बलूचिस्तान के नाम पर ट्रंप को फंसा देंगे आसिम मुनीर! एक्सपर्ट बोले- PAK आर्मी चीफ अमेरिका को…

पाकिस्तान सेना प्रमुख आसिम मुनीर सीधे ट्रंप प्रशासन के संपर्क में हैं ताकि अमेरिका को रेयर अर्थ और तेल की खुदाई के लिए राजी किया जा सके. विश्लेषकों का कहना है कि यह सौदा स्थानीय आबादी को नाराज कर सकता है और वॉशिंगटन को अस्थिर घरेलू संघर्ष में उलझा सकता है.
टाइम्स ऑफ इजरायल की रिपोर्ट
टाइम्स ऑफ इजरायल में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप को यह विश्वास दिलाया गया है कि पाकिस्तान दुर्लभ खनिजों और तेल का स्रोत हो सकता है. लेकिन राष्ट्रपति की ब्रीफिंग से यह हटा दिया गया है कि बलूचिस्तान, वजीरिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा जैसे इलाकों में खनन करना बेहद मुश्किल या असंभव होगा. ये इलाके पाकिस्तान की सेना के लिए भी शत्रुतापूर्ण हैं और यहां चीन तक हार मान चुका है.
विशेषज्ञों की चेतावनी
भू-राजनीतिक विशेषज्ञ सर्जियो रेस्टेली का कहना है कि अगर ट्रंप इस रास्ते पर चलते रहे तो अमेरिका फिर उन्हीं इलाकों में लौट जाएगा जिन्हें जो बाइडन ने दोहा समझौते का हवाला देते हुए छोड़ दिया था. अन्य विश्लेषकों ने बताया कि बलूचिस्तान लंबे समय से जातीय और राजनीतिक अशांति का केंद्र रहा है. बाहरी ताकतों द्वारा शोषण की धारणा ने स्थिति को और बिगाड़ा है.
चीन की भूमिका और स्थानीय नाराजगी
चीन का प्रभाव CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर) के जरिए पहले से ही स्थानीय असंतोष को बढ़ा चुका है. अब अगर अमेरिका संसाधन निकालने में शामिल होता है, तो यह विरोध और बढ़ सकता है.
18वां संशोधन और स्थानीय हक
रेस्टेली के अनुसार, पाकिस्तान में 18वें संशोधन के 15 साल बाद भी प्रांतों को अपने संसाधनों पर वास्तविक अधिकार नहीं मिला है. खैबर पख्तूनख्वा में संगमरमर, ग्रेनाइट, रत्न, क्रोमाइट और कॉपर की भरमार है, फिर भी यह इलाका गरीब है क्योंकि मुनाफ़ा केंद्र के पास जाता है और स्थानीय ढांचे, शिक्षा या स्वास्थ्य पर खर्च नहीं होता. बलूचिस्तान का हाल सबसे खराब है. यहां कॉपर, सोना, कोयला और रेयर अर्थ जैसे संसाधनों की भरमार है, लेकिन यह पाकिस्तान का सबसे गरीब और पिछड़ा हुआ प्रांत है.
अमेरिकी दिलचस्पी और संभावित नतीजे
रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन ने दुर्लभ खनिजों को राष्ट्रीय सुरक्षा प्राथमिकता घोषित किया है और चीन पर निर्भरता घटाने के लिए पाकिस्तान पर नजर है. वहीं इस्लामाबाद विदेशी मुद्रा पाने के लिए उत्सुक है. लेकिन सौदे हमेशा केंद्र में तय होते हैं, सेना उन्हें लागू करती है और स्थानीय जनता पर थोप दिए जाते हैं.
इतिहास गवाह है कि रेको डिक और सैंडक जैसे प्रोजेक्ट अरबों डॉलर का वादा लेकर आए लेकिन स्थानीय लोगों को मिला बेघर होना, प्रदूषण और अशांति. अगर अब अमेरिका भी शामिल हुआ, तो यही मॉडल और कठोर हो जाएगा.
संभावित नतीजे- विकास नहीं, दमन
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे प्रोजेक्ट से विकास नहीं बल्कि दमन होगा-गांवों को घेराबंदी में बदल दिया जाएगा, असहमति को अपराध बनाया जाएगा, रॉयल्टी रोकी जाएगी और सेना को रणनीतिक सुरक्षा के नाम पर तैनात किया जाएगा. नतीजतन, अमेरिका विरोधी गुस्सा और तेज होगा, क्योंकि जमीनी स्तर पर लोगों को यह साझेदारी अमेरिकी मिलीभगत जैसी लगेगी.