Jaisalmer Dinosaur Skeleton Discovery; Jurassic Period Fossils Found | जैसलमेर में उड़ने वाले…

जैसलमेर में जुरासिक काल के उड़ने वाले डायनासोर के जीवाश्म (फॉसिल) मिले हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि ये चीन में मिले फॉसिल्स से भी पुराना है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अभी जो धरती से बाहर दिख रहा है वो जुरासिक काल के किसी जानवर की रीढ़ की हड्डी हो स
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वैज्ञानिकों ने बताया कि करोड़ों साल पहले जैसलमेर समुद्र का किनारा रहा होगा, जहां डायनासोर खाने की तलाश में आते थे। ऐसे में यहां इनके जीवाश्म मिल रहे हैं।
जीवाश्म जैसलमेर के फतेहगढ़ उपखंड क्षेत्र के मेघा गांव में मिले हैं। अब जियोलॉजिकल सर्वे की टीम जांच करेगी। मेघा गांव के पास एक तालाब की ऊंचाई पर बने पठार पर ये प्राचीन फॉसिल्स मिले हैं। इसमें हड्डियों की तरह नजर आ रहा एक स्केलेटन (कंकाल) का ढांचा है।
दैनिक भास्कर में पढ़िए उड़ने वाले डायनासोर के कंकाल की खोज…..
पहले वो तस्वीर जिसमें नजर आ रहा है फॉसिल
भूजल वैज्ञानिक व खोजकर्ता डॉ. नारायण दास इणखिया ने जीवाश्म का निरीक्षण कर इसे जुरासिक काल का होने का अंदाजा जताया है।
फॉसिल्स जुरासिक काल का होने का अंदाजा ग्रामीणों की सूचना के बाद प्रशासन ने भूजल वैज्ञानिक व खोजकर्ता डॉ. नारायण दास इणखिया को गुरुवार को मेघा गांव भेजा। डॉ. इणखिया ने जीवाश्म का निरीक्षण कर इसे जुरासिक काल का होने का अंदाजा जताया है। यानी ये डायनासोर या उसके किसी समकक्ष जीव की हड्डियों का कंकाल हो सकता है। इसको लेकर उन्होंने बताया- इसके संरक्षण और शोध की आवश्यकता है। प्रशासन के माध्यम से जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को लिखा जाएगा। इसके साथ ही इस शोध करने वालों को भी आमंत्रित किया जाएगा ताकि वे इसकी जांच कर बता सके।
20 फीट के डायनासोर का हो सकता है कंकाल मेघा गांव के पठारी इलाके में मिले फॉसिल्स के कंकाल को जुरासिक काल का होना बताया जा रहा है। फिलहाल इसके बार में कुछ भी स्पष्ट नहीं है। लेकिन जानकार इसे डायनासोर काल से जोड़कर देख रहे हैं।
फॉसिल्स मिलना तो आम है, लेकिन फॉसिल्स के साथ हड्डियों का स्कल्टन मिलने से यह माना जा रहा है कि यह लाखों करोड़ों साल पुराने अवशेष हो सकते हैं। ये किसी उड़ने वाले डायनासोर का हो सकता है। जिसकी लम्बाई करीब 20 फीट या उससे भी ज्यादा हो।
2 साल पहले मिले थे डायनासोर युग के अंडे जैसलमेर के भू-जल वैज्ञानिक नारायण दास इणखिया 2023 में जेठवाई पहाड़ी के पास ही मॉर्निंग वॉक के दौरान एक अंडे का जीवाश्म मिला था। जो लाखों वर्ष पुराने किसी अंडे का फॉसिल्स था। इससे पहले थईयात की पहाड़ियों में भी डायनासोर के पदचिन्हों के निशान मिले थे, जिसे बाद में कोई चुराकर ले गया। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) के वैज्ञानिक देबाशीष भट्टाचार्य, कृष्ण कुमार, प्रज्ञा पांडे और त्रिपर्णा घोष ने 2018 में रिसर्च शुरू किया था।
