राजनीति

india wants this to be a period of peace not war

दुनिया आज एक ऐसे दौर से गुजर रही है, जहां युद्ध और हिंसा ने सभ्यता की प्रगति को खतरे में डाल दिया है। रूस-यूक्रेन संघर्ष इसके ताजे उदाहरण के रूप में हमारे सामने है। इस युद्ध ने न केवल यूरोप की स्थिरता को हिलाकर रख दिया है, बल्कि पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था को गहरे संकट में डाल दिया है। हजारों लोग मारे गए, लाखों लोग शरणार्थी बने और ऊर्जा तथा खाद्यान्न संकट ने विकासशील देशों को प्रभावित किया। ऐसे कठिन समय में भारत ने अपनी पारंपरिक नीति-अहिंसा, निशस्त्रीकरण और अयुद्ध का परिचय कराते हुए यह स्पष्ट किया है कि युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। यूक्रेन के राष्ट्रपति बोलोदिमीर जेलेंस्की को भारत आने का निमंत्रण देकर भारत ने संकेत दिया है कि युद्ध विराम एवं शांति समझौता कराने में भारत सक्रिय भूमिका निभा सकता है, निश्चित ही इस कदम का स्वागत होना चाहिए। रूस एवं यूक्रेन को भारत बातचीत की टेबल पर ले आता है, तो यह पूरी दुनिया के हित में होगा, इससे यु़द्ध का अंधेरा नहीं, शांति का उजाला होगा।

भारत द्वारा यूक्रेन के राष्ट्रपति को भारत आने का निमंत्रण देना केवल शांति प्रयासों का हिस्सा ही नहीं है, बल्कि यह अमेरिका की चालों को करारा जवाब देने वाला एक कूटनीतिक कदम भी है। हाल के दौर में अमेरिका ने भारत पर ट्रेड टैरिफ लगाकर और विभिन्न आर्थिक दबाव बनाकर उसकी अर्थव्यवस्था को अस्थिर एवं अस्तव्यस्त करने की कोशिश की है। किंतु मोदी सरकार ने अपनी दृढ़ कूटनीति से यह संदेश दिया है कि भारत अब किसी दबाव में आने वाला नहीं है। ज़ेलेन्स्की को आमंत्रित कर भारत ने यह दिखा दिया कि वह रूस और यूक्रेन दोनों के साथ संवाद रखकर स्वतंत्र नीति अपनाने में सक्षम है और अमेरिका की अपेक्षाओं के आगे झुकने के बजाय अपनी शांति और संतुलन की राह पर आगे बढ़ रहा है। यह कदम भारत की आत्मनिर्भर, साहसी और वैश्विक नेतृत्वकारी भूमिका का प्रमाण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार कहा है-‘यह युद्ध का दौर नहीं है।’ यह वाक्य केवल एक कूटनीतिक कथन नहीं, बल्कि भारत की शाश्वत नीति और सांस्कृतिक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है।

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रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने केवल शब्दों तक ही सीमित भूमिका नहीं निभाई, बल्कि ठोस मानवीय प्रयास भी किए। ‘ऑपरेशन गंगा’ के अंतर्गत हजारों भारतीय छात्रों और नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकाला गया। भारत ने यूक्रेन को दवाइयां, मानवीय सहायता और राहत सामग्री भेजी। भारत ने रूस और यूक्रेन, दोनों से संवाद बनाए रखा। पिछले साल अगस्त में नरेन्द्र मोदी यूक्रेन जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने थे। इससे पहले उन्होंने रूस की यात्रा की थी। प्रधानमंत्री मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की से निरन्तर बातचीत में भी भारत का रूख स्पष्ट किया कि शांति बहाल होनी चाहिए, यह युद्ध का दौर नहीं, बल्कि शांति एवं विकास का दौर है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप एवं रूसी राष्ट्रपति पूतिन के बीच अलास्का में हुई शिखर वार्ता का भी भारत ने स्वागत किया और कहा था कि बातचीत एवं कूटनीति ही आगे बढ़ने एवं युद्ध विराम का रास्ता है। 

रूस और यूक्रेन के बीच यदि कभी बातचीत की प्रक्रिया शुरू होती है, तो उसमें भारत की भूमिका निर्णायक हो सकती है। आज भारत की छवि एक विश्वसनीय मध्यस्थ के रूप में उभरी है। भारत न केवल जनसंख्या और अर्थव्यवस्था के लिहाज से बड़ा देश है, बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक दृष्टि से भी विश्व में एक अलग पहचान रखता है। गांधी की भूमि, बुद्ध की करुणा और महावीर की अहिंसा से प्रेरित यह राष्ट्र यदि शांति का झंडा उठाता है, तो उसकी आवाज को अनसुना नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि पूरी दुनिया आज भारत से अपेक्षा कर रही है कि वह शांति का नेतृत्व करे। भारत की यह भूमिका उसे केवल एक उभरती महाशक्ति ही नहीं बनाती, बल्कि ‘विश्वगुरु’ के रूप में स्थापित करती है। क्योंकि भारत जानता है-‘शांति ही मानवता का वास्तविक मार्ग है, और अहिंसा ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति।’

