Tribunal should give decision in Patwari joining-salary case within one month | पटवारी…

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक पटवारी के केस में राजस्थान सिविल सर्विसेज अपीलेट ट्रिब्यूनल को निर्देश दिया है कि वह चार माह से पेंडिंग अपील का फैसला एक माह के अंदर सुनाए। जस्टिस डॉ. नूपुर भाटी की एकल पीठ ने गुरुवार को पटवारी गीता चौधरी की याचिका पर सुनवाई क
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जोधपुर के खेमे का कुआं निवासी गीता चौधरी की ओर से राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें बताया गया कि वह पटवारी है और गत 22 जनवरी 2025 को उनका ट्रांसफर पटवार मंडल झालामंड में हुआ तो उन्होंने उक्त पद पर ज्वाइन भी किया था। हालांकि, प्राइवेट प्रतिवादी द्वारा दायर अपील और राजस्थान सिविल सर्विसेज अपीलेट ट्रिब्यूनल के अंतरिम आदेश के कारण याचिकाकर्ता को न तो काम करने की अनुमति मिली है और न ही फरवरी 2025 से उन्हें सैलेरी मिली है।
24 अप्रैल से रिजर्व है जजमेंट
पटवारी गीता की ओर से कोर्ट में बताया गया कि इस मामले में सबसे चिंताजनक बात यह है कि ट्रिब्यूनल में सुनवाई और बहस पूरी होने के बाद 24 अप्रैल 2025 को जजमेंट रिजर्व किया गया था, लेकिन अब तक फैसला नहीं सुनाया गया है। इस कारण गीता चौधरी को अनावश्यक रूप से परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। वह स्वयं उपलब्ध होने तथा संबंधित पद पर ज्वाइन करने के बावजूद भी काम नहीं कर पा रही हैं, क्योंकि उसके ट्रांसफर ऑर्डर पर ट्रिब्यूनल का स्टे भी है।
रिजर्व जजमेंट देने में देरी अनुचित
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में अनिल राय बनाम बिहार राज्य, रवींद्र प्रताप शाही बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के मामलों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि जजमेंट की घोषणा को बहस पूरी होने के बाद अनुचित रूप से विलंबित नहीं किया जा सकता, क्योंकि ऐसी देरी न्यायिक प्रणाली में वादी और आम जनता के विश्वास को कमजोर करती है।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को दोहराते हुए कहा कि जहां जजमेंट रिजर्व करने के तीन माह बाद भी फैसला नहीं आता है, तो ऐसे मामले में कोई भी पक्ष हाईकोर्ट में जल्दी जजमेंट के लिए आवेदन दे सकती है। यदि जजमेंट छह माह तक नहीं आता है, तो कोई भी पक्ष चीफ जस्टिस के समक्ष केस वापस लेने और दूसरी बेंच को सौंपने के लिए आवेदन दे सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन होगा
न्यायमूर्ति डॉ. नूपुर भाटी ने कहा कि इन निर्देशों का पालन न करना सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन होगा और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित न्याय की गारंटी का भी हनन होगा। इसी आधार पर कोर्ट ने ट्रिब्यूनल को निर्देश दिया कि वह इस आदेश की प्रमाणित प्रति मिलने की तारीख से एक माह के अंदर अपील का फैसला सुनाए।