राजनीति

हिन्दू या भगवा कभी आतंकवादी नहीं हो सकता

2004 से 2014 के मध्य पूरा भारत आतंकवाद से त्रस्त था। आये दिन होने वाले आतंकी बम धमाकों ने देश की जनता को भयभीत कर रखा था। ऐसे ही बम धमाकों की श्रृंखला में महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को हुए बम धमाकों में कम से कम छह लोग मारे गए थे और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। 17 वर्षों के बाद मालेगांव की घटना की आम और खास लोगों में चर्चा का एक विशिष्ट प्रयोजन है। तत्कालीन केन्द्र की कांग्रेस सरकार मुस्लिम तुष्टिकरण की सारी हदें पार करते हुये जहां एक ओर पाक प्रायोजित आतंकवाद पर ढुलमुल रवैया अपनाये रही वहीं दूसरी ओर मालेगांव बम विस्फोट पर हिंदू आतंकवादी का एक काल्पनिक कथानक रचकर उसे खूब प्रचारित और प्रसारित करने का प्रयास किया। बिना किसी सबूत के और बिना किसी जांच के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा अन्य हिन्दू संगठन से जुड़े कई लोगों को गिरफ्तार लिया गया जिनमें साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टीनेन्ट कर्नल पुरोहित, रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय, समीर कुलकर्णी अजय रहीरकर, सुधाकर द्विवेदी और सुधाकर चतुर्वेदी प्रमुख हैं। सत्रह वर्षों बाद नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी के विशेष न्यायालय ने 31 जुलाई 2025 को सभी सातों आरोपियों को ठोस सबूतों के अभाव में दोषमुक्त घोषित करते हुए बरी कर दिया।
मुस्लिम तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति करने वाले हिन्दू तथा सनातन विरोधी कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की भगवा आतंकवाद की पूरी थ्योरी न्यायपालिक के प्रथम चरण में ध्वस्त हो गई है। अब न्यायालय के निर्णय पर राजनीति होना स्वाभाविक गतिविधि है।

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विशेष अदालत के फैसले ने इस तथ्य को पुनःप्रमाणित कर दिया है कि एक हिन्दू अथवा सनातनी कभी भी आतंकी नहीं हो सकता। यह फैसला बहुसंख्यक हिन्दू समाज तथा संत समाज को आनंदित करने वाला है वहीं कांग्रेस के नेतृत्व वाला समूचा विपक्ष आज उसी तरह से रो रहा है जिस प्रकार वे अयोध्या में बाबरी विध्वंस के समय रोये थे। यह वही मुकदमा है जिसके आधार पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने भगवा आतंकवाद का एक पूर्णतः असत्य कथानक रचा और पूरे विश्व में सनातन धर्म को अपमानित करने की कोशिश की। साध्वी प्रज्ञा सहित सभी सात आरोपियां को एक नितान्त मनगढ़न्त आरोपों से अपनी असंबद्धता सिद्ध करने के लिये 17 वर्षों तक न केवल कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी अपितु सतत् मानसिक और षारीरिक प्रताड़ना भी झेलनी पड़ी थी। एक महिला होने के नाते सर्वाधिक अत्याचार व अपमान साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को 9 साल जेल में रहते हुए सहना पड़ा था।  
प्रज्ञा ठाकुर का संत से संसद तक का सफर- मध्यप्रदेश की भगवाधारी महिला संत प्रज्ञा सिंह ठाकुर को महाराष्ट्र एटीएस ने गिरफ्तार कर उन्हें पर आतंकवचादी बताया था। लेकिन इन्हीं आरोपों को अवसर में बदलते हुए वह भोपाल से बीजेपी की सांसद चुनी गई। जेल में रहते हुए उन पर 10 दिनों तक अपना अपराध स्वीकार करने सहित साजिश कर्ताओं के नाम बताने के नाम पर अथाह अत्याचार किये गये जिस कारण उनका स्वास्थ्य भी बिगड गया था। किंतु प्रज्ञा ठाकुर जी ने अपना धैर्य, साहस व मनोबल नहीं खोया सभी आरोपी बराबर कहते रहे थे कि यह एक साजिश है और उन सभी को फंसाया जा रहा है। उन सभी के साहस और धैर्य ने हिन्दू-भगवा को आतंकवाद के अनर्गल आरोप से मुक्त करा दिया है। 
