MP OBC Reservation Meeting Update; Mohan Yadav Jitu Patwari | BJP Congress SP – MPPSC | MP में…

ओबीसी आरक्षण पर सर्वदलीय बैठक के बाद सीएम ने कहा- हम सभी इस मुद्दे पर एकमत हैं।
मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने पर सभी राजनीतिक दल एक मत हो गए हैं। हालांकि, अब श्रेय की लड़ाई शुरू हो गई है। कांग्रेस कह रही है कि हमने लड़ाई लड़ी, इसलिए सरकार सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन याचिका पर जल्द निर्णय पर बात कर
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मुख्यमंत्री ने ओबीसी आरक्षण पर गुरुवार को सीएम हाउस में सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। बैठक के बाद उन्होंने कहा- हम सभी एकमत हैं और सभी चाहते हैं कि ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन प्रकरण में निर्णय जल्द आए, ताकि सभी बच्चों को आयु सीमा खत्म होने के पहले लाभ मिल सके। उन्होंने कहा कि 14 प्रतिशत क्लियर है और 13 प्रतिशत होल्ड है।
सीएम बोले- 10 सितंबर से पहले बैठक कर लें वकील मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा- ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण को लेकर सभी ने विधानसभा में भी अपना बात रखी थी और समर्थन दिया था। इसी पर चर्चा के लिए आज बैठे थे। सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग प्रकरण चल रहे हैं। जिनमें कोर्ट 22 सितंबर से डे-टू-डे सुनवाई करेगा।
हमने सभी के एक फोरम पर आने और इसी में विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका में शामिल होकर इसे क्रियान्वित करने के समुचित प्रयास करने का संकल्प पारित किया है। यह भी तय किया है कि इस मामले से जुड़े सभी वकील 10 सितंबर से पहले सामूहिक रूप से बैठकर बात कर लें।
हम चाहते हैं कि 13 प्रतिशत होल्ड आरक्षण पर कोर्ट जल्दी से जल्दी निर्णय देता है तो ऐज लिमिट से बाहर हो रहे 13 प्रतिशत अभ्यर्थियों को आरक्षण का लाभ मिल जाए। कई विभागों में भर्ती की है लेकिन अब एक भी बच्चा बच न पाए, ये सभी दलों की भावना है।
मुख्यमंत्री ने कहा- MPPSC के वकीलों का पैनल बदला जाएगा। बता दें कि मध्यप्रदेश लोकसभा आयोग ने 13% होल्ड पदों वाले अभ्यर्थियों की याचिका को खारिज करने के लिए काउंटर एफिडेविट दिया था, जिसे MPPSC ने बुधवार को वापस ले लिया है।
बीजेपी: सांसद बोले- कानून पर स्टे नहीं बैठक में बीजेपी सांसद गणेश सिंह ने कहा- सिर्फ एक ही मामले में एडीपीओ वाली पोस्ट पर स्टे है। बाकी किसी मामले में कोई स्टे नहीं है। कानून पर भी स्टे नहीं है तो इसे लागू क्यों नहीं किया जा रहा?
