‘संघ किसी पर दबाव नहीं डालता’, सरकार पर प्रेशर डालने का सवाल उठाने वालों को मोहन भागवत का जवाब

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने के मौके पर सरसंघचालक मोहन भागवत ने संघ की ओर से आयोजित किए गए एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि संघ समाज को जोड़ने का काम करता है, लेकिन किसी संगठन के कामकाज में सीधा हस्तक्षेप नहीं करता. मौजूदा परिदृश्य में यह बयान इस वजह से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि कई मौकों पर विपक्ष सरकार पर इसी बात को लेकर हमलावर रहता है कि सरकार संघ के इशारे पर काम करती है.
मोहन भागवत ने साफ किया कि संघ का काम सरकार में दखल देना नहीं है. उन्होंने कहा “स्वयंसेवक अनेक क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. उनका काम उनका है, उसका श्रेय उन्हें है, संघ को नहीं. लेकिन अगर कहीं कमी रह जाती है तो संघ को बदनामी झेलनी पड़ती है. संघ स्वयंसेवकों को नियंत्रित नहीं करता न डायरेक्टली, न रीमोटली. जो काम करने वाला है, वह स्वतंत्र है. हमारा दबाव उन पर नहीं है. वे जो समझते हैं, अनुभव करते हैं उसी हिसाब से काम करते हैं.” भागवत ने कहा कि संघ किसी संगठन को कंट्रोल करने का गुट नहीं है बल्कि पूरे भारत को संगठित करने का प्रयास है.
जिसे हिंदू नाम लगाना है, उसे देश के प्रति रहना होगा जिम्मेदार- भागवत
कार्यक्रम के दौरान मोहन भागवत ने हिंदू शब्द को लेकर भी अपने विचार रखें. मोहन भागवत ने कहा कि हिंदू शब्द बाहर से आया, लेकिन यह हमारी परंपरा को व्यक्त करता है. उन्होंने कहा कि भारत के सभी धर्मों और मतों को मानने वालों की परंपरा स्वीकार करने और सम्मान देने की रही है. उन्होंने कहा, “जिसको हिंदू नाम लगाना है उसको इस देश के प्रति जिम्मेदार रहना पड़ेगा. हमारे देश में कन्वर्टेड मुसलमान हैं, सब इसी मिट्टी के बने हैं. मिलजुलकर रहो, फालतू झगड़ा क्यों करते हो.”
हिंदू पहचान सभी को साथ लेकर चलने वाली सोच है- भागवत
भागवत ने कहा, “जब हम हिंदू राष्ट्र कहते हैं तो इसका मतलब किसी को बाहर करना नहीं है. हिंदू पहचान केवल हिंदुओं तक सीमित नहीं बल्कि सभी को साथ लेकर चलने वाली सोच है. भारत की पहचान समन्वय और एकता में विविधता से है, न कि संघर्ष से. 40,000 साल से भारतवर्ष का डीएनए एक है और अखंड भारत की यही पहचान है.”
उन्होंने कहा, “हिंदू बनाम ऑल जैसी सोच सही नहीं है, पहले खुद को हिंदू कहने वाले लोगों को अपना जीवन अच्छा बनाना चाहिए. जब वे संगठित होंगे, तो जो लोग हिंदू नहीं कहते, वे भी साथ आएंगे. हम यह नहीं मानते कि एक होने के लिए सबका एक जैसा होना जरूरी है.”
अलग-अलग विचारों की एक मुद्दे पर सहमति बनना ही प्रगति है- भागवत
भागवत ने लोकतांत्रिक परंपरा की ओर इशारा करते हुए कहा, “142 करोड़ की आबादी में मत अलग होना कोई अपराध नहीं है. लेकिन जब अलग-अलग विचारों को सुनकर किसी मुद्दे पर सहमति बनती है तो वही प्रगति है.” भागवत ने यह भी साफ किया कि केवल संघ के कारण देश बचा, यह कहना सही नहीं है. देश का दायित्व पूरे समाज का है सरकार, नेता, पार्टी और जनता सबको अपना काम करना होगा. संघ केवल समाज को संगठित करने का प्रयास करता है.”
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