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मनुस्मृति पर RSS चीफ मोहन भागवत बोले- ‘देश को नई स्मृति की जरूरत’, आरक्षण पर कही ये बात

संघ के 100 साल पूरे होने पर दिल्ली में हो रही गोष्ठी के तीसरे दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने तमाम मुद्दों पर अपनी बात रखी. उन्होंने सामाजिक समरसता, जातिवाद और आरक्षण जैसे मुद्दों पर भी RSS का रुख स्पष्ट कर दिया. इस दौरान संघ प्रमुख ने लगभग हर सवाल पर विस्तार से जवाब दिया है.

सामाजिक समरसता और जातिवाद पर उन्होंने कहा कि जातिवाद रुकावट है. जाति और वर्ण कभी व्यवस्था थी, लेकिन आज नहीं है. आज वो अव्यवस्था बन गई है. असल में जातिवाद अभिमान की व्यवस्था है. उसके लिए कुछ व्यवस्था होनी चाहिए. मध्य प्रदेश के कई गांवों में मंदिर, कुआं, श्मशान एक नहीं थे, हमने प्रयास किया और कई जगह इसमें बदलाव आया, कुछ जगह रह गई हैं.

आरक्षण को लेकर क्या बोले मोहन भागवत ?

इसके बाद आरक्षण के सवाल पर उन्होंने कहा कि आरक्षण तभी समझ में आता है, जब मन में संवेदना हो. हमारे यहां भी इसको लेकर अलग-अलग मत थे, लेकिन बाद में एकमत से जातिगत आरक्षण का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हुआ. हजारों वर्ष तक हमारे लोगों ने ये झेला है और अपने लोगों को ऊपर लाने के लिए हम 200 साल कुछ झेले तो क्या दिक्कत है.

हिन्दू शास्त्रों में ऊंच-नीच, छुआछूत नहीं

उन्होंने आरक्षण के विषय पर आगे कहा कि संविधान सम्मत आरक्षण के पक्ष में संघ है. जब तक जो लोग अभी भी पिछड़े हुए हैं, उनको लगने लगे कि अब वो समर्थ हैं, तब तक रहना चाहिए. दुर्बल वर्गों के लिए आरक्षण का प्रयास करेंगे. समाज के लोग इसका नेतृत्व करें. 

हिंदू धर्माचार्यों ने कहा है कि हिन्दू शास्त्रों में ऊंच नीच छुआछूत नहीं है. अगर कहीं है तो हो सकता है उसको गलत तरीके से लिया हो. ऐसे ग्रंथों पर ध्यान भी ना दें. नई स्मृति की जरूरत देश को है, जिसने सभी वर्ग समाहित हो.

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