इस पर मुख्य सचिव अनुराग जैन और बैठक से वर्चुअली जुड़े महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने कहा- एडीपीओ की पोस्ट के लिए जो विज्ञापन जारी हुआ था, उसमें रोस्टर को भी कोर्ट में चैलेंज किया गया था। रोस्टर पर भी स्टे है इसलिए हम 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण का क्रियान्वयन नहीं कर पा रहे हैं।
कांग्रेस: सरकार की कथनी और करनी में अंतर सर्वदलीय बैठक के बाद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव, सांसद अशोक सिंह, कमलेश्वर पटेल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि आज की बैठक खोदा पहाड़ निकली चुहिया जैसी थी।
सिंघार बोले- कांग्रेस और भाजपा के वकील साथ में बैठने तैयार हैं। सरकार की कथनी और करनी में अंतर है। कांग्रेस के बनाए घर में नारियल फोड़कर श्रेय लेना चाहते हैं। किसी के हित की बात हो तो राजनीति नहीं करनी चाहिए। जल्द से जल्द आरक्षण का रास्ता साफ होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि बैठक में मुख्यमंत्री जी ने कई पेचीदगी बताईं। उसे लेकर हमारे नेताओं ने सुझाव दिए। मामला विधानसभा में लाकर लोकसभा में प्रस्ताव भेजा जाए।
आरक्षण दिलाने की जिम्मेदारी सरकार की कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने बैठक के बाद कहा- 27 प्रतिशत आरक्षण सालों से पेंडिंग था। 2019 में हम सरकार में आए और उसे लागू किया। 2003 से 2025 के बीच भाजपा के 4 मुख्यमंत्री बने। किसी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया क्योंकि नीयत में खोट था।
बैठक में फैसला हुआ है कि पिछड़ों का हक 27 प्रतिशत आरक्षण उन्हें दिलाएं। हम सरकार से कहना चाहते हैं कि नीयत ठीक है तो पिछड़ों का आरक्षण दिलाने की जिम्मेदारी आपकी है।
पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने कहा- सरकार ने जो पाप किया है, उसे छुपाने की कोशिश की है। भाजपा, शिवराज जी और मोहन यादव के कारण ही यह अभी तक रुका है। हमने कहा था कि विधानसभा नहीं चलने देंगे। एमपीपीएससी के माध्यम से कोर्ट में आवेदन देने की बात पर उन्होंने माफी मांगी।
वहीं, राज्यसभा सांसद अशोक सिंह बोले- सहमति इस पर बनी है कि कोर्ट में सभी मिलकर अपना पक्ष रखें। कांग्रेस की मांग यह भी रही कि इन सालों में आरक्षण का लाभ न मिलने से करीब 1 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। इसके लिए जिम्मेदारों पर कार्रवाई की जाए। इस बैठक के बाद तय हुआ है कि पिछड़े वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण कैसे मिले, इस पर काम करें।
सरकार नाक रगड़कर माफी मांगे कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने बैठक से पहले मीडिया से कहा कि जिन लोगों ने गड़बड़ की, क्या उनको सजा मिलेगी? पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, बीजेपी सरकार ने कांग्रेस द्वारा दिए आरक्षण को क्यों रोका? इसके लिए सरकार नाक रगड़कर माफी मांगे।
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा कि सरकार सरदारी बैठक की बात कर रही है। मैं समझता हूं कि गणेश चतुर्थी पर सरकार और डॉ. मोहन यादव को सद्बुद्धि आई। 6 साल पहले कमलनाथ जी की सरकार में आदेश हुआ था, अध्यादेश आया था।
इस तरह से पुराने घर में नारियल फोड़कर 27 प्रतिशत आरक्षण का गृह प्रवेश कर रहे हैं। सर्वदलीय बैठक की आवश्यकता तब पड़ती है जब विवाद हो, आपस में समन्वय न हो। कांग्रेस तो पहले से ही तैयार है। कांग्रेस ही अध्यादेश और कानून लेकर आई थी। अब बैठक में देखते हैं क्या होता है।
सरकार अपने ही बुने जाल में फंस रही बैठक से पहले पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने X पर लिखा- ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर प्रदेश सरकार बार-बार अपने ही बुने जाल में फंस रही है। सर्वदलीय बैठक बुलाना भी जनता को गुमराह करने का षड्यंत्र है। जब कांग्रेस सरकार पहले ही 27% आरक्षण लागू कर चुकी है, तो सर्वदलीय बैठक की जरूरत ही क्यों? यह साफ है कि सरकार ओबीसी समाज को बरगलाने और भ्रमित करने की कोशिश कर रही है।
आप: आरक्षण का रास्ता भी निकलना चाहिए आम आदमी पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष रानी अग्रवाल ने कहा- 27 प्रतिशत आरक्षण तो प्रदेश में लागू हो गया था। यह ओबीसी का हक है और उसे मिलना ही चाहिए। केंद्र-राज्य में बीजेपी सरकार है। चाहे तो 27 प्रतिशत आरक्षण हो सकता है लेकिन वह लटकाए हुए हैं।
सपा: मुख्यमंत्री कह रहे कि डंके की चोट पर देंगे, तो देते क्यों नहीं? समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मनोज यादव ने कहा- पिछड़े वर्ग को आबादी के हिसाब से 52 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए और सरकार 14 प्रतिशत दे रही है। 13 प्रतिशत होल्ड आरक्षण तत्काल प्रभाव से लागू करें। जिला और हाईकोर्ट में सरकारी वकीलों की नियुक्ति में पिछड़े वर्ग को आरक्षण मिलना चाहिए। जिलेवार रोस्टर लागू हो। मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि डंके की चोट पर देंगे, तो देते क्यों नहीं?
ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27% करने की पूरी कवायद समझिए
साल 2019 में तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% करने का निर्णय लिया था। सरकार का तर्क था कि मध्यप्रदेश की आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी करीब 48% है, इसलिए 27% आरक्षण न्यायसंगत है। कमलनाथ सरकार विधानसभा में 27% ओबीसी आरक्षण को लेकर अध्यादेश विधानसभा में लेकर आई।
हाईकोर्ट में इसको लेकर याचिकाएं दाखिल हुईं। इन याचिकाओं में तर्क था कि आरक्षण की कुल सीमा 50% से अधिक हो जाएगी, जो सुप्रीम कोर्ट की इंदिरा साहनी (मंडल आयोग केस, 1992) में तय की गई सीमा का उल्लंघन है। मई 2020 में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया में 27% ओबीसी आरक्षण लागू करने पर स्टे आदेश दे दिया। इससे एमपीपीएससी और शिक्षकों की भर्ती समेत कई नियुक्तियां अटक गईं।
MPPSC ने सुप्रीम कोर्ट में दिया नया आवेदन आज होने वाली बैठक के एक दिन पहले बुधवार को मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) ने सुप्रीम कोर्ट में एक नया आवेदन दिया। आवेदन में MPPSC ने ओबीसी वर्ग के चयनित अभ्यर्थियों की पिटीशन को खारिज करने लगाए गए काउंटर एफिडेविट को सुप्रीम कोर्ट से वापस लेने का अनुरोध किया है।
27% ओबीसी आरक्षण पर 6 साल से लगी रोक 2019 से लेकर 2025 तक 27% ओबीसी आरक्षण का लाभ पिछड़े वर्ग को नहीं मिल पाया है। लाखों अभ्यर्थी पहले से चयनित हो चुके हैं। सिर्फ उन्हें नियुक्ति पत्र यह कहकर नहीं दिए जा रहे हैं कि इनकी पिटीशन सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग हैं। जबकि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट कई बार यह कह चुके हैं कि कोर्ट की ओर से कोई रोक नहीं है। आप करना चाहें तो कर सकते हैं।
MPPSC की ओर से एडवोकेट अनुराधा मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट में यह अर्जी दाखिल की है, जिसमें कहा गया है कि दाखिल किए गए हलफनामे में औपचारिक पैराग्राफ से जुड़ी कुछ त्रुटियां रह गई थीं। इन त्रुटियों को सुधारकर संशोधित एफिडेविट दाखिल करने की अनुमति मांगी गई है।
क्या कहा गया है एमपीपीएससी की अर्जी में?
- हलफनामे में अनजाने में त्रुटियां आ गई हैं।
- इन त्रुटियों के लिए निर्विवाद रूप से बिना शर्त माफी मांगी गई है।
- अदालत से अनुरोध किया गया है कि पुराने एफिडेविट को रिकॉर्ड से हटाकर नया एफिडेविट (Annexure A1) को स्वीकार किया जाए।