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IIT has developed a technology to read text in 13 languages | IIT जोधपुर ने बनाई 13 भाषाएं पढ़ने…

भारत में अलग-अलग भाषाओं के साथ तकनीकी चुनौतियों से निपटने के लिए आईआईटी जोधपुर की रिसर्च टीम ने स्वदेशी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक विकसित की है। कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर आनंद मिश्रा के नेतृत्व में विजन, लैंग्वेज एंड लर्निंग

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अंग्रेजी भाषा की तकनीक में चैट जीपीटी जैसे लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स के माध्यम से तेजी से प्रगति हुई है, वहीं भारतीय भाषाओं की सेवा में काफी कमी रही है। आईआईटी जोधपुर की इस पहल से इस अंतर को भरने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है।

प्रोफेसर मिश्रा के साथ प्रोजेक्ट भाषिनी पर काम करने वाली रिसर्च टीम।

प्रोजेक्ट ‘भाषिनी’ के तहत बड़ी उपलब्धि

केंद्र सरकार की फ्लैगशिप परियोजना ‘भाषिनी’ के तहत, रिसर्च टीम ने लेटेस्ट मॉडल विकसित किए हैं। जो तस्वीरों (Image format) में दिखाई देने वाले भारतीय भाषा के टेक्स्ट को पढ़ और अनुवाद कर सकते हैं। अंग्रेजी पर केंद्रित कॉमर्शियल तकनीक के उलट, आईआईटी जोधपुर ने पहले से ही ओपन-सोर्स एपीआई तैनात किए हैं। जो 13 प्रमुख भारतीय भाषाओं में सीन टेक्स्ट पढ़ने में समर्थ है।

इन भाषाओं में हिंदी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, बंगाली, असमिया, ओड़िया, मणिपुरी, मलयालम, कन्नड़, तमिल, तेलुगु और उर्दू शामिल हैं। प्रोफेसर आनंद मिश्रा के अनुसार- हमने इंडिक फोटो ओसीआर डेवलप किया है, जो कि एक ओपन सोर्स मॉडल है। पूरी तरह से स्वदेशी मॉडल है। यह साइन बोर्ड और स्ट्रीट साइन में इंडियन लैंग्वेज को रीड करने और ट्रांसलेट करने के लिए बनाए गए हैं।

मल्टी लिंगुअल नेवीगेशन और रियल-टाइम ट्रांसलेशन भी

ये टूल्स कई भाषाओं में रास्ता खोजने, सड़क के बोर्डों पर लिखी जानकारी का तुरंत अनुवाद करने और करोड़ों भारतीयों के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल आसान बनाने में मदद कर सकती है। इस तकनीक से हम समाज में भाषा की वजह से होने वाली दिक्कतों को कम कर सकते हैं। प्रो. मिश्रा के अनुसार –

हमारा मकसद ऐसी मजबूत और भारतीय तकनीक बनाना है, जो सभी लोग मुफ्त में इस्तेमाल कर सकें। भारतीय भाषाओं को पहचानने, हमारी पुरानी संस्कृति को बचाने और वीडियो समझने की तकनीक पर काम करके, हम चाहते हैं कि भारत दुनिया की एआई तकनीक में आगे रहे और साथ ही अपनी सामाजिक और सांस्कृतिक जरूरतों के हिसाब से नए समाधान भी दे।

प्राचीन ग्रंथों का एआई के माध्यम से संरक्षण

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) और TIH-iHUB दृष्टि के सहयोग से संस्कृत, पाली, तेलुगु और अन्य भाषाओं में लिखी गई प्राचीन पांडुलिपियों को डिजिटल रूप से संरक्षित और पुर्नस्थापित कर रहा है। डीप लर्निंग-आधारित कंप्यूटर विजन तकनीकों का उपयोग करके, टीम क्षतिग्रस्त पांडुलिपियों को साफ, बेहतर और पुर्नस्थापित कर रही है।

प्रो. मिश्रा ने इस बारे में बताया कि “हिस्टोरिकल मैनुस्क्रिप्ट्स को जनरेटिव एआई के माध्यम से रिस्टोर कर रहे हैं। जो हिस्टोरिकल मैनुस्क्रिप्ट्स, हमारे एंसिएंट हिस्ट्री से लिए हुए हैं। इसमें बहुत सारा ज्ञान छुपा है। उन्हें डिजिटाइज करने की जरूरत भी है।

टीम इन अमूल्य ग्रंथों को डिजिटाइज करने के लिए ओसीआर सिस्टम भी विकसित कर रहा है। यह कोशिश भारत की सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करने के साथ-साथ नए अनुवाद, तुलनात्मक अध्ययन और विषयों में ज्ञान की पुनरावृत्ति को सक्षम बनाएगा।

वीडियो एआई के माध्यम से स्किल्स और सेफ्टी मॉनिटरिंग

आईआईटी की टीम रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल होने वाली वीडियो तकनीक को और बेहतर बनाने पर काम कर रही है। एक्सेंचर लैब्स के साथ मिलकर, प्रोफेसर मिश्रा के एक पीएचडी छात्र ने एक नई तकनीक (फाइन-ग्रेड वीडियो अंडरस्टैंडिंग) बनाई है, जो वीडियो में छुपी हुई चीजों को ढूंढने और इसे ट्रैक करने में सक्षम है।

यह तकनीक काम की जगह पर लोगों के हुनर की जांच, सिक्योरिटी मॉनिटरिंग और फैक्ट्री में मैन्यूफैक्चरिंग, अस्पताल, स्कूल जैसी जगहों पर वीडियो की मदद से काम को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है।

टीम के सामूहिक प्रयासों से इजाद हुई पूर्णतया स्वदेशी तकनीक। (इमेज सोर्स-AI)

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