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राबिया बसरी सच्ची मोहब्बत और इबादत की अनोखी दास्तान, जो आज भी है प्रेरणा!

Rabia Basris Life Story: हजरत राबिया बसरी को दुनिया से गए हुए बारह सौ साल हो चुके हैं लेकिन उनका नाम आज भी जिंदा है. राबिया बसरी न कोई शहजादी थी, न कोई मलका थी, न कोई खूबसूरत थी, न कोई खानदानी थी, बल्कि औरत होने के लिहाज से हर ऐब उसमें था.

राबिया बसरी सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि खुद के लिए उनके गहरे और इबादत की निशानी है. बचपन से ही उन्होंने दुनिया की लालच और मोह-माया से दूरी बनाई और अपना दिल सिर्फ अल्लाह की इबादत में लगाया. उनकी जिंदगी सादगी और सच्चे खुदा से प्यार की मिसाल है.

राबिया ने दिखाया कि इंसान का सबसे बड़ा इश्क इंसानों से नहीं, बल्कि खुदा से होता है. उनकी कहानी आज भी सबके लिए हौसला देती है कि कैसे रूह की पाकीजगी और अल्लाह की मोहब्बत से इंसान अपनी जिंदगी में असली खुशियां हासिल कर सकता है.

हजरत राबिया बसरी कौन थी?
हजरत राबिया बसरी रहमतुल्लाह अलैहा 8वीं सदी की एक मशहूर सूफी संत थीं. उनकी पैदाइश 714 से 718 ईस्वी के बीच इराक के बसरा शहर में हजरत इस्माइल के घर हुआ. वे अपने वालदेन की चौथी बेटी थीं, इसलिए उनका नाम राबिया बसरी रखा गया, जिसका मतलब “चौथी” होता है.

बचपन में ही उनके वालिद का इंतकाल हो गया. उस वक्त बसरा में एक बहुत बड़ा कहर पड़ा, और इसी दौरान राबिया अपने परिवार से बिछड़ गई और एक जालिम शख्स के हाथों गुलाम के तौर पर बेच दी गई.

गुलामी के दिनों में राबिया दिनभर अपने मालिक की खिदमत करतीं और रात को इबादत में मशगूल रहतीं. उनका इबादत करने का तरीका आम लोगों से बिल्कुल मुख्तलिफ था, वे इतनी लगन से नमाजें अदा करतीं कि कई रातें जाग कर गुजार देती थीं.

गुलामी से आजादी और इबादत की जिंदगी
एक रात का वाक्य है कि उनके मालिक ने देखा कि राबिया बसरी सजदे में हैं और पूरे कमरे में अंधेरा था, लेकिन एक तरफ से नूर की रोशनी फैल रही थी. यह मंजर देख कर उनके मालिक को यकीन हो गया कि राबिया कोई आम इंसान नहीं, बल्कि खुदा की खास बंदी हैं.

इसके फौरन बाद उन्होंने राबिया को आजाद कर दिया ताकि वे पूरी तरह से अल्लाह की इबादत में वक्त गुजर सकें. आजादी के बाद राबिया ने दुनिया की तमाम चीजों को छोड़ दिया और पूरी तरह याद-ए-इलाही में डूब गईं. वह एक वीरान जगह में रहतीं, जहां उनके पास सिर्फ एक टूटी चटाई, एक घड़ा और एक ईंट थी.

वह किसी से भी खैरात नहीं लेती थीं और हमेशा फांके की हालत में रहती थीं. उनकी सादगी, इबादत और अल्लाह के लिए मोहब्बत आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है.

सच्चे इश्क की मिसाल 
राबिया बसरी ने कभी दोजख के खौफ और जन्नत की लालच में इबादत नहीं की. उनका इश्क सिर्फ खुदा के लिए था. वो अक्सर कहा करती थीं, “मैं न तो दोजख से बचने के लिए और न ही जन्नत पाने के लिए इबादत करती हूं, बल्कि सिर्फ खुदा की मोहब्बत में जीती हूं.” उनकी ये सोच उस जमाने के मजहबी समाज में बिल्कुल अलग थी.

राबिया ने साबित किया कि सच्चा इश्क और इबादत खौफ या लालच पर नहीं, बल्कि सिर्फ बेगैरत मोहब्बत और खुदा की याद पर कायम होती है.

अल्लाह के लिए उनका खास इश्क
राबिया बसरी का इश्क सिर्फ अल्लाह तक ही महदूद था. उनका दिल दुनिया की मोह-माया से पूरी तरह खाली था. कहा जाता है कि उन्होंने कभी तकिए पर सिर नहीं रखा और रात-दिन अल्लाह की याद और इबादत में गुजार.

उनका यह इश्क सबके लिए मिसाल बन गया. राबिया की इबादत हमें यह सिखाती है कि इश्क खालिस और बेगाना हो, तो इंसान खुदा के सबसे करीब पहुंच जाता है. उनका यह जिंदगी का तरीका आज भी लोगों के लिए रहनुमा है.

आज भी रहनुमा का जरिया
राबिया बसरी की दास्तान आज भी लोगों के लिए रहनुमा का जरिया है. उनकी जिंदगी हमें ये समझती है कि दिल की सफाई, रूह की पाकीजगी और खुदा से सच्ची मोहब्बत इंसान को असली खुशी और सुकून दे सकती है.

उनके ख्यालात और अमल ये सिखाते हैं कि असली इबादत किसी मजहब, जात या दुनिया के ओहदे पर नहीं टिकी होती. राबिया बसरी की मिसाल हमें अपनी जिंदगी में सादा तरीका, बे-लालच मोहब्बत और रूह की सफाई अपनाने का सबक देती है.

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