Dilapidated schools were not demolished even in 10 days; children are studying in these schools…

खंडे के सहारे स्कूल की छत और बाहर बैठकर पढ़ाई करते बच्चे।
झालावाड़ के पीपलोदी गांव में 25 जुलाई को जर्जर स्कूल भवन की छत गिरने से 7 बच्चों की मौत हो गई थी। इस हादसे के बाद भी शिक्षा विभाग के अधिकारी कार्यशैली नहीं सुधार रहे हैं। सीकर जिले के 17 स्कूल भवनों को जर्जर मानते हुए विभाग ने 21 अगस्त को इन्हें तुरंत
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पीपलोदी हादसे के बाद विभाग ने 25 जुलाई से 6 अगस्त के बीच सभी सरकारी स्कूलों का निरीक्षण कराया था। इस रिपोर्ट के आधार पर ही 17 भवनों को जर्जर मानते हुए तुरंत गिराने का फैसला किया गया था। 17 में से 4 स्कूलों के पूरे भवन गिराए जाने थे, जबकि अन्य स्कूलों में 70 कमरे, एक पुस्तकालय कक्ष, पानी का टैंक, शौचालय और एक स्कूल में ए ब्लॉक के पूरे क्लास रूम को गिराने का फैसला किया गया था। भास्कर को इस बारे में शिकायत मिली, तो टीम ने स्कूल भवनों को चैक किया।
जर्जर स्कूल तोड़ने के आदेश सिर्फ कागजों में किए गए क्लास में बैठे बच्चों व शिक्षकों की नजरें किताबों में कम और दीवारों व छतों की दरारों पर ज्यादा टिकी रहती हैं। भवनों को गिराने के आदेश भी केवल कागजों में हुए है। विभाग ने ना तो अब तक इन भवनों को तोड़ने की कार्रवाई शुरू की है और ना ही इन्हें दूसरे भवनों में शिफ्ट किया गया है।
झालावाड़ की घटना के बाद किया था सर्वे झालावाड़ में हादसे के बाद जिले में विभाग ने स्कूल भवनों का सर्वे शुरू किया। एसडीओ, शिक्षा अधिकारियों ने 1671 स्कूलों का सर्वे किया था। शिक्षा विभाग की ओर से भी 1040 स्कूलों और 31 संस्कृत स्कूलों के भवनों की मरम्मत के प्रस्ताव बनाकर बजट के लिए भेजे जा रहे हैं।
“जमींदोज करने के आदेश होने के साथ ही पाबंद किया गया था कि इन भवनों में विद्यार्थियों को नहीं बैठाना है। इसके बावजूद अगर विद्यार्थी इन स्कूलों में बैठ रहे हैं, तो इसके लिए संस्था प्रधान जिम्मेदार हैं।” -मुकेश जैमन, मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी सीकर