भारत की शांति नीति केवल रूस-यूक्रेन युद्ध तक सीमित नहीं रही है। चाहे ईरान-इजरायल, इजरायल-हमास युद्ध हो, अफगानिस्तान का संकट हो या मध्य पूर्व की उथल-पुथल-भारत ने हमेशा संवाद और कूटनीति को प्राथमिकता दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने जी-20 शिखर सम्मेलन में विश्व नेताओं से कहा कि मानवता के सामने जो चुनौतियां हैं, उनका समाधान युद्ध से नहीं, बल्कि सहयोग-शांति-सौहार्द से मिलेगा। उन्होंने विकासशील देशों की पीड़ा और युद्ध से उत्पन्न आर्थिक संकट को सामने रखकर यह स्पष्ट किया कि युद्ध का खामियाजा गरीब और छोटे देशों को सबसे ज्यादा भुगतना पड़ता है। आज की दुनिया में हथियारों की होड़ और सामरिक प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। युद्ध केवल मोर्चे पर ही नहीं, बल्कि तकनीकी, साइबर और आर्थिक क्षेत्रों में भी लड़े जा रहे हैं। ऐसे समय में भारत की अहिंसा और अयुद्ध की नीति मानवता के लिए प्रकाशस्तंभ का काम कर रही है।

भारत का इतिहास शांति और अहिंसा का इतिहास है। भगवान महावीर ने अहिंसा को सर्वाेच्च धर्म बताया। उन्होंने कहा-“अहिंसा परमो धर्मः”। गौतम बुद्ध ने करुणा और मैत्री का संदेश दिया और पूरी एशिया भूमि को ‘शांति क्षेत्र’ बनाने की दृष्टि दी। महात्मा गांधी ने इसी परंपरा को आधुनिक राजनीति में रूपांतरित किया। उन्होंने दिखाया कि सत्य और अहिंसा के आधार पर साम्राज्यवाद जैसी शक्तिशाली सत्ता को भी परास्त किया जा सकता है। भारत की आत्मा में यह विश्वास गहराई से निहित है कि हिंसा केवल विनाश लाती है और शांति ही स्थायी समाधान है। इसी विरासत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पुनर्जीवित किया है। 2022 में जब रूस-यूक्रेन युद्ध तेज हुआ, तब संयुक्त राष्ट्र, जी-20 और ब्रिक्स जैसे मंचों पर मोदी ने दृढ़ता से कहा-‘आज का समय युद्ध का नहीं, बल्कि शांति, स्थिरता और सहयोग का है।’ भारत ने इस सत्य को समय रहते समझा और दुनिया को यह संदेश दिया कि ‘शांति ही भविष्य है, युद्ध नहीं।’ इसे आधुनिक कूटनीति में उतारकर यह साबित किया है कि भारत केवल अपने लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए सोचता है।

स्वतंत्रता के बाद भारत ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में गुटनिरपेक्ष नीति अपनाई। शीत युद्ध के समय जब दुनिया अमेरिका और सोवियत संघ के दो खेमों में बंटी हुई थी, तब भारत ने यह साहस दिखाया कि वह किसी एक महाशक्ति का पिछलग्गू नहीं बनेगा। पंडित जवाहरलाल नेहरू, युगोस्लाविया के राष्ट्रपति टिटो और मिस्र के राष्ट्रपति नासिर ने मिलकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी। इसका उद्देश्य था-दुनिया के देशों को युद्ध की राजनीति से दूर रखना और शांति व सहयोग की नई राह खोलना। भारत की अहिंसा की नीति कहती है कि स्थायी समाधान केवल शांति और संवाद में है। अयुद्ध की नीति कहती है कि किसी भी गुट का पिछलग्गू बने बिना स्वतंत्र दृष्टिकोण अपनाना ही असली ताकत है। भारत ने दिखाया है कि यह नीति केवल आदर्श नहीं, बल्कि व्यावहारिक कूटनीति भी है। जब पूरी दुनिया किसी एक पक्ष में बंट रही हो, तब भारत जैसे देश का संतुलित रुख ही शांति की संभावना को जीवित रख सकता है। 

आज, जब रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी देश और रूस आमने-सामने खड़े हैं, भारत ने उसी गुटनिरपेक्ष दृष्टिकोण को अपनाया है। भारत न तो रूस के पक्ष में खड़ा हुआ है और न ही अंधाधुंध रूप से पश्चिम का समर्थन कर रहा है। उसने संवाद और कूटनीति को ही एकमात्र रास्ता बताया है। यही भारत की ‘अयुद्ध नीति’ है-जहां किसी से शत्रुता नहीं, बल्कि सबके साथ संतुलित संबंध रखकर शांति के लिए काम करना है। भारत ने अमेरिकी और यूरोपीय दबाव के बावजूद कभी भी केवल एक पक्ष का समर्थन नहीं किया। यही उसकी सबसे बड़ी ताकत है। अमेरिका और पश्चिमी देश चाहते थे कि भारत खुले रूप से रूस की निंदा करे और उस पर प्रतिबंध लगाए। किंतु भारत ने साफ कहा कि उसका दृष्टिकोण ‘तटस्थ’ ही नहीं, बल्कि ‘शांति-उन्मुख’ है। भारत का लक्ष्य किसी के खिलाफ खड़ा होना नहीं, बल्कि सबको शांति की राह पर लाना है। यही कारण है कि रूस और यूक्रेन, दोनों भारत पर भरोसा करते हैं। दोनों मानते हैं कि भारत बिना पूर्वाग्रह के समाधान का मार्ग खोज सकता है।

– ललित गर्ग

लेखक, पत्रकार, स्तंभकार

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)

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