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विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने के लिए ये कौन सी स्ट्रैटजी अपना रहा भारत, जानकार ट्रंप भी हो जाएंगे…

Gold Reserves In India: भारत के ऊपर भारी भरकम अमेरिकी टैरिफ के बाद नई दिल्ली ने अपने पुराने तरीकों में पूरी तरह से बदलाव कर लिया है. यानी आरबीआई ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सोने में निवेश की नई रणनीति अपनाई है. आरबीआई और अमेरिकी खजांची विभाग के डेटा से यह साफ होता है कि पिछले चार साल की तुलना में इस बार भारत ने जून में अमेरिकी ट्रेजरी बिलों में काफी कम निवेश किया है.

अमेरिकी ट्रेजरी बिलों में गिरावट
इकोनॉमिक टाइम्स के आंकड़ों के मुताबिक जून 2025 में भारत के पास 227 अरब डॉलर के अमेरिकी ट्रेजरी बिल थे. जबकि पिछले साल यही आंकड़ा 242 अरब डॉलर था.

दरअसल, दुनियाभर के कई देश अब अपनी पुरानी रणनीति में बदलाव कर रहे हैं. भारत ने इस साल जून महीने में जहां एक तरफ सोने का भंडार बढ़ाया है, वहीं अमेरिकी ट्रेजरी बिलों में निवेश घटा दिया है. हालांकि इसके बावजूद अमेरिकी ट्रेजरी बिलों में निवेश करने के मामले में भारत अब भी दुनिया के शीर्ष 20 देशों में शामिल है.

क्या है वजह?
वैश्विक तनाव और ट्रेड वॉर को इस बदलाव की बड़ी वजह माना जा रहा है. बैंक ऑफ बड़ौदा के चीफ इकोनॉमिस्ट मदन सबनवीस के मुताबिक, न सिर्फ भारत बल्कि चीन और ब्राज़ील समेत कई देश इस रणनीति पर काम कर रहे हैं. पिछले साल भर में अमेरिकी करेंसी में काफी उतार-चढ़ाव देखा गया है.

आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि 28 जून 2024 को भारत के पास 840.76 मीट्रिक टन सोना था. वहीं 27 जून 2025 तक विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 979.98 मीट्रिक टन हो गया था. यह साफ संकेत है कि भारत अपनी सुरक्षा और निवेश रणनीति में सोने को प्राथमिकता दे रहा है.

चीन का हाल
पिछले साल दिसंबर में अमेरिकी ट्रेजरी बिलों का स्टॉक सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया था. अगर चीन की बात करें तो जून 2025 में चीन के पास 756 अरब डॉलर के ट्रेजरी बिल थे, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह आंकड़ा 780 अरब डॉलर था.

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