुख नहीं, बल्कि वार्तालाप की कला, संगीत, सौंदर्यबोध, सुगंध, वस्त्राभूषण, भावनाओं की समझ और परस्पर सामंजस्य का भी नाम है. वात्स्यायन कहते हैं कि ‘काम’ कला जीवन की शोभा है. यह केवल भोग नहीं, बल्कि आत्मा और मन का संतुलन है.

उपनिषद और गीता क्या कहती है?

कठोपनिषद के अनुसार इन्द्रियाणि रथस्य अश्वा, मनः सारथिः यानी इंद्रियां रथ के घोड़े हैं और मन सारथी. अगर सारथी संयमी है तो रथ जीवन को सफल दिशा देगा, यदि नहीं तो पतन निश्चित है.

गीता (3/37) में भगवान कृष्ण कहते हैं कि काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः. यानी ‘काम’ ही क्रोध, मोह और विनाश का कारण बनता है. इसलिए गीता का संदेश है कि ‘काम’ को नियंत्रित कर धर्म और मोक्ष की ओर बढ़ो अन्यथा यह बंधन बन जाएगा.

पुराण और महाभारत में भी छिपे गहरे राज़

इंद्र अहल्या प्रसंग में ‘काम’वश पतित हुए. विश्वामित्र मेनका के आकर्षण में आकर तपस्या भंग कर बैठे. शिव ने ‘काम’देव को भस्म कर संयम का आदर्श प्रस्तुत किया.

रामायण में रावण की वासना ही उसके विनाश का कारण बनी. इन कथाओं से स्पष्ट है कि ‘काम’ शक्ति इतनी प्रबल है कि देव, दानव और ऋषि तक इससे प्रभावित हो सकते हैं.

‘काम’ से मोक्ष तक

तंत्र परंपरा का दृष्टिकोण भिन्न है. यहां ‘काम’ को दबाने की बजाय साधना का माध्यम माना गया. ‘काम’कला तंत्र के अनुसार जब पुरुष और स्त्री शिव-शक्ति के रूप में मिलते हैं, तो यह केवल शारीरिक नहीं बल्कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा का अनुभव होता है. यही कारण है कि तंत्र मार्ग में ‘काम’ को मोक्ष का सेतु कहा गया.

ज्योतिषीय का ‘काम’ कला से क्या नाता है?

जन्मकुंडली में ‘काम’ से जुड़े मुख्य ग्रह शुक्र, मंगल, राहु और केतु हैं. यही कारण है विवाह से पूर्व कुंडली मिलान के दौरान इन ग्रहों की शुभ-अशुभ स्थिति को सबसे पहले चेक किया जाता है.

  • शुक्र: प्रेम, आकर्षण, सौंदर्य और कला का कारक. मजबूत हो तो व्यक्ति आकर्षक और कलात्मक बनता है, कमजोर हो तो विकृति और असंयम लाता है.
  • मंगल: ऊर्जा और आवेग का प्रतीक. शुभ स्थिति में दांपत्य सुख और साहस देता है, अशुभ होने पर संबंधों में हिंसा और असंतुलन लाता है.
  • राहु: भ्रम और वर्जना का संकेतक. यह असामान्य संबंध और व्यसन की ओर धकेल सकता है.
  • केतु: विरक्ति और वैराग्य का कारक. यह ‘काम’ को त्याग और अध्यात्म में बदल देता है.

ज्योतिष ग्रंथ स्पष्ट कहते हैं कि ‘काम’ केवल व्यक्तिगत इच्छा नहीं, बल्कि ग्रहों के प्रभाव का परिणाम भी है. जो लव लाइफ को गहराई तक प्रभावित करते हैं. दांपत्य जीवन में ग्रहों की शुभ-अशुभ स्थिति का व्यापक प्रभाव देखने को मिलता है.

प्रसंग और सीख

भारतीय ग्रंथों में ऐसे कई प्रसंग हैं जो ‘काम’ की शक्ति और उसके परिणाम दिखाते हैं. पौराणिक ग्रंथों में ऐसे अनकों उदाहरण देखने को मिलते हैं जैसे-

  • शिव और ‘काम’देव – ‘काम’देव ने शिव का ध्यान भंग करने का प्रयास किया और भस्म हो गए.
  • अर्जुन और उर्वशी – उर्वशी ने अर्जुन को मोहित करना चाहा, लेकिन अर्जुन ने उन्हें मां का स्थान देकर संयम दिखाया.
  • रावण और सीता – रावण की वासना ने उसे विनाश की ओर धकेल दिया.

ये प्रसंग बताते हैं कि ‘काम’ शक्ति देवताओं तक को विचलित कर सकती है, लेकिन संयमित हो तो यह आत्मबल बन जाती है. आधुनिक विज्ञान और शोध भी इस विषय को लेकर अत्यंत गंभीर नजर आते हैं. इस विषय को लेकर समय-समय पर विद्वानों को शोध और विचार चौंकाने वाले रहे हैं.

मनोविज्ञान

सिगमंड फ्रायड ने कहा कि ‘काम’ना (libido) ही सभी मानवीय गतिविधियों की मूल प्रेरणा है. यह कला, विज्ञान और समाज तक के विकास की जड़ है. दबी हुई वासना अपराध और अवसाद का कारण बन सकती है, जबकि संतुलित दृष्टिकोण इसे सृजनशीलता और आनंद में बदल देता है.

न्यूरोसाइंस

वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि डोपामिन, ऑक्सीटोसिन और टेस्टोस्टेरोन जैसे हार्मोन ‘काम’ भावना को नियंत्रित करते हैं. ध्यान और योग इन हार्मोनों को संतुलित करते हैं. इसीलिए योग और प्राणायाम को ‘काम’ ऊर्जा को साधने का श्रेष्ठ मार्ग माना गया है.

स्वास्थ्य

आधुनिक चिकित्सा मानती है कि संतुलित यौन जीवन तनाव घटाता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है और दीर्घायु देता है. असंयमित या विकृत ‘काम’नाएं बीमारियों, मानसिक अस्थिरता और अपराध का कारण बनती हैं.

समाजशास्त्र

समाजशास्त्रियों का मानना है कि दबी हुई वासनाएं असामाजिक गतिविधियों, हिंसा और अपराध का कारण बनती हैं. वहीं शिक्षा और जागरूकता ‘काम’ को कला, सृजन और प्रेम का रूप देती हैं.

‘काम’ शक्ति तीन रूपों में प्रकट होती है

  1. यदि यह केवल भोग तक सीमित हो, तो पतन का कारण है.
  2. यदि यह मोह और आसक्ति में बदल जाए, तो यह बंधन बन जाता है.
  3. यदि इसे कला और साधना की तरह साधा जाए, तो यह मुक्ति और आत्मिक उन्नति का साधन है.

शास्त्र, ज्योतिष और विज्ञान तीनों की दृष्टि से ‘काम’ कला एक गहरी और रहस्यमय शक्ति है. यह केवल भोग नहीं, बल्कि जीवन का सौंदर्य और ब्रह्मांडीय ऊर्जा है. 

संयम और मर्यादा के भीतर यह आनंद और मोक्ष का सेतु है, परंतु अनियंत्रित हो तो यह पतन और विनाश का कारण बन जाती है. यही ‘काम’ कला का शाश्वत संदेश है ‘काम’ को दबाओ मत, साधो और कला में बदलो.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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