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High Court: A handicapped person is driving a car, why doesn’t he become a doctor? | दिव्यांग…

भीलवाड़ा निवासी मयंक न सिर्फ रोजमर्रा के काम आसानी से करता है, बल्कि स्कूटर और कार भी चलाता है।

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक ऐसे दिव्यांग छात्र मयंक बड़गुर्जर को NEET-UG 2025 की द्वितीय राउंड काउंसलिंग में अस्थायी रूप से भाग लेने की अनुमति दी है, जिसे मेडिकल बोर्ड द्वारा जारी अयोग्यता प्रमाण-पत्र के आधार पर काउंसलिंग में शामिल होने से रोक दिया गया थ

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कि जो युवा दोपहिया व चार पहिया गाड़ी चला सकता है, वो डॉक्टर क्यों नहीं बन सकता है।

इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार व अन्य पक्षों से नीट उत्तीर्ण करने के बाद से लेकर एमबीबीएस के लिए प्रवेश तक की पूरी प्रक्रिया, विकलांगता सहित अन्य मापदंड और इनसे एसेसमेंट करने के तरीके इत्यादि की विस्तृत रिपोर्ट भी पेश करने के निर्देश दिए हैं।

भीलवाड़ा निवासी 19 वर्षीय मयंक बड़गुर्जर, जो 80% लोकोमोटर डिसेबिलिटी से ग्रसित है, को जयपुर की SMS मेडिकल कॉलेज के मेडिकल बोर्ड द्वारा 25 जुलाई 2025 को जारी प्रमाण-पत्र में MBBS कोर्स के लिए अयोग्य घोषित किया गया था। बोर्ड का कहना था कि वह “दोनों ऊपरी अंगों का समन्वित गतिविधि नहीं कर सकता, क्योंकि दाएं अंग में फोर आर्म की पूर्ण अनुपस्थिति है और बाएं हाथ में अंगुलियों की अनुपस्थिति है।”

मेडिकल बोर्ड की टिप्पणी पर हाईकोर्ट की राय

हाईकोर्ट ने मेडिकल बोर्ड के फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि छात्र को काउंसलिंग में भाग लेने से रोकना उचित नहीं है। कोर्ट ने विशेष रूप से इस बात पर ध्यान दिया कि मयंक के पास चार पहिया और दो पहिया वाहन चलाने की योग्यता है और वह दैनिक कार्य सामान्य रूप से करने में सक्षम है।

छात्र के वकील मनीष पटेल ने कोर्ट में तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को पहले काउंसलिंग के लिए योग्य घोषित किया गया था, लेकिन बाद में फंक्शनल एबिलिटी की कमी के आधार पर अयोग्य कर दिया गया। पटेल ने एक अतिरिक्त हलफनामा भी दाखिल किया, जिसमें बताया गया कि वह दैनिक कार्य सामान्य रूप से कर सकता है।

काउंसलिंग का समय और कोर्ट का निर्देश

एडवोकेट पटेल ने कोर्ट को बताया कि NEET-UG 2025 की अनुसूची के अनुसार ऑल इंडिया कोटा/डीम्ड/केंद्रीय विश्वविद्यालय की दूसरी राउंड काउंसलिंग 21 अगस्त से शुरू हुई थी और 29 अगस्त को समाप्त होने वाली है। उन्होंने कहा कि यदि प्रतिवादियों को जवाब दाखिल करने के लिए और समय दिया गया तो छात्र दूसरी राउंड की काउंसलिंग से वंचित रह जाएगा।

हाईकोर्ट ने इस स्थिति को देखते हुए अंतरिम उपाय के तौर पर प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे छात्र को दूसरी राउंड की काउंसलिंग में भाग लेने की अनुमति दें। हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह भागीदारी छात्र के पक्ष में कोई अधिकार नहीं बनाएगी और कोर्ट की अनुमति के बिना उसे कोर्स में दाखिला नहीं दिया जाएगा।

मेडिकल बोर्ड ने नई गाइडलाइन्स का ध्यान नहीं रखा

इस मामले में मयंक की ओर से बताया गया कि उसे 21 दिसंबर 2022 को विकलांगता प्रमाण-पत्र जारी किया गया था जिसमें 80% लोकोमोटर डिसेबिलिटी दर्शाई गई थी। उसने NEET-UG 2024 की परीक्षा में भी सफलता पाई थी लेकिन मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के कारण कोर्स नहीं कर सका। 2025 में फिर से NEET की परीक्षा देकर SC-PwD कैटेगरी में अच्छे अंक हासिल किए। याचिका में 12 मार्च 2024 को केंद्र सरकार द्वारा जारी नए दिशा-निर्देशों का भी उल्लेख है। छात्र का कहना है कि SMS मेडिकल कॉलेज के बोर्ड ने 25 जुलाई को प्रमाण-पत्र जारी करते समय इन नए दिशा-निर्देशों को ध्यान में नहीं रखा। नए नियमों के अनुसार विकलांगता की मात्रा निर्धारण के साथ-साथ कार्यात्मक क्षमता का आकलन भी जरूरी है।

काउंसलिंग समय सीमा देख अस्थायी राहत

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अस्थायी भागीदारी की यह अनुमति केवल काउंसलिंग की समयसीमा को देखते हुए दी गई है और इसका मतलब यह नहीं है कि छात्र को निश्चित रूप से दाखिला मिल जाएगा। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 8 सितंबर को निर्धारित की है। इस दौरान प्रतिवादी पक्ष को अपना जवाब दाखिल करना होगा। छात्र की ओर से वकील मनीष पटेल और प्रतिवादियों की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता एनएस राजपुरोहित, सिद्धार्थ टाटिया और बीपी बोहरा पेश हुए।

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