left the kingdom | राजा भर्तृहरि परिवार और राजपाट छोड़कर आए थे अलवर: पत्नी प्रेम में नर बलि को…

राजा भर्तृहरि- एक ऐसे राजा, जिनके राज में बंदीगृह तो होता था लेकिन उसमें बंदी नहीं होते थे। वे न्यायप्रिय और नेक नारायण राजा रहे। वे अपनी प्रजा का हाल-चाल जानने रात के समय वेश बदलकर गांव में घूमते थे। नर बलि करने वाले कबीलों तक पहुंच जाते थे। वे संस्
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राजा भर्तृहरि अपनी पत्नी पिंगला से काफी प्रेम करते थे। राजा ने उन्हें एक बार अमर फल दिया था लेकिन इसके कारण ही उन्होंने उनका त्याग दे दिया था। अपने भाई सम्राट विक्रमादित्य के हाथों राज-पाठ सौंपकर जंगल में चले गए थे। तब गुरु गोरखनाथजी ने भर्तृहरि महाराज को दीक्षा दी थी। इसके बाद वे धर्म का प्रचार करते हुए तिजारा और अलवर आए।
आज भी भर्तृहरि को अलवर के लोकदेवता के रूप में जाना जाता हैं। छोटे-बड़े कार्यक्रमों में सबसे पहले भर्तृहरि बाबा की जय बोली जाती है। हर महीने शुक्लपक्ष की अष्टमी को भर्तृहरि की ज्योत देखी जाती है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को 31 अगस्त को लक्खी मेला लगेगा।
राजा भर्तृहरि कैसे अलवर आए और यहां के लोकदेवता के रूप में पहचाने जाने लगे, पढ़िए…
राजा भर्तृहरि उज्जैन के सम्राट थे। साथ ही विक्रमादित्य के बड़े भाई थे।
राजा भर्तृहरि ने नर बलि को करवाया था बंद
राजा भर्तृहरि उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई थे। विक्रमादित्य से पहले भर्तृहरि ही पूरा राज-पाठ संभालते थे। राजा भर्तृहरि अपनी पत्नी पिंगला से बहुत प्रेम करते थे। पिंगला के कहने पर ही नर बलि को बंद करवाया था। नर बली करने वाले कबीले के मुखिया को मार दिया था।
तब कबीले के मुखिया की पत्नी राजा के सामने आ पहुंची थी। ये जानकर पिंगला ने पुरुष वेष में जाकर मुखिया की पत्नी को मारा था। इस पर राजा भर्तृहरि महारानी पिंगला से काफी प्रभावित हुए। उनके लिए प्रेम और बढ़ गया। इतिहास के अनुसार भर्तृहरि की राज व्यवस्था 2150 से 2200 साल पहले की है।
नृतिकी ने राजा भर्तृहरि को अमर फल दिया था। भर्तृहरि फल पाकर आश्चर्य में पड़ गए कि ये फल इसके पास कैसे पहुंचा।
अमरफल की माया से भर्तृहरि को दीक्षा दी
गुरु गोरखनाथजी को उनके गुरु मछेंद्रनाथ ने आदेश दिया था कि राजा भर्तृहरि तुम्हारा गुरु भाई है। उसे योग की दीक्षा देकर लाओ। गुरु के आदेश पर गोरखनाथ ने भर्तृहरि को योग में लाने के लिए अपना वेश बदला। भर्तृहरि के राज में एक ब्राह्मण कन्या नृतिकी थी। उसके पिता तप करने गए थे। बेटी को एक सेठ के पास छोड़कर गए थे। तपस्या के बाद उन्हें सूर्य भगवान ने अमरफल देकर कहा था-
‘इसे खाकर आप अमर हो जाओगे कभी बूढे़ नहीं होंगे। आपको कोई नहीं देख पाएगा और आप सबको देख सकोगे।’
नृतिका के पिता ने फल नहीं खाया और अपने राजा भर्तृहरि को जाकर दे दिया। भर्तृहरि ने उस फल को अपनी पत्नी पिंगला को दे दिया। पिंगला ने अश्वशाला के प्रधान क्रूर सिंह (वेष बदले हुए गोरखनाथजी) को दिया था। क्रूर सिंह ने अमरफल नृतिका मोहनी को दे दिया।
