ट्रंप के ‘डेड इकोनॉमी’ कहने के बाद अब भारत दिखाएगा आईना, सरकार ने उठाया बड़ा कदम

India-EAEU Trade Deal: हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को “डेड इकोनॉमी” करार दिया था और साथ ही अमेरिकी टैरिफ को बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने का ऐलान कर दिया था. इस बयान के बाद भारत-अमेरिका ट्रेड वार्ता लगभग ठप हो गई है. अब भारत ने जवाबी कदम उठाते हुए रूस के नेतृत्व वाले यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (EAEU) के साथ नई व्यापारिक बातचीत शुरू कर दी है.
रूस-भारत साझेदारी को नई रफ्तार
बुधवार को भारत और ईएईयू के बीच मॉस्को में फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) को लेकर टर्म ऑफ़ रेफ़रेंस पर दस्तखत किए गए. भारत की ओर से वाणिज्य विभाग में अतिरिक्त सचिव अजय भाडू और ईईसी के ट्रेड एंड पॉलिसी डिपार्टमेंट के डिप्टी डायरेक्टर मिखाइल चेरेकोव ने करार पर हस्ताक्षर किए. यह वार्ता ऐसे समय में शुरू हुई है जब नई दिल्ली अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच चीन, रूस और ब्राजील की ओर रणनीतिक रूप से झुकाव दिखा रहा है.
अमेरिका को करारा जवाब
अमेरिका से बातचीत विफल रहने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्राजील के राष्ट्रपति लुला दा सिल्वा और रूस के प्रधानमंत्री व्लादिमीर पुतिन से फोन पर चर्चा की. उम्मीद है कि महीने के आखिर में वे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी मुलाकात करेंगे. यह संदेश साफ है कि भारत अब अमेरिका पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहता.
क्या है बड़ी चुनौती?
भारत और ईएईयू के बीच 2024 में 69 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था, जो 2023 के मुकाबले 7 प्रतिशत ज्यादा है. 6.5 ट्रिलियन डॉलर की इस अर्थव्यवस्था के साथ एफटीए होने से भारतीय निर्यातकों को नए बाजार मिल सकते हैं. इससे खासकर कपड़ा उद्योग और फार्मा सेक्टर को बड़ा फायदा होगा.
हालांकि, चुनौतियां भी कम नहीं हैं. भारत का रूस से आयात तेज़ी से बढ़ा है, लेकिन निर्यात अपेक्षाकृत कम रहा है. 2019 में जहां भारत का रूस को निर्यात 2.39 बिलियन डॉलर था, वह 2025 में बढ़कर सिर्फ 4.88 बिलियन डॉलर ही हो पाया है. वहीं, भारत का रूस से आयात तेल पर निर्भरता के कारण काफी बढ़ गया है और अब यह 35–40 प्रतिशत तक पहुंच चुका है. नतीजा यह है कि दोनों देशों के बीच व्यापारिक घाटा 60 बिलियन डॉलर से ज्यादा है.
कुल मिलाकर, भारत ने ट्रंप के “डेड इकोनॉमी” वाले बयान का जवाब सीधे आर्थिक मोर्चे पर दिया है. अगर ईएईयू के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट जल्दी अमल में आता है तो भारत को अमेरिकी दबाव से बाहर निकलने और नए बाजार तलाशने में बड़ी मदद मिलेगी.