अब आज जाकर साध्वी प्रज्ञा ठाकुर व सभी सात अन्य आरोपी पूर्ण रूप स्वतंत्र हुए हैं  हालांकि अभी पीडित परिवारों के वकील का कहना है कि वह सभी लोग मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे वही कुछ मुस्लिम परस्ती की राजनीति करने वाले लोग इस मामले में जनहित याचिका भी डालने जा रहे हैं किंतु महाराष्ट्र सरकार की ओर से स्पष्ट कर दिया  गया है कि फिलहाल वह इस मामले को ऊपरी अदालत में नहीं ले जाएगी। वहीं कांग्रेस सहित मुस्लिम संगठन महाराष्ट्र सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए कह रहे हैं कि जिस प्रकार वह त्वरित गति से मुंबई ट्रेन धमाकों के मामले को  ऊपरी आदालत में  लेकर चली गई इसी प्रकार उसे इस फैसले में भी करना चाहिए। 
किंतु यहां पर सबसे बड़ा प्रश्न यह भी है कि इन सभी अरोपियों के जो 17 बहुमूल्य वर्ष व समय खराब हुआ है उसकी भरपाई कौन और कैसे कर पायेगा? यह जानना भी आवश्यक है कि भगवा आतंकवाद की थ्योरी का जनक आखिर है कौन और इससे किसको लाभ होने वाला था। किसने इन सभी लोगां को आरोपी बनाने की कहानियां गढ़ी क्या अब उन सभी को न्यायपालिका, जांच एजेंसियों के कठघरे में खड़ा किया जाएगा। आखिर कौन है जो हिन्दुओं व भगवा को बदनाम करने के लिए साजिषें रच रहा था और फिर सबसे विषेष मालेगांव व समझौता एक्सप्रेस जैसे बम धमाके करवाने व फिर उन सभी तमाम घटनओें में साधु -संतों को गिरफ्तार करने की साजिषें कौन रच रहा था।निष्चित रूप से उस समय कांग्रेस केंद्र की सत्ता में थी और महाराष्ट्र में कांग्रेस -एनसीपी की सरकार थी। जब यह घटना घटी थी उस समय महाराष्ट्र में एनसीपी के आर आर पाटिल गृहमंत्री थे और केंद्र में कांग्रेस के गृहमंत्री शिवराज पाटिल थे। 
महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कोर्ट का फैसला आने के बाद कहा कि भगवा आतंकवाद का झूठा नैरेटिव गढ़ने के लिए अब कांग्रेस को देश से माफी मांगनी चाहिए। भगवा आतांकवाद की थ्योरी  का जन्मदाता एनसीपी नेता शरद पवार को ही माना जा रहा है और  उनकी इस नीति को गृहमंत्री शिवराज पाटिल के बाद सुशील कुमार शिंदे, मध्यप्रदेश कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह व कमलनाथ और फिर उसके बाद गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने ही पूरी ताकत के साथ आगे बढ़ाया। 
कोर्ट के फैसले से साफ हो गया है कि कुछ लोगां ने अपने निजी और राजनीतिक स्वार्थ के कारण भगवा आतंकवद के झूठे मुददे को अपनी विकृत राजनीति का हथियार बनाया और पूरे हिंदू समुदाय और हिंदू धर्म को आतंकावाद से जोडने की नाकाम कोषिष की गईं और अब इन सभी साजिषों की परत दर परत उखड़ने लग गई है। 
इससे पूर्व समझौता एक्सप्रेस बम धमाके की साजिश रचने के आरोप में स्वामी असीमानंद महाराज भी बरी हो चुके हैं इस प्रकार यह दूसरा बड़ा अवसर है जब कांग्रेस की भगवा आतंकवाद की थ्योरी कोर्ट में ध्वस्त हे गई है।कोर्ट का फैसला आते ही हिंदू संगठनों में आनंद व उत्साह का वातावरण देखा गया तथा सभी ने पटाखे दागकर व एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर विजय का उत्सव मनाया।  
कोर्ट की अहम टिप्पणियां- इस पूरे प्रकरण में अपने अंतिम फैसले में कई ऐतिहासिक व गंभीर टिप्प्णियां करते हुए कहाकि, “आतंकवद का कोइ रंग या धर्म नहीं होता। कोर्ट ने माना है कि कई लोगों के बयान उन्हें प्रताड़ित करके लिए गये हैं।“
