‘मुगल-ए-आज़म’ के इस गाने को बाथरूम में क्यों किया गया था रिकॉर्ड? दिलचस्प है किस्सा

1960 में भारतीय सिनेमा ने मुगल-ए-आज़म के साथ इतिहास रच दिया था. इस फिल्म ने न केवल बॉक्स ऑफिस पर कमाई के रिकॉर्ड तोड़े थे बल्कि बॉलीवुड का सबसे आइकॉनिक और महंगा गाना भी पेश किया था. गाना प्यार किया तो डरना क्या 65 साल बाद भी अमर है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस ब्लॉकबस्टर गाने को बाथरूम में सिंगर ने गाया था. इससे जुडा दिलचस्प किस्सा यहां जानते हैं.
प्यार किया तो डरना क्या गाना क्यों बाथरूम में गाया गया था?
मधुबाला और दिलीप कुमार स्टारर मुगल-ए-आज़म 5 अगस्त, 1960 को रिलीज़ हुई थी और ये एक ऐसी फिल्म बन गई जिसने भव्यता के नए बेंचमार्च सेट कर दिए थे.
- के. आसिफ द्वारा निर्देशित, मुगल-ए-आज़म में पृथ्वीराज कपूर और दुर्गा खोटे जैसे दिग्गज कलाकारों ने भी अभिनय किया था, जिनकी दमदार एक्टिंग ने दर्शकों का दिल छू लिया था.
- वहीं नौशाद द्वारा कंपोज म्यूजिक इस फ़िल्म की आत्मा बन गया था. इन सबके बीच, “प्यार किया तो डरना क्या” एक मास्टरपीस के रूप में उभर कर सामने आया.
- शकील बदायुनी द्वारा लिखित और लता मंगेशकर द्वारा गाए गए इस गीत ने विद्रोह और प्रेम के सार को इस तरह से जाहिर किया कि यह भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमर हो गया.
- लेकिन इस गाने की रिकॉर्डिंग अपने समय के हिसाब से अनोखी थी. दरअसल उस समय इको इफेक्ट्स का इस्तेमाल कम ही होता था.
- इसलिए लता मंगेशकर ने अपनी आवाज़ में मनचाही गहराई लाने के लिए इसे बाथरूम में रिकॉर्ड किया था. फाइनल वर्जन को मंज़ूरी मिलने से पहले इस गाने में 105 बार बदलाव किए गए थे.
- ये सीन मोहन स्टूडियो में फिल्माया गया था, जहां इसके लिए खासतौर पर एक भव्य महल का सेट बनाया गया था.
- ‘अनारकली’ के रूप में मधुबाला के दिलकश अभिनय ने सेट पर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया था. जबकि पृथ्वीराज कपूर के ‘अकबर’ के किरदार ने इस सीन में चार चांद लगा दिए थे.
मुश्किल से शूट हुआ था ‘प्यार किया तो डरना क्या’
1960 में रिलीज हुई ‘मुगल-ए-आजम’ को बनने में 14 साल लगे थे. फिल्म के एक गाने का सेट बनने में दो साल लगे थे. गाना था ‘जब प्यार किया तो डरना क्या’. गाने में जब अभिनेत्री मधुबाला डांस करती हैं, तो महल में लगे सभी शीशों में वह नजर आती हैं, लेकिन इसे फिल्माना आसान नहीं था. एक समय तो यह सीन क्रिएट करना लगभग नामुमकिन हो गया था.
हॉलीवुड से भी एक्सपर्ट बुलाए गए, लेकिन उन्होंने भी मना कर दिया. बात 15 लाख रुपये में बने शीश महल को तोड़ने तक पहुंच गई, लेकिन फिर सिनेमैटोग्राफर आरडी माथुर ने इसका हल निकाला. कैमरा लगते ही उसकी लाइट शीशों पर पड़ती. इसे रोकने के लिए रिफ्लेक्टर लगाए गए, लेकिन जब लाइट उन पर पड़ती, तो आंखें चौंधिया जातीं और शूटिंग मुश्किल हो जाती. माथुर ने अपने कैमरे से सेट पर एक ऐसा कोना ढूंढा, जहां लाइट उछल रही थी. वहां से कोई रिफ्लेक्शन नहीं बन रहा था. फिर मधुबाला को अनारकली के वेश में रंगीन शीशों में घूमते हुए देखा गया और यह हिंदी सिनेमा का एक आइकॉनिक सीन बन गया था.
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