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‘धर्म सब जगह जाना चाहिए, लेकिन…’, संघ प्रमुख मोहन भागवत का धर्मांतरण को लेकर बड़ा बयान

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ के बारे में बहुत सारी चर्चाएं चलती हैं. ये ध्यान में आया कि संघ के बारे में जानकारी कम है, जो जानकारी है, वह ऑथेंटिक कम है. इसलिए अपनी तरफ से संघ की सत्य और सही जानकारी देना चाहिए. संघ पर जो भी चर्चा हो, वह परसेप्शन पर नहीं बल्कि फैक्ट्स पर हो. आरएसएस प्रमुख ने धर्मांतरण को लेकर कहा कि धर्म सब जगह जाना चाहिए उसके लिए कन्वर्शन की जरूरत नहीं है.

आरएसएस के 100 साल पूरे होने पर व्याख्यान माला के दूसरे दिन सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि शुद्ध सात्विक प्रेम, यही संघ है. साल 1925 के विजयादशमी के बाद डॉक्टर साहब ने घोषणा कि आज यह संघ हम प्रारंभ करेंगे. तो उन्होंने कहा कि यह संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन है. पहली बात ये है कि जिनको हम हिंदू समाज कहते हैं और जिसे हिंदू नाम लगाना है उसको देश के प्रति जिम्मेदार रहना होगा.

जितना संघ का विरोध हुआ, उतना किसी और का नहीं: मोहन भागवत

उन्होंने कहा कि किसी स्वयंसेवी संगठन का इतना कड़ा और कटु विरोध नहीं हुआ, जितना संघ का हुआ. अगर संघ के मूल आधार की बात करें तो शुद्ध सात्त्विक प्रेम ही संघ है. संघ के प्रथम प्रचारकों में से एक दादाराव परमार्थ जी ने एक पंक्ति में आरएसएस को समझाया था- ‘आरएसएस हिंदू राष्ट्र के जीवन मिशन का एक विकास है. संघ में कोई प्रोत्साहन नहीं है, बल्कि संघ के स्वयंसेवक अपना काम इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें अपने काम में आनंद आता है. उन्हें इस बात से प्रेरणा मिलती है कि उनका काम विश्व कल्याण के लिए समर्पित है.’

दिखते सब अलग-अलग हैं, लेकिन सब एक हैं: मोहन भागवत

मोहन भागवत ने कहा, ‘हमारे हिंदुस्तान का प्रयोजन विश्व कल्याण है. दिखते सब अलग-अलग है लेकिन सब एक हैं. दुनिया अपनेपन से चलती है सौदे पर नहीं चल सकती. धर्म की रक्षा करने से सृष्टि ठीक चलती है. दूसरे धर्म की बुराई करना धर्म नहीं है, जहां दुख पैदा होता है वहां धर्म नहीं है. धर्म एक बैलेंस है, मध्यम मार्ग है. दुनिया में अशांति है और कट्टरता बढ़ गई है. लेकिन अब विरोध बहुत कम हो गया. स्वयंसेवक सोचता है अनुकूलता मिली है तो सुविधाभोगी नहीं होना है. संघ में इनसेंटिव नहीं है, डिजइसेंटिव बहुत है. मुझसे कोई पूछता है संघ में आने से क्या मिलेगा तो मैं कहता हूं कुछ नहीं मिलेगा और जो है वो भी चला जाएगा.’

बढ़ रही अमीर और गरीब के बीच दूरी: मोहन भागवत

आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘दुनिया में अशांति है कलह है, कट्टरपन बढ़ गया है. वोकिज्म जैसे शब्द दुनिया के लिए बड़ा संकट है. धर्म यानी रिलीजन नहीं. धर्म में विविधता स्वीकार्य है. आज की दुनिया संबंधों को तरस रही है, लेकिन सबसे जहां संबंध माने जाते हैं वो देश भारत है.” उन्होंने कहा कि आर्थिक उन्नति के कारण गरीब और अमीरों में दूरी बढ़ रही है. इसको दूर करने के लिए चर्चाएं होती है लेकिन परिणाम बहुत नहीं आते. धर्म सब जगह जाना चाहिए उसके लिए कन्वर्शन की जरूरत नहीं.’

समाज के सभी स्तर के लोगों को जोड़ना होगा: मोहन भागवत

आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘भारत ने सदा अपने नुकसान की अनदेखी करते हुए जिन्होंने नुकसान किया उनको भी मदद की है. आज विश्व हमारी साख को मानता है. समाज हमारी बात मानता है. अब आगे का पड़ाव क्या है जो हम संघ में कर रहे हैं वो सारे समाज में हो और वो है चरित्र निर्माण, देशभक्ति को जगाना. भारत में जितना बुरा दिखता है उससे 40 गुना ज्यादा समाज में अच्छा है.’

समाज के हर कोने तक पहुंचना होगा: भागवत

उन्होंने कहा, ‘हमको समाज के कोने-कोने तक पहुंचना पड़ेगा, कोई व्यक्ति रहे नहीं ऐसा कार्य का विस्तार हमको करना पड़ेगा. समाज के सभी वर्गों में और सभी स्तरों में जाना पड़ेगा. गरीब से नीचे से लेकर अमीर के ऊपर तक संघ को पहुंचना पड़ेगा. ये जल्दी से जल्दी करना पड़ेगा. जिससे सभी लोग मिलकर समाज परिवर्तन के काम में लग जाएं.’

हमारे बीच की दूरियां पाटने के प्रयास के जरूरत: RSS प्रमुख

उन्होंने कहा, ‘बाहर से भी विचारधारा आई आक्रमण के कारण आई, यही के लोगों ने उनको स्वीकार किया. लेकिन हमारा मत तो सबको स्वीकार करने का है. जो दूरियां बनी है उसको पाटने के लिए दोनों तरफ से प्रयास की जरूरत है. ये सद्भावना और सकारात्मकता के लिए अत्यंत आवश्यक है. ये देश को राष्ट्रीय स्तर पर करना पड़ेगा. सबसे पहले पड़ोसी देशों के साथ हमको समाज जोड़ने का काम करना होगा. पड़ोसी देश अधिकांश भारत देश ही थे. लोग वहीं हैं. जो विरासत मिली है इसमें सबका विकास हो. पंथ संप्रदाय अलग होंगे रहने दीजिए, लेकिन समाज को जोड़ना होगा.’

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