कोर्ट का फैसला आने के बाद अब हिंदू संगठनों की ओर से पी. चिदम्बरम, दिग्विजय सिंह सहित उन सभी लोगों पर कार्यवाही करने की मांग की जा रही है जो सनातन को बदनाम करने के लिए भगवा आतंकवाद की झूठी साजिश रच रहे थे। निश्चय ही हिंदू आतंकवाद का नैरेटिव एक राजनैतिक साजिश है इसका उद्देश्य इस्लामा आतंकियों को खुश करना और वोट बैंक को महबूत करने रहना है। यही कारण है कि कांग्रेसराज में हिंदुओं को डराने-धमकाने के लिए बम धमाके होते रहते थे और मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार भगवा आतंकवाद का झूठा नैरेटिव गढ़ा करती थी। आज पूरे भारत से कांग्रेस का सफाया हो रहा है। भगवा आतंकवाद के जनक तिलमिलाए हुए हैं। यही कारण है कि जब आज सरकार आतंकी ठिकानों पर चुन-चुनकर कार्यवाही करती है तब सेना व सराकर से यह विरोधी दल सबूत मांगने लगते हैं। अब होने लगे खतरनाक खुलासे  मालेगांव पर कोर्ट का फैसला आने के बाद उस समय रची गई साजिश भी बेनकाब होने लगी है और पूर्व अधिकारी तक टीवी चैनलों पर आकर हिंदू धर्म को बदनाम करने के लिए रची गई  खुलासा करने लगे हैं। उस समय इस मामले में संघ के कुछ बड़े नेताओं को भी फंसाने की मंशा थीं जिसमें इंद्रेश कुमार का नाम सबसे चर्चित था। 
मालेगांव विस्फोट कांड की जांच करने वाली टीम के एक सदस्य मकहबूब मुजावर ने खुलासा किया है कि उस समय एनआईए के एक अधिकारी ने वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत को गिरफ्तार करने के लिए बहुत बड़ा दबाव बनाया था। अंततः उन्हें अपनी नौकरी से भी समय पूर्व ही हाथ धोना पड़ गया था। मुजावर कहते हैं कि रामजी कालसंगरा और संदीप डांगे की जगह साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित का नाम डालकर एक फर्जी जांच शुरू की गई। उन्होंने कहाकि एक ”गलत व्यक्ति” के द्वारा की गई गलत जांच का परिणम आज सामने आ गया है। 
इस मामले में तो यूपी के यशस्वी मुख्समंत्री योगी आदित्यनाथ को भी फंसाने की साजिश रची गई थी। वह तो भला हो कि इस पूरे झडे प्रकरण में सभी गवाह धीरे-धीरे मुकरते चले गये। महाराष्ट्र के मालेगांव में हुआ बम धमाका एक सुनियोजित राजनैतिक साजिश का एक बहुत ही बड़ा और घटिया हिस्सा था जो अब धीरे-धीरे ही सही लगातार बेनकाब होता जा रहा है और सेकुलर ताकतें भी उसी प्रकार से बेनकाब होती जा रही हैं। 
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आजकल हिंदू धर्म बनाम हिंदुत्व का नारा दिया है और उसकी आड़ में वह सनातन हिदू संस्कृति पर चोट पहुंचा रहे हैं। लेकिन अब यह साफ हो गया है कि राहुल गांधी एक बहुत ही सुनियोजित साजिश के तहत ही हिंदू धर्म बनाम हिंदुत्व का मुददा उठा रहे थे। राहुल गांधी कई बार हिंदू विरोधी बयानबाजी कर चुके हैं। एक खोजी पत्रकारिता करने वाली संस्था विकीलिक्स में दिए इंटरव्यू में उन्होंने मुस्लिम कट्टरपंथ की तुलना में हिंदू संगठनों को हिन्दुत्व के उभार को सबसे बड़ा खतरा बताया था। यह वही राहुल गांधी हैं जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से कर चुके हैं।
स्पष्ट है कि राहुल गांधी के नेतृत्त वाला इंडी गठबंधन पूरी तरह से हिंदू विरोधी है और सनातन के उन्मूलन में लगातार लगा रहता है लेकिन यह लोग भूल जाते हैं कि जो सनातन है वो शाश्वत भी है और कभी समाप्त नहीं हो सकता। 
– मृत्युंजय दीक्षित 

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