Production of organic vegetables and increased oxygen level of the premises by two percent |…

शहर में इमारतों की छतों पर अब हाइड्रोपोनिक्स खेती का चलन शुरू हुआ है। खासियत यह है कि इसमें मिट्टी की जगह कोको पिट/नारियल का भूसा और पानी के इस्तेमाल से ही हरी पत्तेदार सब्जियां और फल उगाए जा रहे हैं। महज 50 से 200 वर्ग गज छत पर।
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सालभर में 3 से 5 फसलें उगाना मुमकिन है। टेरिस पर हाइड्रोपोनिक्स बागवानी कर रहे रणजीत नगर निवासी लोकेश अग्रवाल बताते हैं शहर में 20 से ज्यादा घरों में इस तकनीक से ऑर्गेनिक बागवानी की जा रही है। इसके दाे बड़े फायदे हैं। एक ताे फल/सब्जियां एकदम शुद्ध मिल जाती है। दूसरे से परिसर का ऑक्सीजन लेवल बढ़ जाता है।
मसलन, पहले घर से थाेड़ी दूरी पर हवा में ऑक्सीजन लेवल 19.5 से 20 प्रतिशत रहता है, जबकि टेरिस गार्डन की वजह है हमारे घर में ऑक्सीजन लेवल 21 प्रतिशत था। इसके अलावा तापमान भी 2 से 3 डिग्री कम रहता है। हाइड्रोपोनिक्स खेती के लिए छत पर एक विशेष तरह का सेटअप तैयार किया है। टॉवर प्लांट, गो बैग, गमले, ट्रे लगाए हैं, जिनमें एक समय पर 150 से 220 पौधे उगाए जा रहे हैं। एक बार लगाए बीज से तीन बार फसल ले सकेंगे। टॉवर में पानी देने के लिए अलग टंकी लगाई है, जिसमें पानी डालकर नाइट्रोजन-पोटेशियम-फास्फोरस और एप्सम साल्ट मिलाया जाता है, ताकि पौधे अच्छी वृद्धि कर सकें। एक दिन में 4 बार पानी दिया जाता है।
कीड़ों से बचाने के लिए नीम ऑइल के घोल का छिड़काव किया। मैंने इंटरनेट और मोबाइल ऐप्स से खेती और बचाव सीखा। मैने टेरिस गार्डन का नाम रेणु का बाग रखा है। जहां सब्जी -घीया, तोरई वैगन, खीरा ,भिंडी, टमाटर, लोंग बीन्स, ब्रोकली , चुकंदर, फूल गोभी, पत्ता गोभी, धनिया ,पालक, पुदीना आ चुके हैं। फलों में मौसमी ,संतरा, पपीता भी इस साल फल देंगे।
जानिए… क्या है हाइड्रोपोनिक्स तकनीक; दाे बडे़ फायदे… 1. तापमान 3 से 4 डिग्री तक कम- गार्डन बनने से घर का तापमान लगभग 2–3 डिग्री कम रहता है। इससे बिजली और एसी पर निर्भरता कम हुई है।
2. ऑक्सीजन लेवल बढ़ा- ऑक्सीजन एनालाइज़र से जाँचने पर पहले हवा में ऑक्सीजन स्तर 20 था, अब वह बढ़कर 21 के करीब पहुँच गया।
हाइड्रोपोनिक्स एक ऐसी तकनीक है, जिसमें पौधे मिट्टी की जगह पानी में घुले पोषक तत्वों की मदद से उगाए जाते हैं। इस पद्धति में किसान को पौधे की ज़रूरत के अनुसार पोषण देने पर पूरा नियंत्रण रहता है, जिससे पौधों की ग्रोथ तेज़ होती है। पारंपरिक खेती के मुकाबले उत्पादन भी ज़्यादा होता है। मिट्टी का उपयोग कम हाेने से कीटों और बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। ज़मीन की जरूरत भी नहीं रहती। शुद्ध सब्जी/फल मिलते हैं।