तालाब की खुदाई के दौरान पठार में मिले जीवाश्म ग्रामीण श्यामसिंह ने बताया कि तालाब के पास खुदाई में यह अवशेष मिले हैं। इसकी जानकारी प्रशासन व पुरातत्व विभाग को दे दी गई है। उन्होंने बताया कि बुधवार को फतेहगढ़ एसडीएम ने मौके का निरीक्षण भी किया है। फिलहाल कुछ भी साफ नहीं है। विशेषज्ञों की जांच के बाद ही पता चल सकेगा कि ये क्या है और कौनसे काल के है।
जैसलमेर में जुरासिक काल के प्रमाण मौजूद गौरतलब है कि जैसलमेर में इससे पहले भी थईयात आदि इलाकों में डायनासोर के पंजे के निशान आदि मिले थे। इसके साथ ही आकल गांव में भी 18 करोड़ साल पहले के पेड़ मिले हैं जो अब पत्थर हो गए हैं। आकल गांव में ऐसे पेड़ों के फॉसिल्स को लेकर ‘वुड फॉसिल्स पार्क’ भी बनाया गया है। अब मेघा गांव में इस तरह के पेड़ों के पत्थर बनने के जीवाश्म व हड्डियों का स्ट्रक्चर मिलने से एक बार फिर दुनिया भर की नजरें जैसलमेर पर आ गई है।
तीन जगहों को कहते हैं डायनासोर का गांव जैसलमेर शहर में जेठवाई की पहाड़ी, यहां से 16 किलोमीटर दूर थईयात और लाठी को डायनासोर के गांव ही कहा जाता है। इसकी वजह है कि इन जगहों पर ही डायनासोर होने के प्रमाण मिलते हैं। जेठवाई पहाड़ी पर पहले माइनिंग होती थी। लोग घर बनाने के लिए यहां से पत्थर लेकर जाते थे।
ऐसे ही थईयात और लाठी गांव में सेंड स्टोन के माइनिंग एरिया में डायनासोर के फॉसिल्स मिलते हैं। तीनों गांवों में ही माइनिंग से काफी सारे अवशेष तो नष्ट हो गए थे। जब यहां डायनासोर के फॉसिल्स मिलने लगे तो सरकार ने माइनिंग का काम रुकवा दिया। अब तीनों जगहों को संरक्षित कर दिया गया है।
मेघा गांव के पास एक तालाब की ऊंचाई पर बने पठार पर मिला यह प्राचीन जीवाश्म और कंकाल का ढांचा है और कुछ ऐसे पत्थर है जो फॉसिल्स बन चुके है, यानि लकड़ी की तरह बन गए है।
‘थार का डायनासोर’ के मिले फॉसिल्स रिसर्च के दौरान सबसे पुराने शाकाहारी डायनासोर थारोसोरस के जीवाश्म मिले थे। सबसे ज्यादा डायनासोर की रीढ़, गर्दन, सूंड, पूंछ और पसलियों के जीवाश्म मिले थे। अगस्त 2023 के पहले सप्ताह में रुड़की रिसर्च सेंटर ने अपनी जांच पूरी की। वैज्ञानिकों ने बताया कि जेठवाई पहाड़ी पर ‘थारोसोरस इंडिकस’ के फॉसिल्स मिले थे। वो दुनिया का सबसे पुराना डायनासोर था। इस डायनासोर के फॉसिल्स जैसलमेर में मिलने पर इसे ‘थार का डायनासोर’ नाम दिया गया है। ये जीवाश्म चीन में मिले जीवाश्म से भी पुराना है। जैसलमेर में यह डायनासोर 16.7 करोड़ साल पहले यहां रहते थे।
भूजल वैज्ञानिक व खोजकर्ता डॉ. नारायण दास इणखिया का मानना है कि ये जिवाश्म व कंकाल डायनासोर या उसके किसी समकक्ष जीव की हड्डियों का कंकाल हो सकता है।
शाकाहारी थे ये डायनासोर थारोसोरस इंडिकस या थार का डायनासोर शाकाहारी होते थे। इनकी लंबी गर्दन, रीढ़ लंबी, सिर छोटा और सिर पर ठोस नोक होती थी। वैज्ञानिकों ने इसे डायनासोरों के पुराने परिवार डायक्रेओसोराइड सोरोपॉड्स में रखा है।