नृतिकी ने सोचा कि मैं अमर होकर क्या करूंगी। उसने राजा भतृर्हरि को फल दे दिया। भर्तृहरि फल पाकर आश्चर्य में पड़ गए कि ये फल इसके पास कैसे पहुंचा। ये तो पिंगला को दिया था। उन्होंने अपनी पत्नी पिंगला को बुलाकर पूछा- ‘तुमने ये अमरफल किसे दिया था। ‘ तब पिंगला ने कहा मेरे से गलती हो गई।
भर्तृहरि बोले- अब मैं राजा नहीं, विक्रमादित्य को बना दो उसके बाद भर्तृहरि ने कहा- मैं शासन में अयोग्य सिद्ध हो गया। मेरे राज में बंदी खाने में एक बंदी नहीं रहा। आप महारानी होकर चरित्रहीन हो गई। अब तुझे नहीं देखना चाहता। अब मैं राजा भी नहीं हूं। महामंत्री को अपना मुकुट देते हुए कहा कि छोटे भाई विक्रमादित्य को राजा बना देना। इसके बाद राज-पाट छोड़कर जंगल की तरफ चल दिए।
जंगल में तपस्या के समय भर्तृहरि के सामने गोरखनाथ जी प्रकट हुए थे।
पिंगला पवित्र स्त्री बताया,महाराज भर्तृहरि को दी दीक्षा जंगल में तपस्या के समय एक दिन भर्तृहरि के सामने गोरखनाथ जी प्रकट होते हैं। उनको देखकर भर्तृहरि ने कहा- ‘मुझे दीक्षा दो।’ तब गोरखनाथ ने कहा- ‘पिंगला को माता कहकर भीक्षा लेकर आओ।’ गुरु की आज्ञा पर भर्तृहरि पर वापस अपने राज दरबार में गए। पिंगला को माता कहकर भिक्षा मांगी। भर्तृहरि को देखकर पिंगला ने उनके पैरों में गिरकर माफी मांगी। छुरी से खुद को काटने की कोशिश की।
तब गोरखनाथजी प्रकट हुए। उन्होंने कहा- पिंगला पवित्र स्त्री है। तब भर्तृहरि ने कहा कि ये कैसे हो सकता था। गोरखनाथजी ने कहा- यह सब मेरी माया थी। अमरफल देने के लिए मैं ही आकर्षक रूप लेकर क्रूर सिंह के वेष में आया था। इसके बाद पूरी कहानी का राज खुला। पिंगला भर्तृहरि को अमरफल देती है और गोरखनाथजी भर्तृहरि महाराज को दीक्षा देते हैं।
गोरखनाथजी ने अमरफल के बारे में महाराज भर्तृहरि को बताया। साथ ही उन्हें दीक्षा दी थी।
दीक्षा के बाद तिजारा-अलवर आए भर्तृहरि भर्तृहरि दीक्षा मिलने के बाद धर्म का प्रचार करते हुए तिजारा और अलवर आए। तिजारा में बहुत समय बिताया। उसके बाद भर्तृहरि धाम में आए और समाधि ली। ऐसा माना जाता है कि आज भी जंगल में पशुपालकों को कई बार ऐसे अद्भुत साधु के दर्शन हो जाते हैं, जिसे भर्तृहरि माना जाता है।
अलवर में 70 साल से भर्तृहरि नाटक जारी भर्तृहरि को अलवर के लोग अपने लोकदेवता के रूप में पूजते हैं। यहां 70 साल से भर्तृहरि नाटक किया जाता है। ये नाटक 15 दिन चलता है। इसमें 90 पात्र होते हैं। 5 से 10 राज्यों से कलाकार आते हैं, जो बिना पैसा लिए काम करते है। नाटक का मंचन रात 10 से 5 बजे तक चलता है। नाटक देखने आने वाले लोगों के लिए 30 रुपए से 300 रुपए का टिकट लगता है। इन पैसों से रामलीला का मंचन किया जाता है।
नोट : ये जानकारी अलवर में 70 साल से भर्तृहरि नाटक मंचन कर रही संस्था श्री राजर्षि अभय समाज के अध्यक्ष पं धर्मवीर शर्मा ने दी है। श्री राजर्षि अभय समाज की स्मारिका में भी इन तथ्यों का विवरण है।
स्केच: संदीप पाल