इस परिवार के डायनासोर की गर्दन लंबी और सिर छोटे होते थे। वे शाकाहारी होते थे। इस डायनासोर के यहां होने का दूसरा सबूत वर्ष 2014 में मिला था। जब जैसलमेर से 16 किलोमीटर दूर थईयात गांव की पहाड़ियों में इसे पंजों के निशान मिले थे।
ऐसे पता चला जैसलमेर में थे डायनासोर जुरासिक प्रणाली पर 9वीं इंटरनेशनल कांग्रेस आयोजित होने के बाद जयपुर के वैज्ञानिक धीरेंद्र कुमार पांडे और विदेशी वैज्ञानिकों की टीम वर्ष 2014 में जैसलमेर घूमने आई थी। तब टीम ने वुड फॉसिल पार्क विजिट किया और जुरासिक युग के फॉसिल (जीवाश्म) देखे।
इस दौरान टीम को जैसलमेर शहर से 16 किलोमीटर दूरी पर जैसलमेर-जोधपुर हाईवे के पास थईयात गांव के पास मिट्टी हटाने पर डायनासोर के पैरों के निशान मिले थे। तब स्टडी से अनुमान लगाया गया कि यह थेरोपोड डायनासोर के थे। पैरों के निशान बलुआ पत्थर पर मिट्टी हटाने के बाद उपरी सतह पर मिले थे। इसी गांव में बाद में टेरोसॉरस रेप्टाइल डायनासोर की हड्डियां भी मिली थीं।
ये फॉसिल्स करीब 7 फीट लम्बाई में जमीन से बाहर नजर आ रहा है। ये किसी जानवर का कंकाल बताया गया है, जो लाखों सालों की प्रक्रिया के बाद फॉसिल्स बन गया है।
चीन में मिले जीवाश्म से भी पुराने
थारोसोरस से पहले चीन में मिले डायक्रेओसोराइड के जीवाश्म को सबसे पुराना समझा जाता था। वह 16.6 करोड़ से 16.4 करोड़ साल पुराना था। भारत में हुई ताजा खोज ने चीन के जीवाश्म को 10 से 30 लाख साल पीछे छोड़ दिया है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन सभी खोजों को जोड़ कर देखें तो पक्के सबूत मिलते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप डिप्लोडोसॉइड डायनासोरों की उत्पत्ति और उनके क्रमिक-विकास का केंद्र था।
जैसलमेर जिले के फतेहगढ़ इलाके के मेघा गांव में तालाब की ऊंचाई पर बने इसी पठारी इलाके में ये फॉसिल्स मिले है।
जुरासिक युग की चट्टानें भी मिली थी
डायनासोर युग को साइंटिस्ट मेसोजोइक युग कहकर बुलाते हैं। जैसलमेर में इस युग में पाए जाने वाले 40 फीट लंबे पौधों के जीवाश्म की खोज सबसे पहले वर्ष 1826 में हुई थी। इसके बाद वर्ष 1861 और 1877 में रिसर्च पेपर प्रकाशित हुए तो पूरी दुनिया के साइंटिस्ट की नजर जैसलमेर पर पड़ी। कई वैज्ञानिकों का यहां पहुंचना शुरू हो गया। यहां जुरासिक युग की चट्टानों की संरचना सबसे पहले ओल्डहैम ने 1886 और 1902 में ला टौचे ने खोजी थी।ओल्डहैम ने सबसे पहले जैसलमेर बेसिन के मेसोजोइक चट्टानों का मैप बनाया था। उन्होंने लाठी, जैसलमेर, भादासर की चट्टानों के बारे में जानकारी दी थी।
जैसलमेर शहर था समुद्र का किनारा, डायनासोर खाना ढूंढने आते थे
डॉ. नारायण दास इणखिया ने बताया कि जियोलॉजिकल इतिहास के मुताबिक आज जहां जैसलमेर शहर बसा है, यह समुद्र का किनारा हुआ करता था। यहां डायनासोर खाने की तलाश में आते थे। आज से करीब 25 करोड़ साल पहले जैसलमेर से गुजरात के कच्छ तक बसा रेगिस्तान जुरासिक युग में टेथिस सागर हुआ करता था। यह वो समय था जब अमेरिका, अफ्रीका और इंडिया सभी देश एक ही महाद्वीप में थे। तब जैसलमेर से लगे टेथिस सागर में व्हेल और शार्क की ऐसी दुर्लभ प्रजातियां थीं, जो आज विलुप्त हो गई हैं।